नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने मां वैष्णो देवी के दर्शन के बाद आज बुधवार 11 जून 2025 को बोले कि राज्य में अमन, तरक्की और भाईचारे की कामना की। उन्होंने हाल ही में शुरू हुई ट्रेन सेवा को पर्यटन के लिए बड़ा कदम बताया।
जम्मू-कश्मीर की शांत वादियों में बसे मां वैष्णो देवी के दरबार से हमेशा शांति और आस्था का संदेश निकलता है। इसी कड़ी में, राज्य के अनुभवी राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने हाल ही में मां वैष्णो देवी के दर्शन किए।
उनके दर्शन के बाद जो बातें सामने आईं, वो सिर्फ सियासी बयानबाजी नहीं, बल्कि एक गहरी उम्मीद और दुआ की तस्वीर पेश करती हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि उनके दर्शन "बहुत अच्छे" रहे और उन्हें पूरी उम्मीद है कि उन्होंने जो भी मांगा है, वो जरूर पूरा होगा। आखिर क्या मांगा होगा उन्होंने? उनकी बातों से साफ है कि उन्होंने अपने प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के लिए अमन, शांति और तरक्की की दुआ की है।
श्रीनगर की वादियों में इन दिनों एक नई बहार सी दिख रही है, और इस बदलाव की धुरी पर खड़े हैं जम्मू-कश्मीर के दिग्गज नेता फारूक अब्दुल्ला। कभी केंद्र सरकार के मुखर आलोचक रहे अब्दुल्ला के तेवर अब नरम पड़ते दिख रहे हैं, और उनके बयानों में कश्मीर के पर्यटन को बढ़ावा देने की छटपटाहट साफ झलक रही है।
सवाल यह है कि आखिर कौन सी ऐसी वजहें हैं, जिन्होंने अब्दुल्ला जैसे कद्दावर नेता को अपने चिर-परिचित अंदाज़ से हटकर पर्यटन को लेकर इतनी हाय-तौबा मचाने पर मजबूर कर दिया है? क्या यह सिर्फ राजनीतिक पैंतरेबाज़ी है, या कश्मीर की आर्थिक नब्ज को दुरुस्त करने की एक गंभीर कोशिश?
दरअसल, धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के दावों के बावजूद, पर्यटकों की आमद उस स्तर पर नहीं पहुंची है, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। स्थानीय अर्थव्यवस्था जो काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर करती है, उसे बड़ा झटका लगा है। ऐसे में फारूक अब्दुल्ला समेत कई नेता और स्थानीय उद्यमी अब एकजुट होकर पर्यटकों को वापस लाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
पर्यटकों को रिझाने के लिए मचा हाय तौबा
होटल, हाउसबोट और टैक्सी ऑपरेटर से लेकर हस्तशिल्प कलाकार तक, हर कोई पर्यटकों को रिझाने के लिए नई-नई योजनाएं और लुभावने पैकेज पेश कर रहा है। लेकिन क्या यह हाय-तौबा कश्मीर की खोई हुई रौनक वापस ला पाएगी, या फिर यह सिर्फ एक तात्कालिक प्रयास बनकर रह जाएगा? इस बदलते परिदृश्य में फारूक अब्दुल्ला की भूमिका और उनके बयानों के निहितार्थों को समझना बेहद दिलचस्प होगा।
अब्दुल्ला साहब ने कहा, "हम चाहते हैं कि यहां अमन हो, तरक्की हो, भाईचारा हो और हम आगे बढ़ सकें। भारत आगे बढ़े और हम उसका हिस्सा बनें।" ये शब्द सिर्फ एक राजनेता के नहीं, बल्कि उस इंसान के हैं जो अपने वतन की खुशहाली देखना चाहता है। जम्मू-कश्मीर पिछले कुछ दशकों से कई चुनौतियों से जूझ रहा है।
ऐसे में, एक वरिष्ठ नेता द्वारा अमन और तरक्की की बात करना एक सकारात्मक संकेत है। यह दर्शाता है कि हर कोई चाहता है कि घाटी में शांति लौटे और लोग एक सामान्य, खुशहाल जीवन जी सकें। भाईचारे की बात करना भी बेहद अहम है, क्योंकि सद्भाव ही किसी भी समाज की नींव होता है।
फारूक अब्दुल्ला ने उठाया बड़ा कदम
फारूक अब्दुल्ला ने हाल ही में शुरू हुई नई ट्रेन सेवा का भी जिक्र किया। उन्होंने इसे "एक बड़ा कदम" बताया और कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर के पर्यटन को "बहुत फायदा" होगा। यह बात बिल्कुल सच है। कनेक्टिविटी किसी भी क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभाती है, खासकर पर्यटन के क्षेत्र में। माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।
ट्रेन सेवा के शुरू होने से इन श्रद्धालुओं के लिए यात्रा और भी आसान और सुगम हो जाएगी। इससे न केवल कटरा और आसपास के इलाकों में पर्यटन बढ़ेगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। जम्मू-कश्मीर में पर्यटन हमेशा से ही एक बड़ा राजस्व स्रोत रहा है, और इस तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट से इसे और बढ़ावा मिलेगा।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब जम्मू-कश्मीर में विकास और सामान्य स्थिति बहाल करने के प्रयास लगातार जारी हैं। सरकार भी पर्यटन को बढ़ावा देने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर जोर दे रही है। फारूक अब्दुल्ला जैसे बड़े नेता का इस तरह से समर्थन करना, यह दर्शाता है कि विकास के मामले में सभी दल एक साथ खड़े हैं। यह न केवल सरकार के प्रयासों को बल देगा, बल्कि लोगों में भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा कि आने वाले समय में चीजें बेहतर होंगी। जम्मू-कश्मीर में अमन और तरक्की के लिए सामूहिक प्रयास बेहद जरूरी हैं।
क्या आप फारूक अब्दुल्ला के अमन और तरक्की के इस संदेश से सहमत हैं? कमेंट करें।
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