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CEC और EC की नियुक्ति पर Supreme Court जल्द सुनवाई को राजी, सरकार की प्रक्रिया पर उठे सवाल

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्तियों को लेकर उठे संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट अब 14 मई को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई वर्ष 2023 में लागू किए गए उस नए कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर होगी

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Ranjana Sharma
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नई दिल्ली,  वाईबीएन नेटवर्क: देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्तियों को लेकर उठे संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट अब 14 मई को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई वर्ष 2023 में लागू किए गए उस नए कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर होगी, जिसके तहत प्रधान न्यायाधीश (CJI) को नियुक्ति समिति से बाहर कर दिया गया था। सुनवाई की यह तारीख सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की याचिका पर तय की। भूषण ने इस मामले में जल्द सुनवाई की मांग की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए एक विशेष पीठ की सुनवाई को स्थगित कर इस मामले को 14 मई को सुनने का फैसला लिया।
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क्या है मामला?

वर्ष 2023 में पारित कानून के तहत अब चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक तीन सदस्यीय पैनल द्वारा की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री होते हैं। CJI को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया, जबकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आदेश दिया था कि चयन समिति में CJI की मौजूदगी जरूरी है। NGO 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' की ओर से पेश अधिवक्ता भूषण ने अदालत से पूछा कि क्या केंद्र सरकार संविधान पीठ के फैसले को दरकिनार कर 2023 के कानून को लागू कर सकती है? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इस कानून के जरिए लोकतंत्र का मजाक बना रही है। supreme court | ED Supreme Court news

अब तक के घटनाक्रम

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  • 17 फरवरी 2024: केंद्र सरकार ने ज्ञानेश कुमार को नए कानून के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया। वे 26 जनवरी 2029 तक पद पर बने रहेंगे।
  • विवेक जोशी, 1989 बैच के हरियाणा कैडर के IAS, को चुनाव आयुक्त बनाया गया है। उनका कार्यकाल वर्ष 2031 तक होगा।
  • 15 मार्च 2024: सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्तियों पर रोक लगाने से इनकार किया लेकिन सुनवाई स्थगित कर दी थी।
  • 16 अप्रैल 2024: अदालत ने अब 14 मई को इस संवैधानिक विवाद पर सुनवाई की घोषणा की।

प्रशांत भूषण का तर्क

भूषण का कहना है कि यह विवाद सिर्फ एक राजनीतिक नहीं, बल्कि एक संवैधानिक व्याख्या का मामला है। क्या संसद द्वारा पारित नया कानून संविधान पीठ के फैसले पर प्राथमिकता पा सकता है? या फिर CJI की अनिवार्य उपस्थिति वाली चयन प्रक्रिया को बहाल करना होगा?
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