Advertisment

Explain: सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों है विपक्षी दलों के लिए जीत सरीखा

सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक आयोग को फरमान नहीं दिया है लेकिन ये कहना कि तीन दस्तावेज प्रक्रिया में शामिल नहीं करेंगे तो उसका कारण हमें जरूर बताए।

author-image
Shailendra Gautam
Rahul Gandhi

राहुल गांधी पर लखनऊ कोर्ट ने 200 रुपये का जुर्माना लगाया Photograph: (Social Media)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला दिया कि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का काम संवैधानिक रूप से गलत नहीं है लेकिन इसमें कुछ तकनीकी खामियां हैं। टाप कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार में एसआईआर से रोकने से इनकार कर दिया, लेकिन कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर विचार करे। हालांकि उसने इन्हें स्वीकार या अस्वीकार करना चुनाव आयोग के विवेक पर छोड़ दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मंशा आयोग को बता दी है। चुनाव आयोग के वकील ने जब आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को लेकर आपत्ति जताई तो कोर्ट ने कहा कि 28 जुलाई के लिए अपने जवाब को बचाकर रखिए। साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो बात आज सलाह के तौर पर कही अगली सुनवाई में वो फैसले में तब्दील हो सकती है। 

Advertisment

पहले पढ़िए कोर्ट का पूरा फैसला

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया है जो हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ तक जाता है। प्रश्न मतदान के अधिकार का है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 24 जून के आदेश के तहत मतदाता सूची की एसआईआर न केवल मतदाताओं के अधिकार क्षेत्र के अनुच्छेद 324, 325, 14, 19 और 21 का उल्लंघन है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व कानून और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों का भी उल्लंघन है। निर्वाचन आयोग का तर्क है कि पिछला संशोधन 2003 में हुआ था और अनुच्छेद 326 के तहत अब एक गहन संशोधन की आवश्यकता है।

चुनाव आयोग की कार्यवाही को लेकर कोर्ट ने उठाए तीन सवाल

Advertisment

कोर्ट ने कहा कि तीन सवाल हैं। पहला कि एसआईआर करने की निर्वाचन आयोग की शक्तियां। दूसरा इन शक्तियों के प्रयोग की प्रक्रिया और तीसरा सबसे अहम सवाल है समय-सीमा। जो बहुत कम है और नवंबर में समाप्त होने वाली है। बेंच ने कहा कि मामले की सुनवाई जरूरी है। इसे 28 जुलाई को अदालत के सामने लिस्ट किया जाए। जवाब एक सप्ताह के भीतर, 21 जुलाई को या उससे पहले दाखिल किया जाएं। सारे जवाब 28 जुलाई से पहले दाखिल किए जाएं।

तीन दस्तावेज शामिल करने को कहा, न करने पर कारण बताएगा EC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दस्तावेजों को देखने के बाद चुनाव आयोग ने बताया है कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेजों की सूची में 11 दस्तावेज शामिल हैं और यह संपूर्ण नहीं है। इसलिए हमारी राय में, यह जरूरी होगा कि आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी इसमें शामिल किया जाए। इससे याचिकाकर्ता संतुष्ट होंगे, क्योंकि वो एसआईआर पर अंतरिम रोक का दबाव नहीं डाल रहे हैं। यह चुनाव आयोग को ही तय करना है कि वह दस्तावेज लेना चाहता है या नहीं। यदि वह ये दस्तावेज नहीं लेता है तो चुनाव आयोग को इसके लिए कारण बताना होगा।

Advertisment

जस्टिस ने जब आयोग के वकील को लगा दी फटकार

जस्टिस धूलिया ने कहा कि हमारी प्रथम दृष्टया राय में न्याय के हित में चुनाव आयोग इन दस्तावेजों  आधार, राशन कार्ड और ईपीआईसी कार्ड को भी शामिल करेगा। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने जब ये कहा कि कृपया यह भी जोड़ें कि चुनाव आयोग के पास इस मामले में विवेकाधिकार है। जस्टिस धूलिया ने तल्ख लहजे में कहा कि अपना बचाव अब आप 28 जुलाई के लिए बचाकर रखिए।

आयोग से कहा- 28 के लिए अपना बचाव बचाकर रखिए

Advertisment

हालांकि इस पूरे फैसले में टाप कोर्ट ने तीन दस्तावेजों को प्रक्रिया में शामिल करने के लिए बाध्य नहीं किया लेकिन जिस तरह से जस्टिस धूलिया ने आयोग के वकील से तल्ख लहजे में कहा कि अपना बचाव 28 जुलाई के लिए बचाकर रखिए। सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक आयोग को फरमान नहीं दिया है लेकिन ये कहना कि तीन दस्तावेज प्रक्रिया में शामिल नहीं करेंगे तो उसका कारण हमें जरूर बताए। मतलब साफ है कि जो आज सलाह के लहजे में कहा गया है वो 28 को फैसले में तब्दील हो सकता है। 

विपक्षी दलों के लिए फैसला संजीवनी जैसा

विपक्षी दलों के लिए ये फैसला जीत की तरह से है क्योंकि कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट से प्रक्रिया पर रोक की मांग नहीं की थी। उनकी दलीलें इस बात को लेकर थीं कि 2003 की प्रक्रिया में 3 दस्तावेज मांगे गए थे तो अब आयोग 11 मांग रहा है पर 11 की लिस्ट में आधार, राशन कार्ड शामिल नहीं है। उनका कहना था कि बिहार में एक बड़ी आबादी सूबे से बाहर रहती है। जो 11 दस्तावेज मांगे गए हैं उनको पेश करना हर किसी के बस की बात नहीं है। आधार और राशन कार्ड तो गरीबों के पास भी है पर जो आयोग मांग रहा है वो कुलीन वर्ग के पास भी बमुश्किल मिलेगा। फिलहाल टाप कोर्ट ने सलाह के तौर पर ही सही पर आयोग को अपना रुख बता दिया है। वो फैसले को नहीं मानता है तो उसे कारण बताने होंगे। लेकिन मामले को देखकर लगता नहीं है कि आयोग अदालत की सलाह को दरकिनार करेगा।

विपक्ष को आशंका है कि आयोग बीजेपी के वोटर्स लिस्ट में जोड़ देगा

बिहार में चुनाव नवंबर के महीने में हैं। विपक्षी दलों की चिंता इस बात को लेकर है कि चुनाव से 4 महीने पहले आयोग जो कुछ कर रहा है उसका मकसद बहुत से वोटर्स को लिस्ट से बाहर करने का है और अपने मनमाफिक वोटर्स को शामिल करने का है। राहुल गांधी जोरशोर से कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में लाखों वोटर आयोग ने जोड़ दिए। ये सारे बीजेपी के लोग थे। इनकी वजह से उनकी चुनाव में हार हुई। आयोग ने जब पुनरीक्षण को लेकर घोषणा की तो विपक्ष की चिंता इस बात को लेकर ही थी कि 11 दस्तावेजों के नाम पर आयोग ऐसी चीजें मांग रहा है जो हर किसी के पास नहीं होंगी। ऐसे में वैध लोगों के वोट काटकर पिछले दरवाजे से अपनों को बीजेपी वोटर बनवा देगी। इससे बिहार चुनाव की नतीजा महाराष्ट्र की तरह से प्रभावित हो सकता है। 

महाराष्ट्र में लोकसभा से विधानसभा के नतीजे बिलकुल उलट थे

गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा से ऐन पहले हुए लोकसभा चुनावों में एनडीए केवल 18 सीटें जीत पाई थी। सूबे में कुल 48 सीटें हैं। एमवीए को लोकसभा परिणाम से उम्मीद थी कि उसकी जीत होगी। लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर ही 135 सीटें जीत लीं। सूबे में कुल 288 सीटें हैं। यानि बीजेपी एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को एनडीए से अलग भी कर दे तो भी फुटकर जीतकर आए विधायकों को लेकर सरकार बना सकती है। उधर राहुल गांधी का सवाल है कि महज पांच-छह महीने के दौरान ही महाराष्ट्र के वोटर्स का मूड कैसे बदल गया। ये धांधली है। 

Supreme Court, SIR, Bihar, Bihar elections, Rahul Gandhi, Election Commission, 2025 assembly election Bihar | Judiciary

Bihar Judiciary 2025 assembly election Bihar
Advertisment
Advertisment