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Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः एक देश एक चुनाव को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार अपनी कमर कस चुकी है। एनडीए की सरकार संसद में एक बिल पेश करके संविधान में 129वां संशोधन करने जा रही है। ये एक्ट एक साथ चुनाव कराने की बात करता है। इसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग यह तय करेगा कि एक साथ चुनाव कराना संभव है या नहीं। लेकिन भारत के 4 पूर्व चीफ जस्टिस मानते हैं कि चुनाव आयोग को इतनी ताकत देना खतरनाक हो सकता है।
आर्टिकल 82 देता है एक साथ चुनाव कराने की अनुमति
संविधान के अनुच्छेद 82 में प्रस्तावित संशोधन में यह प्रावधान है कि अगर चुनाव आयोग की राय है कि किसी विधान सभा के चुनाव लोकसभा के आम चुनाव के साथ नहीं कराए जा सकते तो वह राष्ट्रपति को एक आदेश के जरिये यह घोषित करने की सिफारिश कर सकता है कि उस विधान सभा के चुनाव बाद में कराए जा सकते हैं। लेकिन इस शक्ति का बेजा इस्तेमाल हो सकता है। यही बात देश के 4 पूर्व सीजेआई संसदीय समिति को समझाने में जुटे हैं।
चारों पूर्व सीजेआई को लगता है कि चुनाव आयोग को शक्तियां देना गलत होगा
एक रिपोर्ट के मुताबिक दो पूर्व चीफ जस्टिसेज ने चुनाव कार्यक्रम तय करने की चुनाव आयोग की शक्ति पर संसदीय निगरानी को शामिल करने के लिए कानून में संशोधन का सुझाव दिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी सुझाव दिया है कि चुनाव आयोग की शक्तियों को केवल सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर कार्यक्रम में देरी करने तक सीमित किया जाए। जिससे यह तय किया जा सके कि इस शक्ति का मनमाने ढंग से उपयोग न हो। पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना कानून बनाने में व्यापक शक्तियों को न्यायालयों द्वारा मनमाना माना जा सकता है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है।
पूर्व सीजेआई रंजन गगोई ने इससे पहले मार्च के महीने में इस बात को लेकर चिंता जाहिर की थी कि चुनाव आयोग को मनमानी करने देना खतरनाक साबित हो सकता है। उसको जो ताकत इस संशोधन के जरिये दी जानी है उस पर लगाम कसे जाने की जरूरत है। उनका मानना है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां किसी एक संस्था को असीमित ताकत देना सही नहीं होगा। संसद इस बात की व्यवस्था करे कि चुनाव आयोग को बेलगाम न होने दिया जाए।
एक अन्य पूर्व सीजेआई यूयू ललित का कहना है कि चुनाव आयोग को लेकर पहले से ही विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में इस संस्था को और ज्यादा ताकतवर बना देना सही नहीं होगा। लोकतंत्र में सभी दलों की बात सुनी जाती है और सुनी जानी भी चाहिए। लेकिन अगर सरकार के अलावा बाकी सारे दल आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं तो ये सही नहीं होगा। उनका कहना है कि जो भी संशोधन हो उसमें आयोग पर नियंत्रण का उपाय सुझाया जाए। एक और पूर्व सीजेआई जेएस खेहर भी बाकियों की राय से इत्तेफाक रखते हैं। उनका भी मानना है कि ये प्रक्रिया तभी कारगर हो सकती है जब चुनाव आयोग की शक्तियों को परिभाषित किया जाए।
चारों की राय- एक देश एक चुनाव से संविधान का उल्लंघन नहीं होता
हालांकि चारों सीजेआई इस बात को लेकर एक राय रखते हैं कि एक साथ चुनाव कराने से संविधान का उल्लंघन नहीं होता है। संविधान में इस बात का प्रावधान है। लेकिन उनका कहना है कि अगर चुनाव आयोग को लेकर एहतियात नहीं बरती गई तो इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलेगी। अदालत सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 14 का जिक्र करके विधेयक को मनमाना करार दे सकती हैं। अगर पहले से एहतियात बरत ली जाए तो इससे बचा जा सकता है। उनका कहना है कि इसके लिए संसदीय समिति को व्यापक सोच रखनी होगी।
One country one election. Four former CJIs, Justice DY Chandrachud, Justice Ranjan Gogoi, Parliamentary Committee