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Chhattisgarh शराब घोटाला: ED का बड़ा खुलासा, टैक्सपेयर्स से अरबों की लूट! चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी से आया सियासी भूचाल | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आज शुक्रवार 18 जुलाई 2025 को छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में ईडी की ताबड़तोड़ कार्रवाई से हड़कंप मच गया है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी ने सवालों के घेरे में ला दिया है। क्या आपको पता है कि आपके ही टैक्स के पैसे से एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ है? जी हां! छत्तीसगढ़ में हुए एक शराब घोटाले ने पूरे देश को चौंका दिया है। क्या आप जानना चाहते हैं कि कैसे कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं ने मिलकर जनता के अरबों रुपये लूट लिए? कैसे उन्होंने शराब को कमाई का ज़रिया बना लिया? यह सिर्फ एक घोटाला नहीं, बल्कि हमारे भरोसे का भी हनन है।
आखिर कैसे 3200 करोड़ का यह महाघोटाला हुआ और कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं, आइए जानते हैं पूरी अनकही कहानी।
साल 2019 से 2023 के बीच, जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी, तब एक ऐसा खेल रचा गया जिसने राज्य के खजाने को अरबों का चूना लगा दिया। यह था छत्तीसगढ़ शराब घोटाला। आरोप है कि इस दौरान शराब की बिक्री और उत्पादन में बड़े पैमाने पर धांधली हुई, जिससे राज्य सरकार को 3200 करोड़ रुपये का भारी राजस्व नुकसान उठाना पड़ा। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की जनता के खून-पसीने की कमाई थी, जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।
चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी: क्या पूर्व सीएम की बढ़ेगी मुश्किल?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब 18 जुलाई 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी इस बात का संकेत है कि जांच एजेंसियां अब बड़े चेहरों पर शिकंजा कस रही हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या इस गिरफ्तारी से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं?
ED और राज्य की एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) तथा आर्थिक अपराध विंग (EOW) की जांच से पता चला है कि यह घोटाला सिर्फ कुछ अधिकारियों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें कई बड़े नाम और प्रभावशाली लोग शामिल थे।
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कौन-कौन हैं इस महाघोटाले के 'खिलाड़ी'?
इस घोटाले की परतें खुलने के साथ कई नाम सामने आए हैं, जिन्होंने मिलकर राज्य के खजाने को लूटा। इनमें कुछ प्रमुख नाम ये हैं:
अनिल टुटेजा: तत्कालीन संयुक्त सचिव, वाणिज्य एवं उद्योग विभाग, छत्तीसगढ़ शासन। इन्हें इस पूरे सिंडिकेट का अहम सदस्य माना जाता है।
अनवर ढेबर: रायपुर के पूर्व मेयर के भाई। आरोप है कि इन्होंने पूरे रैकेट को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अरुणपति त्रिपाठी: प्रबंध संचालक, छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CSMCL)। इन पर शराब वितरण में अनियमितताओं का आरोप है।
कवासी लखमा: तत्कालीन आबकारी मंत्री। हालांकि, वे खुद को बेकसूर बताते हैं, लेकिन उन पर भी चार्जशीट में गंभीर आरोप हैं।
निरंजनदास: आईएएस, तत्कालीन आबकारी आयुक्त।
चैतन्य बघेल: पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे, 18 जुलाई 2025 को गिरफ्तार हुए।
इनके अलावा, कई अन्य आबकारी अधिकारी, शराब कारोबारी और निजी व्यक्ति भी इस सिंडिकेट का हिस्सा बताए जाते हैं, जिन्होंने इस छत्तीसगढ़ शराब घोटाला को अंजाम दिया।
कब और कैसे हुआ यह घोटाला? 2161 करोड़ से 3200 करोड़ तक का सफर
ED के अनुसार, छत्तीसगढ़ शराब घोटाला 2019 में शुरू हुआ और 2022 तक चलता रहा। शुरुआत में ED ने इसे करीब 2,161 करोड़ रुपये का घोटाला बताया था, लेकिन ACB और EOW की जांच में यह रकम बढ़कर 3,200 करोड़ रुपये हो गई।
सोचिए, ये सिर्फ कागजी आंकड़े नहीं हैं, बल्कि वो पैसा है जो राज्य के विकास पर खर्च हो सकता था, शिक्षा पर, स्वास्थ्य पर, या गरीबों की मदद पर। लेकिन, ये पैसा भ्रष्टाचारियों की जेब में चला गया।
घोटाले के सबूत: नकली होलोग्राम और कमीशनखोरी का जाल
जांच एजेंसियों को इस छत्तीसगढ़ शराब घोटाला के कई पुख्ता सबूत मिले हैं, जो इसकी भयावहता को दर्शाते हैं।
कमीशन वसूलना: आरोप है कि शराब की हर पेटी पर एक निश्चित कमीशन वसूला जाता था। यह कमीशन ऊपर से नीचे तक, सब तक पहुंचता था।
नकली होलोग्राम का इस्तेमाल: यह सबसे चौंकाने वाला पहलू है। आरोप है कि नोएडा की एक कंपनी, प्रिज्म होलोग्राफी सिक्योरिटी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड, को नकली होलोग्राम बनाने का टेंडर दिया गया, जबकि वह इसके लिए पात्र नहीं थी। नियमों को ताक पर रखकर यह टेंडर दिया गया क्योंकि यह कंपनी छत्तीसगढ़ के एक नौकरशाह से जुड़ी थी। ये नकली होलोग्राम सरकारी शराब की दुकानों पर इस्तेमाल किए जाते थे, जिससे अवैध शराब की बिक्री को वैध दिखाया जा सके।
घूसखोरी और कार्टेल: शराब निर्माताओं से रिश्वत लेकर एक कार्टेल बनाया गया, जिससे बाजार में कुछ खास कंपनियों का एकाधिकार हो सके और वे मनमानी कीमतें वसूल सकें।
यह सब सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं था, बल्कि यह राज्य की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने की कोशिश थी।
कौन-कौन कर रहा है इस बड़े मामले की जांच?
इस छत्तीसगढ़ शराब घोटाला की जांच कई एजेंसियां मिलकर कर रही हैं:
प्रवर्तन निदेशालय (ED): यह मनी लॉन्ड्रिंग के पहलुओं की जांच कर रही है और करोड़ों रुपये के लेनदेन का पता लगा रही है। ED ने ही चैतन्य बघेल समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया है।
राज्य की एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB): यह भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है।
राज्य की आर्थिक अपराध विंग (EOW): यह आर्थिक अपराधों और अनियमितताओं पर नजर रख रही है।
इन एजेंसियों की लगातार कार्रवाई से ही इस बड़े घोटाले की परतें खुल रही हैं।
अब तक कितनी FIR और चार्जशीट दाखिल?
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए कई FIR दर्ज की गई हैं। जानकारी के अनुसार, ACB ने 71 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की थी। इसके अलावा, ED ने भी अपनी जांच के आधार पर मामले दर्ज किए हैं और अब तक कुल पांच चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। इन चार्जशीट में कई अधिकारियों, कारोबारियों और राजनेताओं के नाम शामिल हैं।
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कहां-कहां चल रहा है मामला? अदालतों में भी गहमागहमी
छत्तीसगढ़ शराब घोटाला का मामला विभिन्न अदालतों में चल रहा है।
विशेष पीएमएलए कोर्ट: ED द्वारा गिरफ्तार किए गए आरोपियों का मामला यहीं चल रहा है, जहां मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप पर सुनवाई हो रही है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट: कुछ आरोपियों ने जमानत याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर सुनवाई जारी है।
सुप्रीम कोर्ट: कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई है, खासकर जमानत याचिकाओं के संबंध में। एक मौके पर सुप्रीम कोर्ट ने ED को बिना पुख्ता सबूतों के आरोप लगाने पर फटकार भी लगाई थी, जिससे जांच एजेंसियों पर और बेहतर तरीके से काम करने का दबाव बढ़ा है।
राज्य को कैसे पहुंचाया गया 3200 करोड़ का नुकसान?
ED के अनुसार, इस घोटाले से छत्तीसगढ़ के खजाने को लगभग 2,161 करोड़ रुपये का सीधा नुकसान हुआ, क्योंकि यह राशि राज्य सरकार के राजस्व के रूप में आनी चाहिए थी। ACB और EOW की जांच के बाद यह अनुमानित नुकसान 3,200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
यह नुकसान मुख्य रूप से इन तरीकों से हुआ
शराब नीति में बदलाव: सिंडिकेट ने शराब नीति में ऐसे बदलाव किए, जिनसे उन्हें व्यक्तिगत लाभ मिल सके।
कमीशनखोरी: अवैध रूप से वसूले गए कमीशन से सरकार को राजस्व का बड़ा हिस्सा नहीं मिला।
अवैध शराब की बिक्री: सरकारी दुकानों से बिना शुल्क चुकाई गई शराब की बिक्री से भी राज्य को राजस्व का भारी नुकसान हुआ।
यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के हर नागरिक का नुकसान है।
चार्जशीट का खुलासा: संगठित सिंडिकेट और 64 करोड़ का कमीशन!
चार्जशीट के अनुसार, यह छत्तीसगढ़ शराब घोटाला एक अत्यंत संगठित सिंडिकेट द्वारा चलाया गया था। इसमें उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारी, राजनेता, उनके सहयोगी और आबकारी विभाग के अधिकारी शामिल थे।
ये हैं मुख्य आरोप
कमीशन पर अवैध बिक्री: शराब की हर पेटी पर अवैध कमीशन वसूलने के लिए एक समानांतर व्यवस्था बनाई गई थी।
नकली होलोग्राम: सरकारी दुकानों पर नकली होलोग्राम वाली शराब बेची गई, जिससे राजस्व का एक बड़ा हिस्सा निजी जेबों में चला गया।
नीतिगत बदलाव: सिंडिकेट ने शराब नीति में बदलाव किए ताकि उन्हें अधिकतम व्यक्तिगत लाभ मिल सके।
सरकारी खजाने को नुकसान: जो पैसा राज्य के खजाने में जाना चाहिए था, वह भ्रष्टाचार के माध्यम से सिंडिकेट के सदस्यों के पास चला गया।
चार्जशीट में 29 आबकारी अधिकारियों (जिला अधिकारी, सहायक आयुक्त, उप आयुक्त) को भी आरोपी बनाया गया है, जिनमें कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल हैं। सबसे सनसनीखेज आरोप पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा पर है, जिन पर चार्जशीट के अनुसार शराब घोटाले से 64 करोड़ रुपये कमीशन मिलने का आरोप है।
इस छत्तीसगढ़ शराब घोटाला ने न सिर्फ राज्य की आर्थिक व्यवस्था को चोट पहुंचाई है, बल्कि जनता के भरोसे को भी तोड़ दिया है। उम्मीद है कि जांच एजेंसियां इस मामले की तह तक जाकर दोषियों को कड़ी सजा दिलाएंगी, ताकि भविष्य में कोई भी जनता के पैसे से ऐसा खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके।
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