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तीन CJI मिलकर भी धाकड़ एडवोकेट को नहीं बनवा सके हाईकोर्ट का जज

डीवाई चंद्रचूड़ उनको दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाना चाहते थे। उन्होंने कालेजियम की मीटिंग में मजूमदार के नाम की सिफारिश की थी। चंद्रचूड़ चले गए पर मजूमदार को जज नहीं बनवा सके।

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Shailendra Gautam
Supreme Court Collegium

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः एडवोकेट श्वेताश्री मजूमदार वकालत की दुनिया का बड़ा नाम हैं। जज भी अक्सर उनकी तारीफ करते देखे जाते हैं। डीवाई चंद्रचूड़ उनको दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाना चाहते थे। उन्होंने कालेजियम की मीटिंग में मजूमदार के नाम की सिफारिश की थी। चंद्रचूड़ चले गए पर मजूमदार को जज नहीं बनवा सके। उनके बाद आए सीजेआई संजीव खन्ना ने भी पूरा जोर लगाया पर वो भी कारगर नहीं हो सके। बीआर गवई ने सीजेआई बनने के बाद मजूमदार को जज बनाने के लिए पूरा जोर लगाया पर हालात जस के तस हैं। मजूमदार की नियुक्ति को मोदी सरकार हरी झंडी नहीं दिखा रही। हालांकि सारे घटनाक्रम में एक नाटकीय मोड़ तब देखने को मिला जब श्वेताश्री ने खुद ही जजशिप से अपना नाम वापस ले लिया। 

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अगस्त 2021 में हुई थी मजूमदार के नाम की सिफारिश

लाइव ला की रिपोर्ट के मुताबिक उनके नाम की सिफारिश 21 अगस्त 2024 को डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाले कालेजियम ने की थी। उनके साथ दो नाम और भी सरकार को भेजे गए थे। एडवोकेट अजय दिगपाल और वैद्यनाथन सरकार का। कानून मंत्रालय ने कुछ दिनों बाद श्वेताश्री के नाम को छोड़कर बाकी दोनों को क्लीयर कर दिया। दोनों जज भी बन गए पर महिला वकील इंतजार ही करती रह गईं। खास बात है कि सरकार ने इसके लिए कोई कारण भी नहीं बताया। 

नियुक्ति लटकाने पर तीनों सीजेआई ने सरकार से पूछा था सवाल

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चंद्रचूड़ ने जाते जाते पूरा जोर लगाया कि महिला को जज बनवा दिया जाए पर वो कामयाब नहीं हुए। संजीव खन्ना ने आते ही सरकार से पूछा कि ये नाम क्यों पेंडिंग है पर जवाब नहीं आया। वो अपना कार्यकाल पूरा करके भी चले गए पर सरकार का जवाब नहीं मिला। बीआर गवई ने भी आते ही सरकार से पूछा कि श्वेताश्री को जज क्यों नहीं बनाया जा रहा है पर जवाब नहीं मिला। 

एडवोकेट आदित्य सांधी को भी सरकार ने नहीं बनाया था जज

हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब सरकार ने कालेजियम की सिफारिशों को नजरंदाज किया। एडवोकेट आदित्य सांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। साल भर तक सरकार ने जब उनके नाम पर मुहर नहीं लगाई तो सांधी ने खुद ब खुद अपना नाम जजशिप से वापस ले लिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट कई बार सरकार को इस मसले पर फटकार लगा चुका है पर मजाल है कि कानून मंत्री के कानों पर जूं भी रेंगी हो। वो पहले ही तरह से मस्त मौला होकर काम कर रहे हैं। जो नाम अच्छे लगते हैं वो जज बन जाते हैं जो बाकी के नाम कालेजियम की फाइलों में दफन हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट चाहकर भी सरकार से मनमाफिक फैसला नहीं करवा पाता है। 

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