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Explain: तेजस्वी को सीएम फेस बनाने से क्यों गुरेज कर रहे हैं राहुल गांधी?

कांग्रेस की हिचकिचाहट सीट बंटवारे पर चल रही बातचीत से जुड़ी लगती है। कांग्रेस तेजस्वी को गठबंधन का चेहरा बनाने से कतरा रही है, क्योंकि उसे राजद से अपेक्षित सीटें नहीं मिलती दिख रहीं।

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Shailendra Gautam
राहुल गांधी आज लखनऊ कोर्ट में हो सकते हैं पेश

राहुल गांधी आज लखनऊ कोर्ट में हो सकते हैं पेश Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राजद नेता तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके सबको चौंका दिया। हालांकि, राहुल गांधी या कांग्रेस ने अब तक तेजस्वी को बिहार विधानसभा चुनावों के लिए सीएम फेस बनाने से परहेज किया है। सवाल ये है कि आखिर जब तेजस्वी खुलकर राहुल गांधी को इंडिया ब्लाक का नेता मानने लगे हैं तो राहुल को क्या दिक्कत है। वो उन्हें बिहार का सीएम फेस बनाने से क्यों गुरेज कर रहे हैं?

यह तब है जब 17 अगस्त को दोनों नेताओं के संयुक्त तत्वावधान में शुरू की गई मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान दोनों के बीच दोस्ती साफ दिखाई दे रही है। दोनों नेताओं ने वोट चोरी और एसआईआर अभियान को लेकर भाजपा और चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला है। दूसरी तरफ तेजस्वी ने कई मौकों पर कहा है कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर कोई संशय नहीं है और बिहार में गठबंधन का नेतृत्व वही करेंगे।

सीट बंटवारे को लेकर फंस रहा पेंच

कांग्रेस की हिचकिचाहट सीट बंटवारे पर चल रही बातचीत से जुड़ी लगती है। कांग्रेस तेजस्वी को गठबंधन का चेहरा बनाने से कतरा रही है, क्योंकि उसे राजद से अपेक्षित सीटें नहीं मिलतीं। अब तक महागठबंधन के घटकों के बीच 5 दौर की बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन सीट बंटवारे पर कोई ठोस फैसला नहीं हो पाया है। 2020 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 सीटों पर जीत हासिल कर पाई। उसका स्ट्राइक रेट केवल 27% रहा। राजद 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को महागठबंधन के सरकार बनाने से चूकने का एक कारण बताया गया। इस बार, राजद द्वारा कांग्रेस को पहले जितनी सीटें दिए जाने की संभावना नहीं है। यही वजह है कि 5 दौर की बातचीत के बाद भी सीट बंटवारा फाइनल मोड में नहीं आ सका है। अभी भी अगर मगर है।

राजद क्यों कर रहा मोलभाव

2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस बिहार की 40 में से नौ सीटों पर चुनाव लड़ी थी। महागठबंधन के बैनर तले कांग्रेस 3  सीटें जीतने में  सफल रही। पिछली बार की तुलना में उसका प्रदर्शन बेहतर तो रहा है, लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थितियों में लक्ष्य के अनुरूप नहीं। प्रदेश स्तर पर आकलन है कि संभावना वाली कुछ सीटों पर कांग्रेस की हार का असली कारण भितरघात रहा। 

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दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से केवल चार सीटें जीतीं। लेकिन पार्टी को 22.14% वोट शेयर मिला। यह राज्य के सभी राजनीतिक दलों में सबसे ज़्यादा है। आम चुनाव में भाजपा को 20.52%, जनता दल (यूनाइटेड) को 18.52% वोट मिले। हालांकि ये दोनों पार्टियां अपने वोट शेयर को 12-12 सीटों में तब्दील करने में सफल रहीं। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में, राजद को 15.68% वोट मिले थे, जबकि भाजपा को 23.57% वोट मिले थे।

राजद का आफर- 54 सीटों पर लड़े कांग्रेस

राजद को लगता है कि बिहार में कांग्रेस को 3 सीटें तभी मिल पाईं जब उसके काडर वोट ने हाथ के निशान पर मुहर लगाई। उसकी मदद के बिना कांग्रेस खाता भी नहीं खोल सकती थी। हालांकि इसमें कोई दो राय भी नहीं है। बिहार में कांग्रेस कीतुलना में राजद कहीं ज्यादा मजबूत है। यही वजह है कि राजद कांग्रेस को 54 सीटों से ज्यादा नहीं आफर कर रही। राहुल को ये बात नागवार लगती है कि उन्हें कमतर आंका जाए। 

कांग्रेस उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है जितनी उसने 2020 में लड़ी थी। इसलिए, जब तक कोई संतोषजनक समझौता नहीं हो जाता, कांग्रेस प्रतीक्षा और निगरानी की नीति अपनाएगी। वो तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में समर्थन देने से बच सकती है।

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हालांकि 17 अगस्त को, राहुल और तेजस्वी ने सासाराम से एक खुली जीप में यात्रा की शुरुआत की। राहुल जीप में खड़े होकर उपस्थित लोगों का अभिवादन कर रहे थे, जबकि तेजस्वी ने गाड़ी संभाली। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। तस्वीर के जरिये बिहार के साथ देश भर में सियासी माहौल बनाया गया कि राहुल गांधी भले ही राष्ट्रीय नेता हों, लेकिन बिहार की बागडोर तेजस्वी और राजद के हाथों में है। राजद ने संदेश दिया है कि कांग्रेस बेशक राष्ट्रीय पार्टी है, लेकिन पिछले बिहार की राजनीति में बड़े भाई की भूमिका में राजद ही रहने वाली है। 

ये कारण भी हो सकता है राहुल की चुप्पी का

तेजस्वी को सीएम फेस घोषित न करने की एक वजह इंडिया ब्लाक का तानाबाना भी हो सकता है। इसमें 37 दल शामिल हैं। अकेले तेजस्वी के कह देने भर से ही राहुल गांधी 2029 में विपक्ष का पीएम फेस नहीं बन सकते। ब्लाक में ममता बनर्जी जैसी नेता भी हैं जो गांधी परिवार को फूटी आंख नहीं देखतीं। दूसरे भी कई हैं जो राहुल को पीएम फेस बनाने के खिलाफ हो सकते हैं। कांग्रेस नेता को पता है कि तेजस्वी की बात पर वो उनको सीएम फेस बना भी देंऔर बिहार में महागठबंधन की सरकार बन भी जाए तो क्या गारंटी है कि लालू यादव का परिवार बाद में अपनी बात से मुकर नहीं जाएगा। फिलहाल मौका तेजस्वी का है। उनको लगता है कि राहुल उनको सीएम फेस बना देंगे तो वो महागठबंधन के नेता बन जाएंगे। ये मौका राहुल का नहीं है क्योंकि जो कुछ तेजस्वी ने आज कहा है वो 2029 को लेकर है। उसे आने में अभी भी 4 साल का समय है। 

 राहुल नहीं चाहेंगे कि 4 साल बाद की सियासत को लेकर वो अभी से जोड़तोड़ करें। तब न जाने कौन से हालात बन जाएंगे। वो फिलहाल बिहार पर फोकस करना चाहते हैं। उन्हें पता है कि बिहार में कांग्रेस मजबूत हुई तभी वो आगे के चुनाव में मजबूत रहेंगे। तेजस्वी के कह देने भर से वो पीएम नहीं बनने वाले। आगे यूपी का चुनाव है। बिहार के नतीजों का सीधा असर यूपी पर दिख सकता है। यही वजह है कि राहुल तेजस्वी को सीएम फेस बनाने की बजाय कांग्रेस को मजबूतबनाने पर जोर दे रहे हैं। उन्हें पता है कि मजबूत होंगे तभी इंडिया ब्लाक के 37 दल उनको अपना नेता मानने को तैयार दिख सकते हैं। 

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