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Explain: मोदी सरकार के 4 नाम कैसे बदलने जा रहे राज्यसभा की तस्वीर

इसकी शुरुआत 2018 से तब हुई जब जस्रंटिस जन गोगोई को राज्यसभा भेजा गया। गोगोई इस बात का पहला संकेत थे कि मोदी सरकार अब राज्यसभा के नामांकन को औपचारिक नहीं मानेगी। अब यह रणनीतिक होगा।

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Shailendra Gautam
Modi

Modi Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राजनीति में कहा जाता है कि कुछ राजनीतिक नियुक्तियां इरादे जाहिर करने के लिए होती हैं तो कुछ व्यवस्था को ही आकार देने के लिए होती हैं। इतिहासकार मीनाक्षी जैन, आरएसएस नेता सी. सदानंदन मास्टर, 26/11 मामले की पैरवी करने वाले वकील उज्ज्वल निकम और पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला का चयन पूरी तरह से दूसरी श्रेणी में आता है। इनको संविधान के अनुच्छेद 80(1)(ए) के तहत राज्यसभा में भेजा गया है। 

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भारत की चार दिशाओं से हैं चारों मनोनीत सांसद

राज्यसभा यानि अपर हाउस संसद का एक अहम हिस्सा है। लेकिन बीते दौर को देखा जाए तो ये रिटायर राजनीतिज्ञों के आराम की जगह में तब्दील होता जा रहा है। लेकिन मोदी सरकार इस सदन को नई तस्वीर देती आ रही है। नामांकनों की सूची दर्शाती है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में चुनावों या संसदीय शक्ति परीक्षण से परे जाकर पूरे भारत में अपनी वैचारिक पैठ को मजबूत करना चाहती है। चारों व्यक्ति अलग-अलग दिशाओं से आते हैं। जैन दिल्ली (उत्तर) से हैं तो श्रृंगला दार्जिलिंग (पूर्व) से। निकम मुंबई (पश्चिम) से हैं वहीं सदानंदन मास्टर केरल (दक्षिण) से हैं। इनमें कोई बड़ी हस्ती नहीं है। कोई अपनी फील्ड का मास्टर नहीं है। 

2018 से शुरू हुआ था वैचारिक रणनीति को धार देने का काम

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देखा जाए तो ये चारों नामांकन मोदी सरकार के रणनीतिक स्वभाव का खाका पेश करते हैं। यह व्यापक सहमति की तलाश में रहने वाली सरकार नहीं है। यह ऐसी सरकार है जो मानती है कि उसका तीसरा कार्यकाल न केवल चुनावी वैधता, बल्कि वैचारिक अनिवार्यता का भी प्रतिनिधित्व करता है। यही विश्वास उस संसद को आकार दे रहा है जिसका वह निर्माण कर रही है। न केवल चुनावों के जरिए, बल्कि चुनिंदा चयनों के जरिए भी। अगर मोदी सरकार के पहले के नामांकनों के देखें तो एक पैटर्न साफ झलकता है। 2018 और 2020 के बीच राकेश सिन्हा, स्वप्न दासगुप्ता और जस्टिस रंजन गोगोई का चयन इस रणनीति के शुरुआती संकेत थे। सिन्हा और दासगुप्ता वैचारिक आवाज लेकर आए वहीं राम जन्मभूमि मामले के फैसले के तुरंत बाद गोगोई संस्थागत मूल्य लेकर आए। वह नामांकन अभूतपूर्व था। एक चीफ जस्टिस का सेवानिवृत्ति के कुछ ही महीनों बाद अपर हाउस में जाना। गोगोई इस बात का पहला संकेत थे कि मोदी सरकार अब राज्यसभा के नामांकन को औपचारिक नहीं मानेगी। अब यह रणनीतिक होगा।

बीजेपी की विचारधारा पर मीनाक्षी जैन ने खंगाला इतिहास

मीनाक्षी शांत लेकिन प्रभावशाली इतिहासकार हैं। पिछले दो दशकों के उनके अकादमिक कार्य ने सभ्यता के इतिहास को एक विशिष्ट भारतीय नजरिये दृष्टिकोण से गढ़ने का प्रयास किया है। जिसे अक्सर हिंदू भी कहा जाता है। चाहे मध्ययुगीन आक्रमणों के दौरान मंदिरों के विध्वंस की बात हो या मुगल शासन की। जैन का शोध संघ परिवार के सांस्कृतिक उपनिवेशवाद-विरोध के दीर्घकालिक एजेंडे से पूरी तरह मेल खाता है। संसद में जैन की उपस्थिति उस वैचारिक रुख को दर्शाती लगती है जो शिक्षा, विरासत और अन्य मुद्दों पर वर्तमान सरकार की नीति है। जैन के जरिये सरकार केवल एक विद्वान को राज्यसभा नहीं भेज रही है बल्कि एक विचारधारा की संसद में एंट्री का रास्ता प्रशस्त कर रही है। ऐसी विचारधारा जो उसकी नीतियों से मेल खाती है।  

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दक्षिण भारत में मोदी को मास्टर की विचारधारा की जरूरत 

सदानंदन मास्टर का नामांकन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भाजपा उन्हें जीवित शहीद कहती है। सदानंदन मास्टर राजनीतिक हिंसा से बचे हुए व्यक्ति हैं। 1994 में केरल के कन्नूर जिले में माकपा कार्यकर्ताओं के हमले में उन्होंने अपने दोनों पैर गंवा दिए थे। पेशे से एक स्कूल शिक्षक, सदानंदन मास्टर जमीनी स्तर पर एक ऐसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसकी भाजपा को दक्षिण भारत में सख्त जरूरत है। केरल और तमिलनाडु में बीजेपी नाकाम ही रही है। सदानंदन मास्टर का राज्यसभा में शामिल होना प्रतिनिधित्व के एक नए दृष्टिकोण का संकेत देता है, जो पहचान की राजनीति पर नहीं, बल्कि वैचारिक निष्ठा और जमीनी स्तर पर संस्था निर्माण पर जोर देता है। वह भीड़ जुटाने वाले नहीं, बल्कि कैडर बनाने वाले व्यक्ति हैं। 

राष्ट्रवाद का प्रतीक हैं निकम, सिब्बल और सिंघवी पर पड़ सकते हैं भारी

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उज्जवल निकम की बात की जाए तो उनका राज्यसभा के लिए नामांकन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की वजह से हुआ लेकिन वो एक राष्ट्रवाद का प्रतीक हैं। 26/11 के हमलों के बाद जिस तरह से उन्होंने सरकार की पैरवी की उसने उनको रातों रात लोगों का हीरो बना दिया। आज वो राष्ट्रीय सुरक्षा के सबसे बड़े अलंबरदार होने के साथ भाजपा की विचारधारा के करीब हैं। वो महाराष्ट्र में भी भाजपा के लिए कारगर हो सकते हैं। विपक्ष के खिलाफ अपनी लड़ाई को धार देने के लिए बीजेपी को वफादार और लोकप्रिय चेहरों की जरूरत है। निकम न केवल एक बेजोड़ वकील ही नहीं हैं बल्कि टीवी पर देश के जाने-माने वकील के रूप में उनकी छवि बीजेपी को आतंकवाद, न्याय और आपराधिक मामलों में बहस में एक सशक्त आवाज देती है। 2024 के लोकसभा चुनावों में फडणवीस उन्हें टिकट दिलाने में कामयाब रहे, लेकिन निकम हार गए। राज्यसभा में उनके प्रवेश का मतलब है कि भाजपा को विपक्ष में कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे नेताओं का मुकाबला करने के लिए एक कानूनी दिग्गज मिल गया है। 

विदेश सचिव और जी-20 शेरपा रह चुके हैं श्रृंगला

श्रृंगला सत्ता की शांत नौकरशाही का प्रतिनिधित्व करते हैं। विदेश सचिव और बाद में जी-20 शेरपा के रूप में उन्होंने वैश्विक उथल-पुथल के दौर में भारत की सशक्त विदेश नीति को क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नामांकन को प्रधानमंत्री कार्यालय का फैसला माना जा रहा है। यह संसद में एक विश्वसनीय टेक्नोक्रेट को शामिल करने का प्रयास है, जो विदेश मामलों, व्यापार नीति और भू-राजनीतिक रणनीति पर विधायी बहसों को सक्रिय रूप से आकार दे सके। कई मायनों में श्रृंगला की पदोन्नति मोदी सरकार के कूटनीति के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव का प्रतीक है। 

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