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सोरेन को फंसाना चाह रहे थे बीजेपी के मरांडी, CJI ने डांटकर भगाया

CJI ने कहा- वोटर्स के सामने जाकर अपना हिसाब चुकता करो। हम अदालतों का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं होने दे सकते। हम नहीं चाहते कि हमारा इस्तेमाल राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए किया जाए।

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Shailendra Gautam
CJI BR Gavai

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः झारखंड के बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी पूरी तैयारी के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उनकी मंशा सूबे के सीएम हेमंत सोरेन के लिए कानूनी मुश्किलें पैदा करने की थी। लेकिन सीजेआई बीआर गवई ने उनको डांटकर भगा दिया। मरांडी की याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए उन्होंने कहा- वोटर्स के सामने जाकर अपना हिसाब चुकता करो। हम अदालतों का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं होने दे सकते। हम नहीं चाहते कि अवमानना याचिकाओं का इस्तेमाल राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए किया जाए।

डीजीपी की नियुक्ति पर भड़के थे मरांडी

बाबू लाल मरांडी झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को लेकर लंबे अरसे से भड़के हुए हैं। वो लगातार सरकार की आलोचना कर रहे हैं। उन्होंने एक बार तो ये भी कहा था कि डीजीपी से उनकी जान को खतरा है। अगर डीजीपी की तरफ से उनको कोई नुकसान होता है तो उन पर कार्रवाई भी नहीं हो पाएगी, क्योंकि वो तो रिटायर हो चुके हैं। इस मामले को लेकर ही वो सुप्रीम कोर्ट गए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को डीजीपी की नियुक्ति से जुड़ी एक अवमानना याचिका पर विचार करने से भी इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि हमारा इस्तेमाल राजनीतिक विवादों को निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता।

सीजेआई बोले- परेशानी है तो कैट जा सकते हैं

बेंच की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि अवमानना याचिकाएं राजनीतिक लग रही हैं। अगर किसी अधिकारी को पद से हटाया गया है या अवैध रूप से नियुक्ति से वंचित किया गया है तो संबंधित व्यक्ति कैट या अपने हाईकोर्ट का रुख कर सकता है।

मरांडी ने सुप्रीम कोर्ट में दो अवमानना याचिकाएं दायर की थीं। दूसरी चीफ सेक्रेट्री पर एक्शन की मांग को लेकर थी। उनका आरोप था कि मुख्य सचिव ने अनुराग गुप्ता को बचाने के लिए राज्य के नियम बदल डाले। अदालत ने दूसरी अवमानना याचिका पर भी विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अधिकारी सरकार के आदेश से परेशान है तो वो कानूनी रास्ता अपना सकता है। बेंच ने फिर से कहा कि जनहित याचिका की व्यवस्था शिकायतों के समाधान के लिए बनाई गई थी। इसका इस्तेमाल बदले के लिए नहीं दायर कर सकते।

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एडवोकेट बोले- 7 राज्यों ने बनाए एक्टिंग डीजीपी, सीजेआई का जवाब- तो फिर हम क्या करें

यह सुनवाई डीजीपी नियुक्तियों की प्रक्रिया से संबंधित एक व्यापक मामले का हिस्सा थी, जिस पर न्यायालय ने पहले विस्तृत निर्देश जारी किए थे। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद सरकारें कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करके नियमों को दरकिनार कर रहे हैं। उन्होंने कई राज्यों के उदाहरणों का हवाला देते हुए चयन प्रक्रिया में संशोधन का आग्रह किया। एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने भी कहा कि वर्तमान में कम से कम सात राज्यों में आदेशों का उल्लंघन करते हुए कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किए गए हैं।

सीजेआई ने सवाल किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट को ऐसी नियुक्तियों की निगरानी करनी चाहिए। उनका सवाल था कि क्या हमारे पास इन सभी मुद्दों की निगरानी करने की एक्सपरटाइज है? बेंच ने सुझाव दिया कि उच्च न्यायालयों को चाहिए कि हमारे पहले के निर्देशों के अनुपालन की निगरानी के लिए विशेष बेंच स्थापित करके सुनवाई करें।

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कार्यवाही के दौरान अदालत ने डीजीपी नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित कानून को चुनौती देने वाली झारखंड उच्च न्यायालय की एक रिट को वापस लेने की भी अनुमति दी। इसे सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित इसी तरह की याचिकाओं के साथ स्थानांतरित करके सुनवाई की जाएगी।

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