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President प्रतिभा पाटिल के 7 सवाल सुप्रीम कोर्ट ने कर दिए थे दरकिनार, जानिए क्या कहता है संविधान

2जी मामले में शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि हर संदर्भ में वो सलाहकार राय देने के लिए बाध्य नहीं है। वह मजबूत और अच्छे कारणों से ऐसा करने से इन्कार कर सकता है।

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Shailendra Gautam
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्लोवाकिया दौरे पर, 29 साल बाद किसी भारतीय राष्ट्रपति की यात्रा

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को एक अनूठे घटनाक्रम में संविधान के आर्टिकल 143(1) का हवाला देते हुए आर्टिकल 200 और 201 के तहत राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियों से जुड़े 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी है।यह संदर्भ हाल ही में टाप कोर्ट के उस फैसले की पृष्ठभूमि में दिया गया है, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानसभाओं की तरफ से पारित विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। टाप कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि तय समयसीमा में फैसला न आने को स्वीकृति माना जाएगा। हालांकि केंद्र दो जजों की बेंच के फैसले की समीक्षा को लेकर रिट दायर कर सकती थी, लेकिन राष्ट्रपति ने सवाल पूछकर मामले को पेंचीदा बना दिया है। हो सकता है कि अब इस मामले की सुनवाई संविधान बेंच करे, या फिर सु्प्रीम कोर्ट 14 सवालों के जवाब उसी अंदाज में दे जैसे उसने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के 7 सवालों के जवाब 2जी मामले में दिए थे।

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पहले समझते हैं कि क्या है आर्टिकल 143(1) 

संविधान के आर्टिकल 143(1) में राष्ट्रपति की उस शक्ति का जिक्र है जिसके तहत वो सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकता है। अनुच्छेद में कहा गया है कि सार्वजनिक महत्व से जुड़े किसी मसले पर राष्ट्रपति कानून या तथ्य का हवाला देकर सर्वोच्च न्यायालय की राय ले सकते हैं अदालत को उस संदर्भ पर सुनवाई करनी होगी और अपनी राय राष्ट्रपति को बतानी होगी। यह सर्वोच्च न्यायालय के सलाहकार क्षेत्राधिकार का हिस्सा है जो राष्ट्रपति को समर्पित है।not  2जी मामले में प्रतिभा पाटिल ने पूछे थे 7 सवाल, कोर्ट ने कही थी ये बात

2जी स्पेक्ट्रम नीलामी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जब मनमोहन सिंह सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था तो तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 7 सवालों के जरिये सुप्रीम कोर्ट को घेरने की कोशिश की थी। 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 पर विस्तार से चर्चा की थी। एक आपत्ति यह सामने आई थी कि संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत संदर्भ में अपील या समीक्षा का अधिकार नहीं है। राज्यपाल मामले में भी इसी तरह का सवाल उठ सकता है। उस दौरान सीनियर एडवोकेट सोली सोराबजी ने तर्क दिया था कि अगर मौजूदा संदर्भ पर विचार किया जाता है तो यह कार्यपालिका को असुविधाजनक निर्णयों के प्रभाव को दरकिनार करने या नकारने का मार्ग प्रशस्त करेगा। ये एक गलत तरीके की मिसाल कायम करेगा। इसके दूरगामी परिणाम सुप्रीम कोर्ट के लिए ठीक नहीं होंगे। President Draupadi Murmu | Judiciary | Indian Judiciary

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2जी मामले में दलीलों से निपटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अनिवार्य रूप से राष्ट्रपति का मामला है कि वह तय करें कि संदर्भ में प्रश्न अनुच्छेद 143(1) की पूर्वापेक्षाओं को पूरा करते हैं या नहीं। लेकिन शीर्ष न्यायालय हर संदर्भ में सलाहकार राय देने के लिए बाध्य नहीं है और वह मजबूत, और अच्छे कारणों से ऐसा करने से इन्कार कर सकता है। अदालत ने पहले के संदर्भों के आधार पर संक्षेप में कहा कि संदर्भ अस्पष्ट, सामान्य और अपरिभाषित नहीं होना चाहिए। सवाल जब समझ से परे हो जाते हैं तो संदर्भ को को वापस करना पड़ जाता है।

सुप्रीम कोर्ट चाहे तो टाल सकता है राष्ट्रपति मुर्मु के 14 सवाल

2जी के अलावा पहले के मामलों को देखकर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के लिए राष्ट्रपति के सवालों के जवाब देना बाध्यकारी नहीं है। 2जी के अंदाज में टाप कोर्ट फैसला कर सकती है कि गवर्नर और राष्ट्रपति की शक्तियों को लेकर जो निर्णय उसने दिया है उसकी पालना करनी ही होगी। मामला सार्वजनिक महत्व का है। कुछ वैसे ही जैसे 2जी का था। चुनी हुई सरकारों के निर्णय उन सूबों में राज्यपाल लटका रहे हैं जहां पर बीजेपी की सरकारें नहीं हैं। सरकारों के निर्णय पहले राज्यपाल लंबित करके रखते हैं और फिर संवैधानिक जोखिम बनता दिखता है तो राष्ट्रपति को ऐसे मामले रेफर कर दिए जाते हैं। राष्ट्रपति मुर्मु ने 14 सवालों के जरिये आर्टिकल 200 और 201 के तहत दिए गए प्रावधानों का जिक्र किया है। उनका तर्क है कि संविधान उनको तय समय सीमा में किसी सरकारी बिल पर फैसला देने के लिए बाध्य नहीं करता है जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति तय समय सीमा के भीतर कोई फैसला नहीं लेते हैं तो इसे उनकी स्वीकृति के तौर पर लेकर बिल को कानूनी माना जाएगा।

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मोदी सरकार में पहली बार राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा सवाल

हालांकि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान (2014 से अभी तक जारी) किसी राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को कोई रेफरेंस भेजकर सवाल नहीं पूछा है। ये पहला मौका है जब 143(1) के तहत किसी राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रायशुमारी की है या कोई सवाल पूछा है। हालांकि आजाद भारत के इतिहास में पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने ही सुप्रीम कोर्ट के 143(1) के तहत रेफरेंस भेज दिया था। उसके बाद ये कवायद जारी रही। तकरीबन हर मौके पर सुप्रीम कोर्ट ने रेफरेंस के जवाब दिए अलबत्ता कुछ मौके ऐसे भी रहे जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने चुप्पी साध ली या फिर जवाब देने से इन्कार कर दिया। 2000 से लेकर 2025 तक केवल पांच ऐसे मामले सामने आए जब सुप्रीम कोर्ट से किसी राष्ट्रपति ने रेफरेंस के जरिये सवाल पूछे। इनमें गवर्निंग असेंबली इलेक्शन से जुड़े कानून, गुजरात गैस एक्ट, 2 जी स्पेक्ट्रम केस, पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट और अब राज्यपाल  राष्ट्रपति के अधिकारों से जुड़ा मसला शामिल है।

Presidential reference, Article 143, Supreme Court

Indian Judiciary Judiciary President Draupadi Murmu
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