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डाक्टर की लिखावट समझ नहीं आती? चिंता मत करिए, कोर्ट ने निकाल लिया है समाधान

कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे कम्प्यूटरीकृत या टाइप किए गए नुस्खों को अपनाने तक मेडिकल पर्चे पर बड़े अक्षरों में लिखने की आदत डालें।

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Shailendra Gautam
DOCTORHEALTH

DOCTORHEALTH Photograph: (IANS)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः अक्सर लोगों की शिकायत रहती है कि डाक्टर्स की राइटिंग उन्हें समझ नहीं आती। जो दवाएं वो लिखते हैं लाख माथा पच्ची के बाद भी पता नहीं चल पाता है कि आखिर डाक्टर ने लिखा क्या था। लेकिन पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इसका समाधान निकाल लिया है। 

कहा- पढ़ा जा सकने वाला नुस्खा एक मौलिक अधिकार

अदालत ने माना है कि 'पढ़ा जा सकने वाला चिकित्सकीय नुस्खा' स्वास्थ्य के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है। जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से कहा कि वह देश भर के मेडिकल कॉलेजों में एक पाठ्यक्रम की शुरुआत करे, जिसके एक भाग में चिकित्सा नुस्खों की स्पष्ट लिखावट के महत्व को शामिल करने के लिए कदम उठाए।

अदालत ने कहा- संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है। इसमें आगे चलकर चिकित्सा नुस्खे, निदान व चिकित्सा दस्तावेजों और उपचार को जानने का अधिकार भी शामिल है। कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे कम्प्यूटरीकृत या टाइप किए गए नुस्खों को अपनाने तक मेडिकल पर्चे पर बड़े अक्षरों में लिखने की आदत डालें।

जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान लिया था स्वतः संज्ञान

अदालत ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया था। उस दौरान उसने एक मेडिकल-लीगल रिपोर्ट को अपठनीय पाया था। इस वर्ष फरवरी में न्यायालय ने यह माना था कि मरीजों को अपना मेडिकल पर्चा जानने का अधिकार है। हालांकि कोर्ट ने इस मुद्दे पर आईएमए से सहायता मांगी थी, लेकिन डॉक्टरों के संगठन की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। न्यायालय के आदेश के बाद, पंजाब और हरियाणा सरकारों ने सभी डॉक्टरों से बड़े अक्षरों में पर्चे लिखने को कहा। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में भी ये हो रहा है।

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कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट लिखावट एक अंतराल पैदा करती है, जिससे अक्षमताएं पैदा होती हैं। ये आसानी से उपलब्ध डिजिटल स्वास्थ्य  तकनीकों के लाभों को और सीमित कर देती है। हालांकि, न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक योग्य डॉक्टर के ज्ञान और पेशेवर कौशल की बराबरी या उसकी जगह कोई नहीं ले सकता।

आखिर में अदालत ने कहा कि वह डॉक्टरों और चिकित्सा पेशे के प्रति बेहद सम्मान रखता है। राष्ट्रीय सेवा के प्रति उनके समर्पण को स्वीकार करता है। लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत के लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाए।

उड़ीसा और उत्तराखंड में पहले से लागूी है नियम

गौरतलब है कि उड़ीसा और उत्तराखंड हाईकोर्ट्स ने पढ़े जा सकने वाले चिकित्सा नुस्खों पर इसी तरह के निर्देश जारी किए थे। 2018 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक डॉक्टर की खराब लिखावट के लिए 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।

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