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घरेलू हिंसा कानून को ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकारों पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट | यंग भारत न्यूज
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के प्रभावी क्रियान्वयन में राज्यों की लापरवाही पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने पाया कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने कानून के तहत आवश्यक संरचना, जैसे कि संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति और शेल्टर होम्स की स्थापना, में गंभीर कमी बरती है। इस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्यों को चार सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है, अन्यथा जुर्माना लगाने की चेतावनी दी है।
बता दें कि जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कानून के तहत संरक्षण अधिकारी नियुक्त करने, आश्रय गृह बनाने और जमीनी स्तर पर पीड़ित महिलाओं के लिए कानूनी सहायता मुहैया कराने सहित कई निर्देश जारी किए। पीठ ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के तहत पारित किया गया है, जो अन्य बातों के साथ-साथ महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रावधान करता है।
सुप्रीम अदालत गैर-सरकारी संगठन 'वी द वूमेन ऑफ इंडिया' की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करते हुए यह दिशा-निर्देश जारी किया। पीठ ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे 10 सप्ताह में घरेलू हिंसा पीड़ितों के लिए पर्याप्त सुलभ आश्रय गृह (नारी निकेतन, वन-स्टॉप केंद्र, आदि) सुनिश्चित करें।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून के क्रियान्वयन में राज्यों की उदासीनता पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि कई राज्यों ने अब तक कानून के तहत आवश्यक संरचना, जैसे कि संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति और शेल्टर होम्स की स्थापना, नहीं की है। इस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्यों को चार सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है, अन्यथा जुर्माना लगाने की चेतावनी दी है।
संरक्षण अधिकारियों की कमी
कई राज्यों में संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं हुई है, जिससे पीड़ित महिलाओं को समय पर सहायता नहीं मिल पा रही है। कोर्ट ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि यह कानून के उद्देश्यों की पूर्ति में बाधा है।
शेल्टर होम्स और कानूनी सहायता का अभाव
कोर्ट ने पाया कि कई स्थानों पर शेल्टर होम्स और मुफ्त कानूनी सहायता की व्यवस्था नहीं है, जिससे पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा और न्याय नहीं मिल पा रहा है।
राज्यों को दिए गए अहम निर्देश
कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे DV Act (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत आवश्यक सभी प्रावधानों को लागू करें और इसकी स्थिति रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर कोर्ट में प्रस्तुत करें।
घरेलू हिंसा कानून का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है। हालांकि, इसके प्रभावी क्रियान्वयन में कई चुनौतियां हैं, जैसे कि संरचनात्मक कमियां, संसाधनों की कमी, और अधिकारियों की उदासीनता। इन कारणों से पीड़ित महिलाओं को समय पर सहायता और न्याय नहीं मिल पाता है।
संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति: राज्यों को तत्काल संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए ताकि पीड़ित महिलाओं को समय पर सहायता मिल सके।
शेल्टर होम्स की स्थापना: प्रत्येक जिले में शेल्टर होम्स की स्थापना की जानी चाहिए ताकि पीड़ित महिलाओं को सुरक्षित आश्रय मिल सके।
मुफ्त कानूनी सहायता: पीड़ित महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।
जनजागरूकता अभियान: DV Act के प्रावधानों के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।
ये हैं आवश्यक दिशा निर्देश
- सभी राज्य महिला एवं बाल विकास विभाग में जिला और तालुका स्तर पर कार्यरत अधिकारियों की संरक्षण अधिकारी के रूप में नियुक्त करें।
- विधिक सेवा के सदस्य सचिव जिला एवं तालुका स्तर पर प्रचार-प्रसार करें कि पीड़ित महिलाएं मुफ्त कानूनी सहायता की हकदार हैं।
- इस पद पर नियुक्त होने वाले अधिकारी डीवी एक्ट की धारा-9 के तहत अपने दायित्वों का पालन करेंगे।
- जहां कानून के तहत संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति नहीं है, वहां छह सप्ताह के भीतर नियुक्ति की जाए।
- विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के बीच प्रभावी समन्वय स्थापित करें।
- कानून के प्रावधानों के बारे में मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार कर लोगों को जागरूक किया जाए। 7. विभाग सेवा प्रदाताओं को सूचीबद्ध करें और 10 सप्ताह में पीड़ितों को सुलभआश्रय गृह सुनिश्चित करें।
घरेलू हिंसा कानून का प्रभावी क्रियान्वयन महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए अत्यंत आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे कानून के सभी प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करें और पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाएं।
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