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बिहार वोटर लिस्ट विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, ADR ने दायर की याचिका | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आज शनिवार 5 जुलाई 2025 को बिहार में मतदाता सूची (voter list) के पुनरीक्षण अभियान पर उठा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है। एक तरफ जहां चुनाव आयोग इस अभियान को मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया बता रहा है, वहीं दूसरी ओर एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और विपक्षी दल इसे लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की साजिश करार दे रहे हैं। क्या सच में इस अभियान से आपका वोट कट सकता है? यह सवाल अब बिहार के हर मतदाता के मन में घर कर गया है।
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। एनजीओ ADR ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनाव आयोग (Election Commission) के इस कदम को चुनौती दी है। उनका आरोप है कि यह अभियान लाखों लोगों को मतदान से वंचित कर सकता है, खासकर बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) से ठीक पहले।
याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव आयोग का 24 जून 2025 का आदेश मनमाना है और निष्पक्ष चुनाव (Fair Elections) की प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। क्या सुप्रीम कोर्ट इस पर रोक लगाएगा? यह देखना दिलचस्प होगा।
क्यों हो रहा है विवाद? एक आदेश और लाखों की चिंता
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को एक आदेश जारी किया, जिसके तहत बिहार में 28 जून से मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान शुरू किया गया है। यह अभियान 30 सितंबर तक चलेगा, जिसके बाद नई मतदाता सूची जारी की जाएगी। ऊपरी तौर पर यह एक सामान्य प्रक्रिया लगती है, लेकिन इसके पीछे छिपी चिंताएं गंभीर हैं।
कम समय, बड़ा काम: ADR की याचिका में कहा गया है कि करोड़ों मतदाताओं की पुष्टि और सुधार के लिए दिया गया समय बहुत कम है। इतने कम समय में इतनी बड़ी आबादी की जांच कैसे संभव होगी?
अव्यावहारिक दस्तावेज: याचिका के अनुसार, मतदाता की पुष्टि के लिए मांगे जा रहे दस्तावेज अव्यवहारिक हैं, जिससे आम लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। क्या हर कोई आसानी से ये दस्तावेज उपलब्ध करा पाएगा?
मतदान का अधिकार: सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस प्रक्रिया में लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं, जिससे वे अपने मताधिकार (right to vote) का प्रयोग नहीं कर पाएंगे।
लोकतंत्र का आधार खतरे में? विपक्षी दलों की भी बढ़ी चिंता
आरजेडी (RJD) और कांग्रेस (Congress) जैसी विपक्षी पार्टियां भी इस अभियान को 'अलोकतांत्रिक' बताकर इसका पुरजोर विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि यह एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा है, जिसके तहत सरकार अपने विरोधियों के वोट कटवाना चाहती है। क्या यह सिर्फ राजनीतिक आरोप हैं या इसमें सच्चाई भी है?
याचिका में संविधान का हवाला
ADR की याचिका में दावा किया गया है कि यह विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 325 (धर्म, जाति, लिंग या निवास स्थान के आधार पर मतदाता सूची में किसी व्यक्ति के शामिल होने से इनकार न करना) और 326 (वयस्क मताधिकार) के खिलाफ है। इसके अलावा, इसे जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के प्रावधानों का भी उल्लंघन बताया गया है।
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and Fair Elections) हमारे लोकतंत्र की रीढ़ हैं। यदि इस प्रक्रिया में कोई भी गड़बड़ी होती है, तो यह सीधे तौर पर लोकतंत्र की नींव पर हमला होगा। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में क्या रुख अपनाता है, यह देखना अहम होगा। बिहार के करोड़ों मतदाताओं (voters) की निगाहें अब अदालत पर टिकी हैं। क्या उन्हें अपना मताधिकार मिलेगा या वे इससे वंचित रह जाएंगे?
सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है और सबकी निगाहें अदालत के फैसले पर टिकी हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के इस आदेश पर रोक लगाता है, तो इससे लाखों मतदाताओं को राहत मिलेगी। वहीं, यदि अदालत इस याचिका को खारिज करती है, तो बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक संकट पैदा हो सकता है।
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