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CM योगी की सख्त चेतावनी, गजवा-ए-हिंद का मकसद क्‍या? क्या कहता है दारूल उलूम देवबंद?

यंग भारत न्यूज के इस एक्सप्लेनर में यूपी के सीएम योगी बलरामपुर में 'गजवा-ए-हिंद' की अवधारणा पर सख्त चेतावनी दी। इसे 'नरक का टिकट' बताते हुए अराजकता फैलाने वालों को कड़ी कार्रवाई की धमकी दी। जानें क्या है गजवा-ए-हिंद।

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Ajit Kumar Pandey
CM योगी की सख्त चेतावनी, गजवा-ए-हिंद का मकसद क्‍या? क्या कहता है दारूल उलूम देवबंद? | यंग भारत न्यूज

CM योगी की सख्त चेतावनी, गजवा-ए-हिंद का मकसद क्‍या? क्या कहता है दारूल उलूम देवबंद? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क |उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलरामपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए एक ऐसी चेतावनी दी, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। उन्होंने कहा, "गज़वा-ए-हिंद की कल्पना करना, इसके बारे में सपना देखना भी नरक का टिकट बन जाएगा।" 

यह बयान हाल की बरेली हिंसा और 'आई लव मुहम्मद' पोस्टर विवाद के बीच आया, जहां अराजकता और दंगों को भड़काने वालों को निशाना बनाया गया। सीएम योगी ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि भारत की धरती पर ऐसी कट्टरपंथी कल्पनाओं को जगह नहीं मिलेगी। 

लेकिन, सवाल यह है कि आखिर गज़वा-ए-हिंद क्या है? यह इस्लामी साहित्य में कैसे उल्लेखित है? कौन से समूह इसे भारत के खिलाफ हथियार बना रहे हैं? 

यंग भारत न्यूज के इस एक्सप्लेनर में हम गज़वा-ए-हिंद की उत्पत्ति, धार्मिक संदर्भों, ऐतिहासिक संबंधों और वर्तमान संदर्भों को खंगालेंगे ताकि पाठक इस संवेदनशील मुद्दे को गहराई से समझ सकें कि आखिर सच क्या है... 

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सीएम योगी की चेतावनी: अराजकता के खिलाफ दो टूक संदेश 

उत्तर प्रदेश में हाल के दिनों में धार्मिक संवेदनशीलता को लेकर कई घटनाएं घटी हैं। बरेली में 'आई लव मुहम्मद' पोस्टर को लेकर हुई हिंसा ने राज्य सरकार को सतर्क कर दिया। इसी क्रम में 28 सितंबर 2025 को बलरामपुर पहुंचे सीएम योगी ने एक विशाल जनसभा में कहा, "यूपी में अराजकता और दंगा करने वालों को मैं जहन्नुम का टिकट दूंगा। गज़वा-ए-हिंद की कल्पना करने वाले नरक की राह पर हैं।" 

सीएम योगी का यह बयान न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बन गया। सीएम योगी का कहना है कि ऐसी कट्टरपंथी विचारधाराएं राज्य की शांति को भंग करने का प्रयास कर रही हैं। इन्हें कड़ाई से कुचला जाएगा। 

यह चेतावनी केवल एक राजनीतिक बयान नहीं बल्कि एक गहरी वैचारिक चुनौती का प्रतीक है। गजवा-ए-हिंद जैसी अवधारणा को कुछ कट्टरपंथी समूह भारत के खिलाफ जिहाद का औजार बनाते हैं। 

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गजवा-ए-हिंद को कहां से मिली मान्यता!

फरवरी 2024 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में स्थित देश की सबसे बड़ी इस्लामी संस्था दारुल उलूम देवबंद ने गजवा-ए-हिंद को मान्यता दे दी है। इस्लामी संस्था ने अपनी वेबसाइट के ज़रिए एक फ़तवा जारी किया है, जिसमें गजवा-ए-हिंद को इस्लामी नज़रिए से जायज़ बताया गया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने इस फ़तवे को राष्ट्रविरोधी बताते हुए कार्रवाई की।

दारुल उलूम देवबंद क्या है?

दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 30 मई, 1866 को हाजी आबिद हुसैन और मौलाना कासिम नानोतवी ने की थी। दारुल उलूम एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है "ज्ञान का घर"। इसलिए, भारत और दुनिया भर के कई देशों से छात्र यहां इस्लाम का अध्ययन करने आते हैं।

गजवा-ए-हिंद के बारे में जानें

गजवा-ए-हिंद में, "गज़वा" का अर्थ है "इस्लाम के प्रसार के लिए युद्ध"। इस युद्ध में शामिल इस्लामी लड़ाकों को "गाज़ी" कहा जाता है। मोटे तौर पर, ग़ज़वा-ए-हिंद का अर्थ युद्ध के माध्यम से भारत में इस्लाम की स्थापना करना है। 

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इसका अर्थ भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले काफिरों पर विजय प्राप्त करके उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करना भी है। इसका अर्थ दुनिया के इस हिस्से में रहने वाले लोगों के साथ युद्ध करना भी है। सरल शब्दों में, ग़ज़वा-ए-हिंद का अर्थ है युद्ध में भारत पर विजय प्राप्त करना और उसका इस्लामीकरण करना।

गजवा-ए-हिंद कहां से आया?

इस्लाम में, दुनिया दो भागों में विभाजित है: एक जहां इस्लाम के अनुयायी शासन करते हैं। दूसरा, जहां इस्लाम के अनुयायी रहते हैं, लेकिन एक अलग धर्म द्वारा शासित होते हैं। इस्लाम में, मुस्लिम शासन वाले देश को दारुल इस्लाम कहा जाता है। गैर-मुस्लिम शासन वाले देश को दारुल हरब कहा जाता है।

यह अपने फतवों के लिए चर्चा में रहता है।

दारुल उलूम के कारण, देवबंद को फतवों का शहर भी कहा जाता है। दारुल उलूम द्वारा जारी किए गए फतवे दुनिया भर के मुसलमानों को शरीयत की रोशनी में मार्गदर्शन करते हैं। दारुल उलूम के फतवा विभाग द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 7,000-8,000 फतवे जारी किए जाते हैं।

यह अंतिम काल (कयामत) की घटनाओं का हिस्सा माना जाता है, जहां यह युद्ध शुभ कार्यों में भाग लेने वालों के लिए जन्नत का द्वार खोलता है। 

हालांकि, विद्वानों में इसकी व्याख्या पर मतभेद हैं। कुछ उलेमा जैसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के विद्वान इसे सैन्य विजय के बजाय आध्यात्मिक संघर्ष मानते हैं- जैसे भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम का प्रसार या नैतिक विजय। 

लेकिन, कट्टरपंथी समूह इसे शाब्दिक अर्थ में लेते हैं, भारत को 'काफिरों की भूमि' बताते हुए जिहाद का आह्वान करते हैं। यह अवधारणा दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक तनाव को और गहरा बनाती है, खासकर भारत-पाकिस्तान संबंधों में। 

गजवा-ए-हिंद की उत्पत्ति: कब और कहां से शुरू हुई यह कल्पना? 

गजवा-ए-हिंद की जड़ें सातवीं शताब्दी के इस्लामी ग्रंथों में हैं, जब पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के काल में हदीसें संकलित हो रही थीं। लेकिन, आधुनिक संदर्भ में इसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी के अंत में पाकिस्तान से जुड़ी है। 

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने साल 1980 के दशक में अफगान जिहाद के बाद इस अवधारणा को पुनर्जीवित किया ताकि कश्मीर और भारत के खिलाफ लड़ाकों को प्रेरित किया जा सके। 

ऐतिहासिक रूप से मुस्लिम आक्रमणों (13वीं से 18वीं शताब्दी) को गजवा-ए-हिंद का हिस्सा माना जाता है, जैसे महमूद गजनवी के अभियान या मुगल साम्राज्य की स्थापना। लेकिन भविष्यवाणी के रूप में यह हदीसों से आती है। 

साल 1990 के दशक में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे समूहों ने इसे अपनी वैचारिक नींव बनाया। 

साल 2014 में अल-कायदा ने 'अल-कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट' (एक्यूआईएस) का गठन कर इसे बढ़ावा दिया। 

साल 2022 में पटना (फुलवारी शरीफ) की एक छापेमारी में एनआईए ने “भारत को 2047 तक इस्लामिक देश बनाने” की साजिश और गजवा-ए-हिंद समूह को सक्रिय पाया। 

वर्तमान में, यह सोशल मीडिया और वीडियो के माध्यम से प्रचारित हो रहा है, जहां फरहतुल्लाह घोरि जैसे आतंकी नेता भारत में हमलों का आह्वान करते हैं। 

यह कल्पना अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक हथियार बन चुकी है। पाकिस्तान-आधारित समूह इसे भारत के खिलाफ 'पवित्र युद्ध' के रूप में पेश करते हैं, जो क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालती है। 

कुरान और हदीसों में गजवा-ए-हिंद: संदर्भ और विवाद 

सबसे महत्वपूर्ण सवाल: क्या कुरान में गज़वा-ए-हिंद का जिक्र है? विद्वानों के अनुसार, कुरान में इसका कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है। कुरान शांति, न्याय और सह-अस्तित्व पर जोर देता है, न कि किसी विशिष्ट क्षेत्रीय विजय पर। 

कुछ व्याख्याकार सूरह अल-अनफाल (8:39) या सूरह अत-तौबा (9:29) का हवाला देते हैं, जो सामान्य जिहाद के संदर्भ में हैं, लेकिन ये गज़वा-ए-हिंद से सीधे जुड़े नहीं। 

हदीसों में यह अधिक स्पष्ट है, हालांकि कई कमजोर (दईफ) मानी जाती हैं। 

प्रमुख संदर्भ निम्नलिखित हैं...

सुनन अल-नसाई (3173): थौबान (रज़ि.) से रिवायत— "रसूल अल्लाह (सल्ल.) ने कहा, 'दो समूह हैं जिन्हें अल्लाह जिहाद में जन्नत देगा: सीरिया का समूह और हिंद का समूह।'" यह हदीस अहमद शाकिर द्वारा सहीह मानी गई है। 

मुसनद अहमद: इमाम अहमद द्वारा संकलित, जिसमें हिंद विजय का वर्णन है। इमाम हम्बल ने इसे सहीह कहा। 

सहीह मुस्लिम (किताब 41, हदीस 6985): अंतिम काल में हिंद पर युद्ध का उल्लेख, जहां भाग लेने वाले जन्नत पाते हैं। 

अल-बैहकी और अन-नसाई: थौबान से— "हिंद पर गज़वा होगा, और जो इसमें शामिल होगा, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।" यह हसन (अच्छी) श्रेणी की है। 

ये हदीसें मुख्य रूप से दईफ श्रृंखला वाली हैं, लेकिन कुछ विद्वान उन्हें सही मानते हैं। विवाद यह है कि इन्हें कयामत की निशानियों से जोड़ा जाता है, न कि वर्तमान राजनीतिक युद्ध से। 

इस्लामिक विद्वान उलेमा यासिर कादियानी का कहना है कि यह अतिशयोक्ति है, और वास्तविक अर्थ आध्यात्मिक सुधार का है। 

मुख्यधारा के इस्लामी विद्वान जावेद गामिदी और मौलाना वारिस मजहरी इसे असत्यापित और आधुनिक जिहादी प्रचार बताते हैं।

कौन लाना चाहता है गजवा-ए-हिंद? 

आतंकी समूहों की भूमिका गजवा-ए-हिंद को बढ़ावा देने वाले मुख्यतः पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन हैं। लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) ने 1990 से इसे अपनी भर्ती का हथियार बनाया, कश्मीर हमलों को 'पवित्र' बताते हुए। 

अल-कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट (एक्यूआईएस) ने अपनी पत्रिका का नाम ही 'गजवा-ए-हिंद' रखा, भारत में हमलों को उकसाने के लिए। 

अंसार गजवात-उल-हिंद (एजीएच), हिज्बुल मुजाहिदीन का एक धड़ा, कश्मीर में सक्रिय है और भारत को निशाना बनाता है। 

इंडियन मुजाहिदीन और आईएसआईएस जैसे समूह भी इसे प्रचारित करते हैं। ये संगठन आईएसआई के संरक्षण में काम करते हैं, जो इसे भारत-विरोधी प्रचार के लिए इस्तेमाल करता है। 

भारत सरकार ने इन सभी को प्रतिबंधित किया है, लेकिन सोशल मीडिया पर इनका प्रसार जारी है। 

गजवा-ए-हिंद का भारत से रिश्ता: ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भ 

भारत का गजवा-ए-हिंद से गहरा ऐतिहासिक संबंध है। 8वीं शताब्दी से मुहम्मद बिन कासिम के सिंध अभियान को इसकी शुरुआत माना जाता है, जो मुस्लिम साम्राज्यों की नींव रखा। दिल्ली सल्तनत और मुगल काल को भी इस भविष्यवाणी की पूर्ति कहा जाता है। लेकिन आधुनिक भारत में यह विभाजनकारी हो गया। 

1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान ने इसे अपनी वैचारिक पहचान बनाया, जबकि भारत में बहुलवाद प्रमुख है। वर्तमान में, यह अवधारणा जम्मू-कश्मीर, नक्सल क्षेत्रों और सीमावर्ती राज्यों में आतंकी गतिविधियों को प्रेरित करती है। 26/11 मुंबई हमलों से लेकर पुलवामा तक, कई घटनाओं में इसका उल्लेख मिला। 

विशेषज्ञों का मानना है कि यह हिंदुत्व-जिहाद द्वंद्व को बढ़ावा देता है, लेकिन अधिकांश भारतीय मुसलमान इसे अस्वीकार करते हैं। 

शांति की राह पर एकजुट भारत सीएम योगी की चेतावनी एक सतर्कता का संदेश है, जो कट्टरपंथ के खिलाफ खड़ा होता है। गजवा-ए-हिंद, जो मूल रूप से एक धार्मिक भविष्यवाणी है, आज हिंसा का औजार बन गई है। लेकिन, भारत की विविधता इसे नाकाम कर सकती है। सरकारें, उलेमा और समाज को मिलकर इसकी गलत व्याख्या को रोकना होगा। 

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