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सुप्रीम कोर्ट के बाहर वकील से भिड़े डॉग लवर्स फिर शुरू हुआ दे दनादन...दे दनादन... | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।सुप्रीम कोर्ट के बाहर एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां आवारा कुत्तों को लेकर दिए गए फैसले से नाराज डॉग लवर्स और वकीलों के बीच जमकर झड़प हुई। बात कहासुनी से शुरू होकर मारपीट तक पहुंच गई, जिसका एक वीडियो भी वायरल को रहा है। इस घटना ने देश में आवारा कुत्तों की समस्या पर चल रही बहस को और गहरा कर दिया है।
आपको बता दें कि दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने एक नई बहस छेड़ दी है। जहां कुछ लोग इस फैसले से खुश हैं, वहीं पशु प्रेमी और कार्यकर्ता इसे क्रूर और अव्यवहारिक बता रहे हैं। इसी फैसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के बाहर हंगामा मच गया। डॉग लवर्स और वकीलों के बीच तीखी बहस हुई, जो जल्द ही हाथापाई में बदल गई। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दोनों पक्षों को एक-दूसरे से भिड़ते हुए देखा जा सकता है।
कोर्ट के बाहर हंगामा, वकीलों और डॉग लवर्स में मारपीट
यह घटना उस दिन की है जब सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों के मुद्दे पर सुनवाई चल रही थी। कोर्ट के बाहर बड़ी संख्या में डॉग लवर्स और पशु अधिकार कार्यकर्ता जमा थे। वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे थे। इसी बीच उनकी वहां मौजूद वकीलों से किसी बात पर बहस हो गई। वीडियो में देखा जा सकता है कि गुस्से में दोनों पक्ष एक-दूसरे पर चिल्ला रहे हैं, अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और फिर एक-दूसरे से हाथापाई करने लगते हैं। कुछ लोग बीच-बचाव करने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन गुस्सा इतना ज्यादा था कि दोनों पक्षों को शांत करना मुश्किल हो रहा था। यह घटना दिखाती है कि आवारा कुत्तों की समस्या अब केवल कानून का नहीं, बल्कि भावनाओं और गुस्से का भी मुद्दा बन गई है।
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— द भारत खबर (@thebharatkhabar) August 11, 2025
आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज पशु प्रमियों की वकील से जोरदार बहस, हाथापाई तक आई नौबत pic.twitter.com/MtXAaWyOKo
क्या कोर्ट का फैसला सही है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि दिल्ली-एनसीआर में कोई भी आवारा कुत्ता सड़क पर नहीं दिखना चाहिए। सभी को शेल्टर होम भेजा जाए। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर कोई इस फैसले में बाधा डालने की कोशिश करेगा, तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह फैसला उन लोगों के लिए राहत लेकर आया है जो आए दिन आवारा कुत्तों के हमले का शिकार होते हैं, खासकर बच्चे और बुजुर्ग। हाल के दिनों में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है, जिससे लोगों में डर का माहौल है। लेकिन, डॉग लवर्स का तर्क है कि यह फैसला अमानवीय और अव्यवहारिक है।
मेनका गांधी ने उठाए सवाल, बताया क्यों गलत है यह फैसला
पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इस फैसले को आर्थिक रूप से अव्यावहारिक बताया है।
बड़ा खर्च: मेनका गांधी के अनुसार, अकेले दिल्ली में लगभग 3 लाख आवारा कुत्ते हैं। इन सभी को शेल्टर होम में रखने के लिए हजारों शेल्टर होम बनाने पड़ेंगे, जिस पर करोड़ों रुपये का खर्च आएगा।
जगह की कमी: शेल्टर होम बनाने के लिए बड़ी मात्रा में जमीन की जरूरत होगी, जिसकी दिल्ली जैसे शहर में कमी है।
देखभाल का खर्च: कुत्तों के खाने, इलाज और देखभाल पर सालाना हजारों करोड़ रुपये खर्च होंगे। क्या सरकार के पास इतना बड़ा बजट है?
पारिस्थितिक संतुलन: आवारा कुत्तों को हटाना पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।
मेनका गांधी के ये तर्क इस बात पर जोर देते हैं कि आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान केवल उन्हें सड़कों से हटाने में नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक और व्यावहारिक योजना बनाने में है।
आम जनता की राय : फैसला सही या गलत?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर आम जनता की राय भी बंटी हुई है। एक तरफ वो लोग हैं जो आए दिन आवारा कुत्तों के आतंक से परेशान हैं। उनके लिए यह फैसला एक बड़ी राहत है। उनका कहना है कि शहर की सड़कों पर कुत्तों का झुंड चलना खतरनाक है और सरकार को इस पर लगाम लगानी चाहिए।
वहीं, दूसरी तरफ वे लोग हैं जो कुत्तों से प्यार करते हैं और उन्हें खिलाते-पिलाते हैं। उनका मानना है कि आवारा कुत्ते भी इंसानों की तरह इस धरती का हिस्सा हैं और उनके साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि अगर कुत्तों को सही तरीके से नसबंदी और टीकाकरण किया जाए तो यह समस्या खुद-ब-खुद कम हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आवारा कुत्तों पर भड़का गुस्सा सड़कों पर भी दिख रहा है। डॉग लवर्स और वकीलों की झड़प इसका ताजा उदाहरण है। यह घटना दिखाती है कि आवारा कुत्तों की समस्या अब सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है। अब देखना यह है कि इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाता है।
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