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Dihuli Massacre Verdict: 44 साल में न्याय, हैवानों को मिली फांसी, जानें पूरी कहानी? डकैतों के एक गिरोह ने दिया था घटना को अंजाम

दिहुली गांव में 1981 में हुए दिल दहला देने वाले हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस नरसंहार में 24 दलितों को गोलियों से भून दिया गया था। 44 साल बाद, 18 मार्च 2025 को, इस क्रूर हत्याकांड के तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है।

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Ajit Kumar Pandey
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फिरोजाबाद, वाईबीएन नेटवर्क ।

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दिहुली गांव में 1981 में हुए दिल दहला देने वाले हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस नरसंहार में 24 दलितों को गोलियों से भून दिया गया था। 44 साल बाद, 18 मार्च 2025 को, इस क्रूर हत्याकांड के तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। साथ ही दो दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। सजा सुनते ही तीनों के चेहरों पर मायूसी छा गई। यह रोने लगे। इस फैसले से पीड़ितों के परिवारों को कुछ हद तक न्याय मिला है।

दिहुली हत्याकांड की पृष्ठभूमि

18 नवंबर 1981 की शाम, फिरोजाबाद जिले के जसराना थाना क्षेत्र के दिहुली गांव में संतोष और राधे के नेतृत्व में डकैतों के एक गिरोह ने हमला किया। यह गिरोह कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों से जुड़ा हुआ था। हमलावर पुलिस की वर्दी में थे और हथियारों से लैस थे। उन्होंने दलितों की बस्ती को घेर लिया और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इस नरसंहार में 24 दलित मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।

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नरसंहार का कारण

कहा जाता है कि इस नरसंहार का मुख्य कारण एक मुकदमे में गवाही देना था। दरअसल, दलित समुदाय के कुछ लोगों ने डकैतों के खिलाफ एक मुकदमे में गवाही दी थी, जिससे डकैतों का गिरोह नाराज हो गया था। बदले की भावना से, उन्होंने दिहुली गांव पर हमला किया और निर्दोष दलितों को मौत के घाट उतार दिया।

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इन नेताओं ने किया था गांव का दौरा

इस नरसंहार ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृहमंत्री बीपी सिंह, मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई प्रमुख नेताओं ने दिहुली गांव का दौरा किया और पीड़ितों के परिवारों को सांत्वना दी। सरकार ने इस घटना की जांच के आदेश दिए और पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा दिया।

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44 वर्षों तक चली न्यायिक प्रक्रिया

दिहुली हत्याकांड मामले में 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था। हालांकि, 44 वर्षों की लंबी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान, 13 आरोपियों की मौत हो गई। एक आरोपी, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, अभी भी फरार है और उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी किया गया है। शेष तीन आरोपियों, कप्तान सिंह, रामपाल और रामसेवक को 11 मार्च 2025 को मैनपुरी की एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराया। 18 मार्च 2025 को, अदालत ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।

पीड़ितों के परिवारों की आई प्रतिक्रिया

44 साल बाद न्याय मिलने पर पीड़ितों के परिवारों ने संतोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का संतोष है कि आखिरकार उन्हें न्याय मिला है, भले ही इसमें इतना लंबा समय लगा हो। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उनके प्रियजनों को खोने का दर्द कभी कम नहीं होगा। कई पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद छोड़ कर गांव से पलायन कर गए थे और अब केवल तीन परिवार ही गांव में रह रहे हैं। 90 वर्षीय जय देवी ने कहा कि वह अपने परिवार के सदस्यों को खोने का दर्द कभी नहीं भूल सकतीं।

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दिहुली गांव के ताजा हालात

दिहुली हत्याकांड के बाद, गांव में दलितों और ऊंची जाति के लोगों के बीच तनाव बढ़ गया था। हालांकि, समय के साथ, स्थिति में सुधार हुआ है। आज, गांव में शांति है, लेकिन हत्याकांड की यादें अभी भी लोगों के दिलों में ताजा हैं।

न्याय में देरी के कारण

दिहुली हत्याकांड मामले में न्याय में देरी के कई कारण थे। इनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं:

  • गवाहों का अभाव: कई गवाह डर के कारण गवाही देने के लिए आगे नहीं आए।
  • जांच में देरी: पुलिस जांच में देरी हुई, जिससे आरोपियों को सबूत नष्ट करने का समय मिल गया।
  • न्यायिक प्रक्रिया में देरी: भारतीय न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों की संख्या अधिक होने के कारण, इस मामले में भी देरी हुई।

दिहुली हत्याकांड की परतें

दिहुली हत्याकांड भारत में जाति-आधारित हिंसा का एक भयानक उदाहरण है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जातिवाद अभी भी एक गंभीर समस्या है और हमें इसके खिलाफ लड़ने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। यह घटना न्याय में देरी के खतरों को भी उजागर करती है। यह महत्वपूर्ण है कि हम एक ऐसी न्यायिक प्रणाली बनाएं जो त्वरित और निष्पक्ष न्याय प्रदान करे।

दिहुली हत्याकांड ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। इस घटना ने जाति-आधारित हिंसा के मुद्दे को राष्ट्रीय ध्यान में लाया। इसने दलित समुदायों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। इस घटना ने सरकार और नागरिक समाज को जाति-आधारित हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाने के लिए भी प्रेरित किया।

सरकार की प्रतिक्रिया

दिहुली हत्याकांड के बाद, सरकार ने जाति-आधारित हिंसा को रोकने के लिए कई कदम उठाए। इनमें से कुछ प्रमुख कदम हैं:

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को लागू करना।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना करना।
  • जाति-आधारित हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करना।

दिहुली हत्याकांड एक दुखद घटना थी, जिसने कई लोगों के जीवन को तबाह कर दिया। 44 साल बाद, दोषियों को मिली सजा से पीड़ितों के परिवारों को कुछ हद तक न्याय मिला है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम इस घटना से सीखें और जाति-आधारित हिंसा को रोकने के लिए मिलकर काम करें।

दिहुली हत्याकांड हमें याद दिलाता है कि हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए जहां सभी को समान अधिकार और अवसर मिलें। हमें जातिवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखनी चाहिए और एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज बनाने के लिए काम करना चाहिए।

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