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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः मौका था एक किताब की रिलीज का। बुधवार को नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसी बात कही जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके कट्टर समर्थकों को रास नहीं आ रही। भागवत ने संघ के विचारक मोरोपंत पिंगले का जिक्र करते हुए कहा कि वो कहते थे कि जब 75 साल की शाल आपको पहना दी जाए तो समझ जाना चाहिए कि काम से रिटायर होने का वक्त आ चुका है। इसलिए बेहतर है कि दूसरों को मौका देने के लिए खुद ही पीछे हट जाना चाहिए। खास बात है कि पीएम मोदी का सितंबर में 75वां जन्मदिन है। कांग्रेस ने भागवत के वक्तव्य को लेकर पीएम पर तीखा निशाना साधना शुरू कर दिया है।
सितंबर 1925 में हेडगेवार ने की थी संघ की स्थापना, तीन बार लगे प्रतिबंध
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव हेडगेवार ने की थी। हिंदुत्व की विचारधारा से ओतप्रोत इस संगठन ने स्थापना के बाद जल्द ही अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी। हालांकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध भी लगा लेकिन ये जल्दी ही उठा लिया गया। आजादी मिले एक साल भी नहीं हुआ था कि आरएसएस को प्रतिंबध का सामना करना पड़ा। 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। नेहरू सरकार ने महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा था। 18 महीने तक संघ पर प्रतिबंध लगा रहा। ये प्रतिबंध जुलाई 1949 को तब हटा जब गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शर्तें तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने मान लीं. लेकिन ये प्रतिबंध इन शर्तों के साथ हटा कि संघ अपना संविधान बनाए और उसे प्रकाशित करे, जिसमें चुनाव की खास अहमियत होगी।
आरएसएस को दूसरी बार प्रतिबंध का सामना इमरजेंसी के दौर में करना पड़ा। इंदिरा गांधी ने साल 1975 जब देश में इमरजेंसी लगाई तो आरएसएस ने इसका जमकर विरोध किया था। आरएसएस पर 2 साल तक पाबंदी लगी रही। इमरजेंसी के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई तो जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई तब जाकर संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया गया। आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध साल 1992 में लगा। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। जून 1993 को सरकार को संघ पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
संघ की विचारधारा पर बनी थी भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई। संघ की विचारधारा पर इसको जन्म दिया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बने। बीजेपी ने संघ के साथ मिलकर देश भर में एक अभियान चलाया जिससे जल्दी ही इसका आधार बनने लगा। हालांकि 1984 का चुनाव हुआ तो बीजेपी महज 2 सीटें ही जीत सकी। लेकिन उस दौरान इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सहानुभूति की लहर चल रही थी। इसके बाद बीजेपी का ग्राफ बढ़ता चला गया। इसमें सबसे ज्यादा फायदा बाबरी विध्वंस से मिला। सोमनाथ यात्रा को जब बिहार में रोका गया तो एलके आडवाणी नेशनल हीरो बनकर उभरे। 1989 में बीजेपी ने 85 सीटें जीत लीं। 1996 में वो संसद में सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनकर उभरी। 1998 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी जो 1 साल तक चली। वाजपेयी इसके प्रधानमंत्री थे। हालांकि ये सरकार गिर गई। देश में मध्यावधि चुनाव हुए और 1999 में बीजेपी (एनडीए) फिर से सत्ता में लौटी। वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। हालांकि उसके बाद के दौर में आडवाणी कांग्रेस को पराजित नहीं कर सके, जिसके चलते 2004 से लेकर 2014 तक मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
2014 तक संघ के इशारे पर चलती थी बीजेपी
अपनी स्थापना के बाद से नरेंद्र मोदी के सीन में आने तक संघ बीजेपी को नियंत्रित करता था। वाजपेयी बेशक से देश के प्रधानमंत्री थे पर उनके हर फैसले में संघ के खासमखास आडवाणी टांग अड़ा देते थे। जब मुशर्रफ भारत आए और वो वाजपेयी के साथ एक खास समझौते पर दस्तखत करने ही वाले थे तभी एक फोन आया और आगरा सम्मिट विफल हो गई। कहते हैं कि वो फोन नागपुर से आया था। संघ के एक नेता गोविंदाचार्य ने तो यहां तक कह दिया था कि वाजपेयी सरकार का मुखौटा भर हैं। असली चेहरा तो लाल कृष्ण आडवाणी ही हैं।
2014 के बाद से बदल गई बीजेपी की राजनीति
2014 में नरेंद्र मोदी गुजरात से निकलकर दिल्ली की तरफ बढ़े तो बीजेपी की आभा ही बदल गई। बीजेपी ने पहली दफा बहुमत अपने दम पर हासिल किया। एनडीए को 303 सीटें हासिल हुईं। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। बीजेपी सरकार बनने के बाद संघ खुश तो बहुत था लेकिन उसकी ये खुशी जल्दी ही काफूर होने लगी जब मोदी-शाह ने उसे ठेंगा दिखाना शुरू कर दिया। 2019 के चुनाव में बीजेपी और ज्यादा ताकतवर हो गई। उसने अपने दम पर ही 303 सीटें जीत लीं। 2024 में बीजेपी का प्रदर्शन गिरा और वो 237 सीटों पर जाकर सिमट गई।
संघ और बीजेपी के रिश्ते में कहां से शुरू हुई कड़वाहट
संघ और बीजेपी के रिश्ते हमेशा से अच्छे थे। बीजेपी संघ के फरमान को कभी भी टालने की स्थिति में नहीं थी। आडवाणी जब जिन्ना की मजार पर गए तो वो बीजेपी अध्यक्ष थे। ये बात संघ को अखरी और आडवाणी को चलता कर दिया गया। मतलब साफ है कि संघ बीजेपी को उंगलियों पर नचा रहा था। लेकिन 2014 के बाद जब मोदी-शाह की जोड़ी ने दिल्ली में परचम लहराया तो संघ को आइना दिखाना शुरू कर दिया गया। पहली बार दोनों के संबंध में तल्खी तब आई जब 2015 के बिहार चुनाव के दौरान मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर बयान दे दिया। उस बयान के चलते बीजेपी लाख कोशिशें करके भी बिहार में जीत हासिल नहीं कर सकी। ये पहला मौका था जब संघ ने बीजेपी को उसकी हकीकत बताई थी। दोनों के बीच तनातनी का दौर शुरू हो चुका था। उसके बाद से दोनों के संबंधों में खटास बढ़ती ही चली गई।
2024 चुनाव से पहले नड्डा बोले थे- हमें किसी की जरूरत नहीं
ये तल्खी 2024 चुनाव के दौरान और ज्यादा तब बढ़ गई जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि बीजेपी सक्षम दल है। उन्हें आज किसी के (संघ) साथ की जरूरत नहीं है। दोनों के बीच की तनातनी में ये सबसे तीखा लमहा था। संघ ने नड्डा की बात को बेहद गंभीरता से लिया था। अब फिलहाल बीजेपी अपनी कमजोर स्थिति में है। सरकार चलाने के लिए उसे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की जरूरत है।
संघ इस वजह से कर रहा है 75 की उम्र का जिक्र
संघ को पता है कि अगर वो अब मोदी-शाह को कंट्रोल नहीं कर पाया तो कभी कर भी नहीं पाएगा। यही वजह है कि बीजेपी अध्यक्ष की नियुक्ति कराने के लिए भागवत बार-बार दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं। उनको पता है कि बीजेपी अध्यक्ष अपना होगा तो मोदी-शाह पर लगाम लगाना आसान रहेगा। लेकिन अभी तक लगता नहीं कि मोदी-शाह ने बीजेपी अध्यक्ष को लेकर भागवत की बात को तवज्जो भी दी है। जानकार कहते हैं कि भागवत को पता है कि नरेंद्र मोदी को हटाना उनके वश की बात नहीं है पर उनको काबू तो किया ही जा सकता है। यही वजह है कि उन्होंने ऐसे समय पर 75 की उम्र और रिटायरमेंट का जिक्र किया है जब नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 75 साल पूरे करने ही वाले हैं। भागवत चाहते हैं कि जिस आंकड़े में मोदी ने आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को फंसाकर रिटायर कर दिया अब उसी आंकड़ों में उनको भी फंसाया जाए। वो नहीं हटेंगे तो कोई बात नहीं पर इस दबाव की राजनीति से बीजेपी अध्यक्ष तो ऐसे शख्स को बनवाया जा सकता है जो संघ और उनकी सुने।
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