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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सोमवार को मोहन भागवत के साथ लगभग 45 मिनट तक मीटिंग हुई। उसके बाद से यह कयासबाजी शुरू हो गई कि वह बीजेपी के अध्यक्ष बनने वाले हैं। लेकिन अगर शिवराज अध्यक्ष बनते हैं तो ये नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के लिए ठीक नहीं रहने वाला।
मोदी को कभी पसंद नहीं करते थे शिवराज सिंह
2014 से पहले जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी का एक बड़ा वर्ग राष्ट्रीय राजनीति में लाने की पैरवी कर रहा था तो सबसे ज्यादा विरोध लाल कृष्ण आडवाणी के साथ दिवंगत सुषमा स्वराज ने किया था। दोनों उस मीटिंग को छोड़कर भी चले गए थे जिसमें राजनाथ सिंह ने इस बात को लेकर अपनी राय सभी के सामने रखी थी कि चुनावी कैंपेन कमेटी की कमान फायरब्रांड सीएम नरेंद्र मोदी को दी जानी चाहिए। तब एक नाम और था जो मोदी का विरोध कर रहा था और वो थे शिवराज सिंह चौहान। शिवराज ने तब कहा था कि एक सीएम होने की वजह से मोदी को पीएम कैंडिडेट बनाया जा रहा है तो सीएम तो वो भी हैं। उनसे बड़े सूबे के।
हालांकि मोदी कैंपेन कमेटी के चेयरमैन बने और बाद में प्रधानमंत्री भी। शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के सीएम तक ही सीमित रह गए। लेकिन वो वहां रहना भी चाहते थे। वो अपने लोगों को बीच मामा शिवराज के नाम से मशहूर थे। वो सभी को साथ लेकर चलने में यकीन रखते थे। लेकिन जब 2024 से ऐन पहले मध्य प्रदेश में चुनाव हुए और शिवराज सिंह सीएम चाहकर भी नहीं बन सके तो तल्खी दिखनी शुरू हो गई। 2024 में शिवराज को सांसद का चुनाव लड़ाया गया। वो विदिशा से जीते। जीत से अलग हटकर एक और जो चीज खास थी वो ये कि शिवराज सिंह बीजेपी के वो सांसद थे जो देश में सबसे ज्यादा अंतर से जीतकर आया था।
शिवराज के बेटे का वो विवादास्पद बयान
2024 चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी ने फिर से सरकार बनाई। सरकार जब धीरे-धीरे आगे बढ़ने की राह पर थी तभी शिवराज सिंह के बेटे ने एक बयान दिया। उनका कहना था कि कुछ लोग (मोदी-शाह) खुद को बड़ा नेता मानते हैं। लेकिन वो ये न भूलें कि मेरे पिता (शिवराज सिंह) सबसे बड़े नेता हैं। वो सबसे ज्यादा वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। शिवराज के बेटे का ये बयान कईयों को सदमे में डाल गया। उनके तेवरों से साफ था कि शिवराज सिंह किसी की हुकूमत नहीं मानने वाले। ये भी माना गया कि शिवराज का बेटा बगैर उनकी मर्जी ये ऐसा नहीं बोल सकता। हालांकि उसके बाद के दौर में ज्यादा कुछ तीखा नहीं हुआ।
संघ मोदी-शाह को खुला नहीं छोड़ सकता
बीजेपी की स्थापना से कहीं पहले संघ अस्तित्व में आ चुका था। 80 के दौर से 2014 तक बीजेपी का अध्यक्ष संघ की मर्जी से बना। यहां तक कि अटस बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता भी संघ को आंख नहीं दिखा सके। आडवाणी जब जिन्ना के कसीदे पढ़ने लगे तो वो बीजेपी अध्यक्ष थे लेकिन संघ की नाराजगी ने उनको चलता कर दिया। लेकिन 2014 के बाद से संघ मोदी-शाह के सामने बेचारा हो गया।
राजनाथ को जबरन हटाकर शाह को दी थी कुर्सी
2014 में मोदी जीतकर आए तो अमित शाह को राजनाथ सिंह की जगह बीजेपी की कमान सौंपी गई। हालांकि मोदी के पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में राजनाथ सिंह का सबसे बड़ा हाथ था। उनके अध्यक्ष रहते ही मोदी को कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया। लेकिन मोदी खुद राजनाथ सिंह को भरोसेमंद नहीं मानते थे। सत्ता मिलते ही उन्होंने राजनाथ सिंह को हटाकर अपने चहेते अमित शाह को बीजेपी की कमान सौंप दी। शाह का कार्यकाल पूरा हुआ तो जेपी नड्डा को सामने कर दिया गया। सभी को पता है कि नड्डा हुक्म के गुलाम भर ही हैं।
2024 चुनाव के बाद से संघ होने लगा है हावी
2024 के बाद मोदी कमजोर पड़े तो संघ हावी होने लगा। मोहन भागवत मोदी-शाह को खुला छोड़ने के मूड में नहीं हैं। वो इशारों इशारों में कई बार दोनों को आईना दिखा चुके हैं। बात चाहें 75 के बाद रिटायर होने की हो या कोई दूसरा सरकारी मसला, भागवत अपनी बात कह जाते हैं। फिलहाल बीजेपी अध्यक्ष उनके निशाने पर है। वो इस कुर्सी पर किसी ऐसे नेता को बिठाना चाहते हैं जो मोदी-शाह से ज्यादा उनकी सुने। मोदी-शाह को भी पता है कि अध्यक्ष अपने खेमे का न हुआ तो मुश्किलें बढ़ेंगी, क्योंकि तब बीजेपी अघ्यक्ष पीएम के समानांतर सत्ता बन सकता है। जो सरकार की हर कमी पर मीनमेख निकाले। ऐसा हुआ तो दोनों के लिए काम करना भी मुश्किल हो जाएगा। हालांकि अभी ये तय नहीं है कि कौन बीजेपी की कमान संभालेगा। लेकिन ये बात जरूर तय है कि ऐसा कोई नहीं होगा जो नड्डा की तरह से कह दे कि हमें किसी (संघ) की जरूरत नहीं है। हम आज खुद ही बहुत बड़े हो चुके हैं। अगर शिवराज सिंह बने तो मोदी-शाह को भी ऐसा ही कुछ सुनना पड़ सकता है।
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