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India-Pakistan युद्धविराम पर डोनाल्ड ट्रंप का ‘क्रेडिट गेम’! विदेश मंत्री जयशंकर ने खोली पोल | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान पर भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने करारा जवाब दिया है, जिसमें ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम (Ceasefire) में अपनी भूमिका का दावा किया था। आज गुरूवार 3 जुलाई 2025 को एस. जयशंकर ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट में साफ तौर पर कहा है कि "उस समय जो कुछ हुआ उसका रिकॉर्ड बहुत स्पष्ट है और युद्धविराम दोनों देशों के DGMOs (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस) के बीच बातचीत के जरिए हुआ था।"
यह बयान सिर्फ एक राजनयिक खंडन नहीं, बल्कि इतिहास के पन्नों में दर्ज एक महत्वपूर्ण सच्चाई का पुनरावलोकन है। 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर युद्धविराम समझौता हुआ था। यह समझौता दशकों के सैन्य तनाव और सीमा पार गोलीबारी के बाद शांति स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम था। क्या ट्रंप को इस इतिहास की सही जानकारी नहीं थी, या उनके बयान के पीछे कोई और कूटनीतिक मंशा थी? यह सवाल आज हर किसी के मन में कौंध रहा है।
CORRECTION | Washington, DC | On US President Donald Trump's remarks on the ceasefire between India and Pakistan*, EAM Dr S Jaishankar says, "The record of what happened at that time was very clear and the ceasefire was something which was negotiated between the DGMOs of the two… pic.twitter.com/baGa3IvSjd
— ANI (@ANI) July 3, 2025
ट्रंप का दावा, भारत का खंडन: क्यों अहम है यह विवाद?
डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार अपनी रैलियों और सार्वजनिक संबोधनों में दावा किया है कि उनके हस्तक्षेप के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम हुआ और युद्धविराम संभव हो पाया। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने हमेशा इन दावों को नकारा है। डॉ. जयशंकर का यह बयान उसी कड़ी में एक और स्पष्टीकरण है। यह दिखाता है कि भारत अपनी संप्रभुता और अपनी कूटनीतिक उपलब्धियों पर किसी भी बाहरी दावे को स्वीकार नहीं करेगा।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारत-पाकिस्तान युद्धविराम समझौता 2003 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार और परवेज़ मुशर्रफ के बीच हुआ था। इसे दोनों देशों के सैन्य नेतृत्व ने मिलकर अंजाम दिया था।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव: ट्रंप जैसे बड़े नेता का ऐसा बयान अंतरराष्ट्रीय मंच पर गलतफहमी पैदा कर सकता है और क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
भारत की स्पष्टता: भारत ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि उसके द्विपक्षीय संबंधों में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं है, खासकर कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर।
क्या है DGMOs की भूमिका?
DGMOs दोनों देशों की सेनाओं के प्रमुख ऑपरेशनल अधिकारी होते हैं। जब 2003 में युद्धविराम हुआ, तब यह पूरी तरह से भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीधी बातचीत और सहमति का परिणाम था। इस समझौते ने सीमा पर हिंसा को काफी हद तक कम किया और दोनों देशों के लोगों को एक नई उम्मीद दी। जयशंकर का बयान इस बात पर जोर देता है कि यह एक आंतरिक, द्विपक्षीय प्रक्रिया थी जिसमें किसी बाहरी शक्ति की कोई भूमिका नहीं थी।
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