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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः उत्तराखंड का एक गांव था धराली। कुछ अरसा पहले तक ये गांव आबाद था। अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए ये गांव हर साल पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता था। लेकिन कुछ समय पहले धराली के पास के इलाके में बादल फटा और उसके बाद आई बाढ़ में सारा का सारा गांव ही पानी में बह गया। इस गांव का नामोनिशान तक नहीं बचा है। प्रशासन ने जुगत भिड़ाकर सैंकड़ों लोगों को बचाने में कामयाबी तो हासिल कर ली लेकिन इस बात का जवाब किसी के पास नहीं कि अचानक ये तबाही आई क्यों। इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं हुआ?
गंगा ने मचाई यूपी और बिहार में तबाही
हालांकि ये कहानी केवल धराली को लेकर ही नहीं है। गंगा नदी के उफान ने बिहार और उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में भयंकर बाढ़ ला दी है, जिससे लाखों लोग बेघर हो गए हैं। मूसलाधार बारिश ने नदी के जलस्तर को बढ़ा दिया है। तटबंधों को तोड़कर पानी यहां वहां बह रहा है। केंद्रीय जल आयोग और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार बिहार के भागलपुर और उत्तर प्रदेश के वाराणसी, प्रयागराज और मिर्जापुर जैसे प्रमुख केंद्रों पर जल स्तर खतरे के निशान को पार कर गया है। इससे बड़े पैमाने पर इलाका जलमग्न हो गया है।
बिहार में 10 जिलों के लाखों से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। उत्तर प्रदेश में 17 जिलों में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इससे हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। हजारों घरों और फसलों को नुकसान पहुंचा है। दोनों राज्यों में राहत शिविर और बचाव अभियान चल रहे हैं। उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में बादलों के फटने से आई बाढ़ ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है। इसने उत्तराखंड के गांवों को तबाह कर दिया है। हिमाचल प्रदेश में रोजाना सड़कें के बहने की खबरें आ रही हैं।
जलवायु परिवर्तन से स्थिति कैसे बिगड़ रही है?
अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत के पूर्वी भाग में नदियों का प्रवाह तेजी से बढ़ेगा। इसके चलते जल संकट पैदा होगा। बढ़ती गर्मी सतही जल के तापमान में भी वृद्धि कर रही है। इसकी वजह से वाष्पीकरण बढ़ रहा है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर के साथ पाकिस्तान में बादल फटने की घटनाएं बढ़ते तापमान से जुड़ी हैं। जब बादल अपने निर्धारित स्तर पर पहुंच जाते हैं तो वो थोड़े समय में ही किसी खास इलाके में भारी बारिश कर देते हैं। अचानक होने वाली मूसलाधार बारिश की वजह से नदियां उफनने लग जाती हैं और इससे पैदा होने लगती है तबाही।
यह जैव विविधता को कैसे प्रभावित करता है?
साइंटिफिक रिपोर्ट्स" पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, तापमान में प्रत्येक एक डिग्री की वृद्धि से नदी के जल निकायों में घुली हुई ऑक्सीजन में 2.3 प्रतिशत की कमी आती है। बढ़ता वायुमंडलीय तापमान जल के तापमान में वृद्धि करता है, जिससे नदियों और झीलों में घुली हुई ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। जलीय जीवों को जीवित रहने के लिए घुली हुई ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसकी कमी जलीय पारिस्थितिक तंत्र में भारी तबाही ला सकती है। यह अध्ययन सात भारतीय नदियों गंगा, नर्मदा, कावेरी, साबरमती, तुंगभद्रा, मूसी और गोदावरी पर किया गया। इसमें जल के तापमान में वृद्धि दर्ज की गई।
भूजल स्तर में गिरावट से बिगड़ रहा है धरती का संतुलन
भारतीय विज्ञान संस्थान के एक अन्य अध्ययन ने भूजल स्तर में गिरावट में बढ़ते तापमान की भूमिका का जिक्र किया है। भूमि के अंदर जल की कमी पृथ्वी के आंतरिक संतुलन को बिगाड़ रही है। जलवायु परिवर्तन के अलावा भूमि उपयोग के पैटर्न भी किसी क्षेत्र में जल प्रवाह की दर निर्धारित करते हैं। अनुचित भूमि प्रबंधन अपवाह (surface runoff) को बढ़ा सकता है। ये जल संकट को और बढ़ा सकता है। भारतीय नदियों में बढ़ता प्रदूषण बढ़ते तापमान और पारिस्थितिक तनाव में और योगदान देता है। ये नदियों को बेकाबू करने लग जाता है।
कुदरत के हिसाब से चलेंगे तभी नदियां होंगी शांत
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर समय रहते जरूरी कदम न उठाए गए तो नदियां आने वाले समय में और भी ज्यादा बेकाबू होने लग जाएंगी। बढ़ते तापमान की वजह से बादलों के फटने की घटनाओं में इजाफा होगा। नदियां अपने तटबंधों को छोड़कर बेकाबू होने लग जाएंगी। इसको रोकना है तो कुदरत के नियमों के मुताबिक चलना होगा। खेती के साथ जीवन यापन के तरीके वैसे ही करने होंगे जैसे कुदरत चाहती है।
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