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Explain: पश्चिम बंगाल को क्यों लगा 11 हजार करोड़ का सुप्रीम फटका, समझिए पूरा मसला

सुप्रीम कोर्ट का 16 मई का अंतरिम आदेश केंद्र सरकार के कर्मचारियों के साथ वेतन समानता पर लंबे समय से चल रहे विवाद में थोड़ी राहत देता है। लेकिन इससे राज्य सरकार पस्त हो जाएगी।

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Shailendra Gautam
CM Mamata Banerjee

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः  सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया है कि वह अपने कर्मचारियों को छह सप्ताह के भीतर बकाया महंगाई भत्ते (डीए) का 25 फीसदी जारी करे। यह रकम तकरीबन 11 हजार करोड़ रुपये होगी। इससे लगभग 10 लाख कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। 16 मई का अंतरिम आदेश केंद्र सरकार के कर्मचारियों के साथ वेतन समानता पर लंबे समय से चल रहे विवाद में थोड़ी राहत देता है। लेकिन इससे राज्य सरकार पस्त हो जाएगी। मुद्दा क्या है और पश्चिम बंगाल सरकार ने अतीत में डीए बढ़ाने का विरोध क्यों किया है? हम बताते हैं। Judiciary | west bengal news

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पहले समझिए कि क्या है महंगाई भत्ता 

महंगाई भत्ते का भुगतान सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को उनके वेतन के अलावा महंगाई के प्रभाव को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है। इसकी गणना मूल वेतन या पेंशन के प्रतिशत के रूप में की जाती है। All India Consumer Price Index पर आधारित मुद्रास्फीति दर का उपयोग जीवन यापन की लागत में वृद्धि की गणना के लिए किया जाता है। इसे ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए सरकार साल में दो बार डीए में बदलाव करती है। 

पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी ने इस साल अपने बजट भाषण के दौरान 4 फीसदी की बढ़ोतरी की। अब बंगाल के कर्मियों को 18 फीसदी डीए मिलता है। जबकि केंद्र सरकार के कर्मचारियों का डीए 55 फीसदी है। सुप्रीम कोर्ट 2022 के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रहा था। HC ने बंगाल सरकार को फरमान दिया था कि वो डीए को केंद्र सरकार की दरों के अनुरूप करे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने है कि अंतरिम राहत 2009 और 2019 के बीच जमा हुए  बकाया डीए पर लागू होगी। मामले की अगली सुनवाई अगस्त में है। इस दौरान अदालत इस बात पर विचार करेगी कि क्या महंगाई भत्ता प्राप्त करने का अधिकार मौलिक अधिकार है।

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INTUC के दो नेताओं ने खड़ा किया सारा बखेड़ा

राज्य सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच कानूनी लड़ाई पश्चिम बंगाल राज्य सरकार कर्मचारी परिसंघ के दो नेताओं के साथ शुरू हुई। दोनों भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) से संबद्ध है। 2016 में मलय मुखोपाध्याय और श्यामल कुमार मित्रा ने मुख्य सचिव को एक नोटिस भेजा, जिसमें बकाया डीए की मांग की गई थी। मुखोपाध्याय का कहना है कि सरकार ने जब हीलाहवाली की तो वो अदालत गए। हाईकोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में आया। 20 मई 2022 को HC ने कर्मचारियों को डीए और एरियर जारी करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा था कि भत्ता तीन महीने के भीतर जारी किया जाना चाहिए। बकौल हाईकोर्ट बकाया राशि की गणना All India Consumer Price Index के आधार पर की जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि मुद्रास्फीति के निरंतर दबाव के कारण वेतन का वास्तविक मूल्य समय बीतने के साथ लगातार कम होता जा रहा है। सरकार के वकील ने कहा कि मुद्रास्फीति का प्रभाव एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होता है और बंगाल के लिए केंद्र की दरों को अपनाना अनिवार्य नहीं है। सरकार का तर्क था कि अगर वो केंद्र की दरों के मुताबिक डीए देती है तो उसका खजाना खाली हो जाएगा। लेकिन हाईकोर्ट ने माना कि डीए कानूनी अधिकार है और सरकार की वित्तीय अक्षमता का तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आदेश को चुनौती देते हुए बंगाल सरकार ने नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन दिसंबर 2024 से सुनवाई 18 बार स्थगित हुई।

बंगाल सरकार बताती रही खर्च का ब्योरा, नहीं माना सुप्रीम कोर्ट 

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बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार को इस फैसले की वजह से बकाया राशि का भुगतान करने के लिए 11 हजार करोड़ रुपये देने होंगे। सरकार का कहना है कि मौजूदा परियोजनाएं भी सरकार के बिल में इजाफा करती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को वित्तीय सहायता देने वाली लक्ष्मीर भंडार योजना की लागत 25 हजार करोड़ रुपये है। बांग्लार बारी आवास योजना की लागत 40 हजार करोड़ रुपये है। कन्याश्री और लक्ष्मीश्री, पूजा समितियों के लिए सहायता और अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का खर्च कुल मिलाकर 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक है। 2025-26 का राज्य बजट 3.89 लाख करोड़ रुपये का था। इस अवधि के लिए अनुमानित राजस्व घाटा 35,314.95 करोड़ रुपये है। राजकोषीय घाटा 73,000 करोड़ रुपये से अधिक है और बकाया कर्ज करीब 7.71 लाख करोड़ रुपये है। इस साल कर्ज 8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। पिछले साल हमने लक्ष्मी भंडार मासिक भुगतान 500 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया, जिससे कुल खर्च में और ज्यादा इजाफा हो गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की सारी दलीलों को दरकिनार करके कहा कि आप हमारे आदेश पर अमल कीजिए। हम इस मामले में किसी भी तरह की ना नहीं सुनने वाले हैं। 

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