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कोर्ट की डीएम को चेतावनी Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश और अन्य ब्रांड्स के च्यवनप्राश के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक विज्ञापन दिखाने से रोक दिया है। अदालत ने माना कि पतंजलि के टीवी और प्रिंट विज्ञापनों में डाबर की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले बयान दिए गए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि टीवी और डिजिटल विज्ञापनों का आम लोगों पर सीधा असर होता है, इसलिए ऐसे विज्ञापन भ्रामक या अपमानजनक नहीं होने चाहिए।
विज्ञापन से ऐसी लाइन हटाए पतंजलि
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने डाबर की अंतरिम याचिका स्वीकार की, जिसमें उन्होंने पतंजलि पर गलत तरीके से अपने उत्पाद को बेहतर दिखाने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने पतंजलि को कहा कि वह अपने प्रिंट विज्ञापन से “40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से क्यों संतुष्ट हों?” जैसी लाइन हटाए। टीवी विज्ञापनों में भी बदलाव के निर्देश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि पतंजलि को "जिनको आयुर्वेद या वेदों का ज्ञान नहीं है..." और "तो साधारण च्यवनप्राश क्यों?" जैसी पंक्तियां भी हटानी होंगी।
विज्ञापन भ्रम पैदा करते हैं
न्यायाधीश ने कहा कि ये विज्ञापन यह भ्रम पैदा करते हैं कि केवल पतंजलि को ही आयुर्वेद और वेदों का सही ज्ञान है और वही असली च्यवनप्राश बना सकती है। जबकि सच्चाई यह है कि कोई भी कंपनी जो सरकार द्वारा तय किए गए नियमों और आयुर्वेदिक किताबों के अनुसार च्यवनप्राश बना रही है, वह वैध और सही है।
दूसरों के उत्पाद को नीचा दिखाना गलत
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी उत्पाद की तारीफ करना गलत नहीं है, लेकिन दूसरों के उत्पाद को गलत बताना और झूठी बातें फैलाना कानूनन गलत है। डाबर ने अपनी याचिका में कहा था कि पतंजलि के विज्ञापन से डाबर की साख को नुकसान पहुंचा है और पतंजलि जानबूझकर डाबर और बाकी च्यवनप्राश उत्पादों की छवि खराब कर रही है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी। Delhi high court