सुप्रीम कोर्ट की इन हाउस कमेटी से होती है शुरुआत
सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के खिलाफ कोई गंभीर आरोप सामने आता है तो सबसे पहला कदम सीजेआई की तरफ से उठाया जाता है। वो आरोपी को बुलाकर उसका पक्ष जानने की कोशिश करते हैं अगर उनको जवाब सही नहीं लगता है तो वो इन हाउस कमेटी का गठन कर सकते हैं। आरोप अगर हाईकोर्ट के किसी जज के खिलाफ हैं तो वहां के चीफ जस्टिस आरोपी को बुलाकर उसका पक्ष जान सकते हैं। संतुष्ट न होने पर वो मामला सीजेआई के पास भेजते हैं। इन हाउस कमेटी में हाईकोर्ट्स के दो चीफ जस्टिसों के साथ एक जस्टिस का होना अनिवार्य है। ये कमेटी अपने तरीके से जांच करती है। ये या तो आरोपी को दोषी मान सकती है या फिर उसे बरी कर सकती है। ये कमेटी के भी फैसला कर सकती है कि जो आरोप हैं वो इस प्रकृति के नहीं कि जज को नौकरी से हटाया जाना जरूरी है।
इन हाउस कमेटी में जज अगर आरोपी पाया जाता है तो सीजेआई उसे बुलाकर इस्तीफा देने को कह सकते हैं। आरोपी अगर इस्तीफा देने से इन्कार करता है तो सीजेआई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को कमेटी की रिपोर्ट भेज देते हैं। वो सिफारिश कर सकते हैं कि आरोपी पर महाभियोग चलाया जाए। उसके बाद संसद में प्रस्ताव पेश करना होता है। Justice yashwant verma | parliament | Indian Judiciary
राष्ट्रपति के आदेश के बगैर नहीं हटाया जा सकते जज
संविधान का जब गठन हुआ तो न्यायपालिका की आजादी के मद्देनजर ये फैसला लिया गया कि अगर सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का कोई किसी ऐसे मामले में फंस जाए जो न्यायपालिका पर एक बदनुमा दाग की तरह से हो तो ऐसी स्थिति में उसे राष्ट्रपति ही पदच्युत कर सकते हैं। राष्ट्रपति ऐसा कोई भी आदेश संसद में दो तिहाई बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव के पास होने के बाद ही जारी कर सकते हैं।
संविधान ने आर्टिकल 124(4) के तहत सुप्रीम के जज को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया है। आर्टिकल 218 के जरिये इसमें हाईकोर्ट्स के जजेस को भी शामिल किया गया था। संवैधानिक रास्ते के मुताबिक जज को हटाने के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा के साथ राज्यसभा में भी बहुमत से पारित होना जरूरी है। राष्ट्रपति तभी आदेश जारी कर सकते हैं। हालांकि संवैधानिक संशोधन के जरिये प्रक्रिया में सुधार भी किए गए हैं।
Judges (Inquiry) Act, 1986 के मुताबिक किसी जज के खिलाफ वैध महाभियोग नोटिस मिलने के बाद राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष को आरोपों की जांच के लिए जजों की एक समिति का गठन करना होता है। धारा 3(9) में कहा गया है कि केंद्र सरकार, लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति या दोनों के समक्ष जज के खिलाफ मामले को चलाने के लिए एक वकील नियुक्त कर सकती है।
समिति की रिपोर्ट को संसद में विचार के लिए रखा जाना आवश्यक है। अधिनियम की धारा 6(3) में कहा गया है कि अगर प्रस्ताव को संसद के दोनों सदन आर्टिकल 124(4), आर्टिकल 218 के अनुरूप पाते हैं तो जज पर लगा आरोप सच माना जाएगा। उसके बाद जज को हटाने के लिए प्रक्रिया चलाई जाएगी और फिर राष्ट्रपति को सिफारिश भेजी जाएगी।
महाभियोग के जरिये आज तक नहीं हटा कोई जज
हालांकि संवैधानिक स्तर पर जज को हटाने के लिए महाभियोग की प्रकिया का तानाबाना बुना गया था। लेकिन भारत के इतिहास में आज तक कोई भी जज महाभियोग के जरिये नहीं हटा। जजों के खिलाफ करप्शन के केस आए पर इस्तीफा देकर चलते बने। नौबत महाभियोग तक पहुंची ही नहीं। जस्टिस वी रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग सदन में गिर गया था।
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