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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः भारतीय वायु सेना (IAF) का एक SEPECAT जगुआर जेट बुधवार दोपहर लगभग 12:30 बजे राजस्थान के चुरू जिले की रतनगढ़ तहसील में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुर्घटना में दोनों पायलटों की मौत हो गई। इस साल इस विंटेज विमान से जुड़ी यह तीसरी दुर्घटना है। मार्च में उड़ान भरने के तुरंत बाद अंबाला में एक जगुआर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जबकि अप्रैल में जामनगर के पास एक जेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। एविएशन सेफ्टी नेटवर्क के डेटाबेस के अनुसार पिछले एक दशक में कम से कम 12 जगुआर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। फिर भी यह विंटेज जेट लगभग 2040 तक सेवा में बना रहेगा। भारतीय वायुसेना एकमात्र ऐसी वायुसेना है जहां यह जेट अभी भी सेवा में है। क्यों?
60 के दशक में ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर बनाया था जेट
जगुआर को 1960 के दशक में ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स (RAF) और फ़्रांस की आर्मी डे ला एयर के लिए बनाया गया था। इसका निर्माण SEPECAT द्वारा किया गया था, जो फ़्रांस की ब्रेगेट और ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कार्पोरेशन का एक संयुक्त उद्यम है। जगुआर ने पहली बार 1968 में उड़ान भरी थी। इस जेट में पारंपरिक स्वेप्ट विंग डिजाइन, दो कम शक्ति वाले रोल्स-रॉयस टर्बोमेका एडोर इंजन, दो 30-मिमी तोपें और सात हार्डपॉइंट हैं। जो राकेट, मिसाइल और गाइडेड या अन गाइडेड बम ले जाने में सक्षम हैं। इसकी अपेक्षाकृत कम लड़ाकू क्षमता 46 हजार फीट और अधिकतम गति 1.6 मैक है।
1979 में ब्रिटेन से पहली बार भारत आया था जगुआर
1978 में एक अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय वायुसेना को 1979 में रॉयल एयर फोर्स (RAF) से लोन पर जगुआर विमानों की पहली खेप मिली। भारतीय वायुसेना के लिए 40 विशेष रूप से निर्मित जगुआर विमानों का पहला बैच 1981 में दिया गया था। कुल मिलाकर भारत ने विभिन्न प्रकार के 160 से अधिक जगुआर विमानों को शामिल किया है, जिनमें एक-सीट वाला स्ट्राइक फाइटर जगुआर IS, दो-सीट वाला ट्रेनर जगुआर IB और नौसेना के लिए बना जगुआर IM शामिल हैं। इन विमानों की क्षमताओं को बढ़ाने और उनकी सेवा अवधि बढ़ाने के लिए कई अपग्रेडेशन किए गए हैं। भारतीय वायुसेना इन विमानों को 2040 तक सेवा में बनाए रखेगी, इसके तीन मुख्य कारण हैं।
चार कारण, जिनकी वजह से नहीं रिटायर हो रहा जगुआर
पहला ये कि भारतीय वायुसेना लंबे समय से नए विमानों की खरीद के लिए जूझ रही है। एचएएल का तेजस कई समस्याओं से जूझ रहा है और इसमें लगातार देरी हो रही है। इसे जगुआर और मिग-21 बीआई सहित वायुसेना के कई पुराने विमानों की जगह लेनी थी।
दूसरा अपनी स्क्वाड्रन संख्या (स्वीकृत 42 के मुकाबले) घटकर केवल 31 रह जाने के कारण भारतीय वायुसेना जगुआर को हटाने की स्थिति में नहीं है। इसका मतलब यह है कि भारतीय वायुसेना को फिलहाल अपने मौजूदा विमानों से ही काम चलाना होगा।
तीसरा जगुआर अपनी निर्धारित गहरी पैठ की भूमिका में एक सक्षम लड़ाकू विमान बना हुआ है। यह विमान कम ऊंचाई पर अच्छा प्रदर्शन करता है। और इसके पुराने एवियोनिक्स सूट, रडार सिस्टम और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में कई सुधारों के साथ यह एक हमलावर हथियार बना हुआ है।
चौथा कारण ये है कि जगुआर एक किफायती और रखरखाव में आसान जेट भी है। खासकर आधुनिक विमानों की तुलना में। उदाहरण के लिए कुछ अनुमानों के अनुसार इसका इंजन केवल 30 मिनट में बदला जा सकता है, जिससे गहन अभियानों के दौरान इंजन को जल्दी बदला जा सकता है। हालांकि अन्य सेनाओं में इस जेट के इस्तेमाल को बंद किए जाने के कारण इसके पुर्जे खोजने में कुछ दिक्कतें आई हैं, लेकिन भारतीय वायुसेना ने 2018 में लगभग 40 रिटायर्ड विमानों का अधिग्रहण किया और उन्हें पुर्जों के लिए इस्तेमाल किया। इससे जगुआर को युद्ध के लिए तैयार किया जा सका है।
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