Advertisment

Explainer> हरित पटाखों से 30% कम उत्सर्जन, लेकिन पूरी तरह सुरक्षित नहीं, विशेषज्ञों का दावा

विशेषज्ञों की मानें तो इन पटाखों से 30 प्रतिशत कम उत्सर्जन होता है, परंतु स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक पटाखों की तुलना में इन्हें अधिक पर्यावरण अनुकूल माना जाता है। 

author-image
Mukesh Pandit
Green Crackers

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली-एनसीआर में दिवाली पर हरित पटाखों को छोड़े जाने की छूट के आदेश से त्योहार की खुशियां दोगुनी हो जाएंगी। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो इन पटाखों से 30 प्रतिशत कम उत्सर्जन होता है, परंतु स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक पटाखों की तुलना में इन्हें अधिक पर्यावरण अनुकूल माना जाता है। करीब 30 प्रतिशत तक उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से बनाए गए हरित पटाखे पारंपरिक पटाखों की अपेक्षा कम प्रदूषण फैलाते हैं। इन्हें भारत में त्योहारों, खासकर दीपावली के दौरान बढ़ते वायु व ध्वनि प्रदूषण को ध्यान में रखकर बनाया गया है। 

बढ़ते प्रदूषण स्तर को मद्देनजर रखकर बनाए पटाखे

हरित पटाखे वर्ष 2018 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर–एनईईआरआई) ने अन्य प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाओं जैसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सहयोग से पेश किए गए थे। दिल्ली में सीपीसीबी के पूर्व अतिरिक्त निदेशक और एयर लैबोरेट्रीज के प्रमुख दिपांकर साहा के अनुसार, इन पटाखों को विशेष रूप से दिल्ली जैसे शहरों में बढ़ते प्रदूषण स्तर को मद्देनजर रखते हुए बनाया गया था, जहां सर्दी के महीनों में वायु गुणवत्ता अक्सर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है। 

हरित पटाखों में कम विषैले कच्चे माल का उपयोग

पारंपरिक पटाखों के विपरीत, हरित पटाखों में कम विषैले कच्चे माल का उपयोग किया जाता है और इसमें बेरियम नाइट्रेट तथा एल्युमिनियम जैसे हानिकारक तत्वों से परहेज किया गया है, जो वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से हैं और श्वसन संबंधी एवं अन्य स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं। ये पटाखे इस प्रकार डिजाइन किए गए हैं कि जलने पर इनमें से वॉटर वेपर (जलवाष्प) या डस्ट सप्रेसेंट्स (धूल दबाने वाले तत्व) निकलते हैं। इससे वायु में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मात्रा कम हो जाती है। 

हरित पटाखों से आवाज कम आती है

प्रयोगशाला परीक्षणों में यह पाया गया है कि इस प्रकार के बदलाव से लगभग 30 प्रतिशत तक कम उत्सर्जन होता है। वायु प्रदूषण को कम करने के अलावा, हरित पटाखों के फूटने पर आवाज भी कम होती है, जिससे ये बच्चों, बुजुर्गों, जानवरों और स्वास्थ्य के लिहाज से संवेदनशील लोगों के लिए बड़ी समस्या खड़ी नहीं करते। इनकी कम डेसिबल स्तर की आवाज़ ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद करती है, जो त्योहारों के समय एक बड़ी चिंता का विषय होता है। 

Advertisment

अकेले कम प्रदूषण फैलाने में मददगार नहीं

हालांकि एक अन्य पर्यावरणविद् भवरीन कंधारी ने जोर देकर कहा कि भले ही ग्रीन पटाखे एक बेहतर विकल्प हैं, लेकिन वे अकेले कम प्रदूषण फैलाने में मददगार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ये पटाखे "कम हानिकारक हैं, पूरी तरह सुरक्षित नहीं।" उनके अनुसार, इन पटाखों से अब भी ‘अल्ट्राफाइन’ कण और विषैली गैस निकलती हैं, इसलिए त्योहारों के दौरान वायु प्रदूषण को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका पटाखों के समग्र उपयोग को सीमित करना ही है। 

रात 8 से 10 बजे तक पटाखे चलाने की अनुमति

बता दें बुधवार को उच्चतम ने कुछ शर्तों के साथ दिल्ली-एनसीआर में दिवाली के दौरान हरित पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। अदालत ने कहा कि हरित पटाखों के उपयोग की अनुमति केवल विशेष समय में दी जाएगी। अदालत ने दिवाली से एक दिन पहले और दिवाली वाले दिन सुबह 6 से 7 बजे तक और रात 8 से 10 बजे तक पटाखे चलाने की अनुमति दी। उल्लेखनीय है कि उच्चतम ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए 2014-15 में पहली बार पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था। green crackers | supreme court | Supreme Court comment | Diwali pollution

green crackers supreme court Supreme Court comment Diwali pollution
Advertisment
Advertisment