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Explain: 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के 12 दोषियों को HC ने क्यों किया बरी

कोर्ट का कहना था कि गवाहों के बयान पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि वारदात के 100 दिनों बाद उनसे बात की गई। इतने दिनों बाद कैसे किसी को संदिग्ध का चेहरा याद रहा होगा।

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Shailendra Gautam
Petition claiming 75 lakh votes were cast after 6 PM dismissed

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बॉम्बे हाईकोर्ट ने डेढ़ दशक पहले के एक विशेष अदालत के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें 2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों के 13 दोषियों में से पांच को मौत की सजा सुनाई गई थी। इन धमाकों में 189 लोग मारे गए थे। 2015 के फैसले में सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जबकि एक को बरी कर दिया गया था।

मकोका कोर्ट ने 2015 में 5 को दी थी सजा-ए-मौत

11 जुलाई 2006 को मुंबई लोकल ट्रेन के सात डिब्बों में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे, जिसमें 189 लोग मारे गए और 824 घायल हुए। महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने मामले की जांच शुरू की। आठ साल की लंबी सुनवाई के बाद मकोका की विशेष अदालत ने 30 सितंबर 2015 को 13 दोषियों में से पांच को मौत की सजा सुनाई। मौत की सजा पाए दोषियों में कमाल अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर्रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान शामिल थे। आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सात अन्य दोषियों में तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर्रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीउर्रहमान शेख शामिल थे। वाहिद शेख को बरी कर दिया गया था। 

मौत की सजा कंफर्म करने के लिए सरकार गई थी HC

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निचली अदालत के फैसले के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने अक्टूबर 2015 में बॉम्बे हाईकोर्ट में मृत्युदंड की पुष्टि के लिए याचिका दायर की। सीआरपीसी की धारा 366 के तहत सेशन के मृत्युदंड को हाईकोर्ट में पेश किया जाना आवश्यक है। जब तक सजा की पुष्टि हाईकोर्ट नहीं कर देता, तब तक मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता। इसके बाद पांचों दोषियों ने अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की। आजीवन कारावास की सजा पाने वालों ने भी फैसले को चुनौती दी।

फैसला देने में हाईकोर्ट को क्यों लगे 10 साल

जब जनवरी 2019 में यह मामला पहली बार हाईकोर्ट के सामने आया तो बेंच को पता चला कि नागपुर जेल अधीक्षक की तरफ से अक्टूबर 2015 में दोषियों को एक सूचना जारी की गई थी, जिसमें उनसे विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने के उनके इरादे के बारे में जवाब मांगा गया था। हालांकि, उनकी मृत्युदंड की पुष्टि की याचिकाओं के लंबित होने का उल्लेख नहीं किया गया था। इसलिए, हाईकोर्ट ने दोषियों को नए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया, जिसके बाद उन्होंने अपील दायर की। कई अन्य घटनाओं ने भी देरी को और बढ़ा दिया। सबसे पहली बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एएस गडकरी सुनवाई से अलग हो गए तो जस्टिस आरडी धानुका काम के बोझ का तर्क देकर खुद को मामले से अलग कर लिया।

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सितंबर 2023 में जस्टिस नितिन डब्ल्यू साम्ब्रे की अध्यक्षता वाली बेंच ने जब सुनवाई शुरू की तो उन्हें बताया गया कि सरकार ने अभी तक एक विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) की नियुक्ति नहीं की है। बेंच ने दिसंबर 2023 तक याचिकाओं पर सुनवाई की, लेकिन जज के दूसरी बेंच में स्थानांतरण के कारण मामले को दूसरी बेंच के पास भेज दिया गया। इन मामलों पर तब तक महीनों तक सुनवाई नहीं हुई, जब तक कि एक अभियुक्त ने विशेष बेंच के माध्यम से मामले के शीघ्र निपटारे की मांग नहीं की। जुलाई 2024 में याचिकाओं पर विस्तार से सुनवाई के लिए जस्टिस अनिल एस किलोर और श्याम सी. चांडक की एक विशेष बेंच का गठन किया गया। अगले छह महीनों में 75 से ज्यादा सुनवाई हुई। केस की फाइलों में अभियोजन पक्ष के 92 और बचाव पक्ष के 50 से ज्यादा गवाह शामिल हैं। इस मामले में साक्ष्य 169 हिस्सों में थे। मौत की सजा के फैसले लगभग 2 हजार पेजों के थे। 
वो सवाल जिनके जवाब हाईकोर्ट को नहीं मिले

हाईकोर्ट ने क्यों किया 12 दोषियों को बरी

दोषियों की पैरवी करने वाले वकीलों ने विशेष अदालत के फैसले को रद्द करने की मांग की। उनका दावा था कि जांच एजेंसी ने उनसे जबरन इकबालिया बयान हासिल किए। दोनों पक्षों की जिरह सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रासीक्यूशन आरोप साबित करने में बुरी तरह से नाकाम रहा। ये यकीन करना भी मुश्किल है कि इन लोगों ने विस्फोट को अंजाम दिया होगा। दोषियों को संदेह का लाभ दिया गया। कोर्ट का कहना था कि गवाहों के बयान पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि वारदात के 100 दिनों बाद उनसे बात की गई। इतने दिनों बाद कैसे किसी को संदिग्ध का चेहरा याद रहा होगा।

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अदालत ने कहा कि ब्लास्ट के बाद पुलिस और दूसरी एजेंसियों ने जो विस्फोटक, हथियार और मैप बरामद किया उसका 2006 के ब्लास्ट से कोई लेनादेना नहीं था। प्रासीक्यूशन ये तक नहीं बता सका कि किस तरह के बमों का इस्तेमाल वारदात में किया गया। विशेष बेंच ने अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों की विश्वसनीयता और कुछ आरोपियों की पहचान परेड (टीआईपी) पर सवाल उठाए। जस्टिस अनिल एस किलोर और जस्टिस श्याम सी चांडक की बेंच ने आदेश दिया कि अगर किसी और केस में हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है तो उन्हें रिहा किया जाए और सभी को 25 हजार रुपये के निजी मुचलके भरने का निर्देश दिया।  trending news India | Mumbai blast not present in content

2006 Mumbai train blast, 12 accused acquitted by High Court, Bombay High Court, MCOCA special court

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