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पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी

पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को आदिवासी अधिकारों की लड़ाई में उतारा। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा बनाया और अलग झारखंड राज्य के लिए दशकों तक संघर्ष किया। 'गुरुजी' सोरेन का यह राजनीतिक सफर युवाओं को प्रेरणा देता है।

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Ajit Kumar Pandey
पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी | यंग भारत न्यूज

पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।शिबू सोरेन का नाम आते ही झारखंड की राजनीति, आदिवासियों के हक और अलग राज्य का आंदोलन की बात फौरन दिमाग में आ जती है। लेकिन क्या आप जानते हैं, जिस पिता की हत्या ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया था, उसी घटना ने शिबू सोरेन की ज़िंदगी को एक नई दिशा दे दी? इस स्टोरी में हम उनके शुरुआती संघर्षों, झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन और एक मुख्यमंत्री बनने तक के असाधारण सफर की ऐसी कहानी को करीब से जानेंगे जो अब तक अनसुनी रह गई है।

शिबू सोरेन, जिन्हें आज पूरा झारखंड 'गुरुजी' के नाम से जानता है, उनके जीवन की शुरुआत बहुत मुश्किलों भरी रही। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को बिहार (अब झारखंड) के हजारीबाग जिले में हुआ था। उनके पिता सोबरन मांझी एक शिक्षक थे और आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे थे। इसी वजह से उनकी हत्या कर दी गई। कॉलेज में पढ़ रहे शिबू सोरेन पर इस घटना का गहरा असर पड़ा। इस घटना ने उनके अंदर न्याय की एक ऐसी आग जलाई, जिसने उन्हें अपने लोगों के लिए लड़ने को मजबूर कर दिया।

झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना: एक नया अध्याय

पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने आदिवासियों के अधिकारों के लिए अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी। उन्होंने महसूस किया कि बिखरे हुए आदिवासियों को संगठित किए बिना कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता। इसी सोच के साथ उन्होंने 1972 में अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। इस संगठन का मकसद आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों को रोकना और उनके लिए अलग राज्य की मांग करना था।

पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी | यंग भारत न्यूज
पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

हार से जीत तक का सफर

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पहला चुनाव: शिबू सोरेन ने 1977 में अपना पहला चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

पहली जीत: 1980 में उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से पहली जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सात बार के सांसद: शिबू सोरेन दुमका सीट से सात बार सांसद बने, जो उनकी लोकप्रियता और लोगों के भरोसे को दर्शाता है।

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केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री: वह केंद्र सरकार में मंत्री और तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे।

'दिशोम गुरु' का सपना: अलग झारखंड राज्य हुआ साकार

शिबू सोरेन के जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य था अलग झारखंड राज्य का निर्माण। यह सिर्फ एक राजनीतिक मांग नहीं थी, बल्कि आदिवासियों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों को बचाने की लड़ाई थी। उन्होंने दशकों तक इस आंदोलन को जिंदा रखा, लोगों को जोड़ा और सरकार पर दबाव बनाए रखा। उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति और लगन का ही नतीजा था कि 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर एक नए राज्य, झारखंड का जन्म हुआ। इसी वजह से उन्हें 'दिशोम गुरु' यानी देश का गुरु कहा जाने लगा।

पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी | यंग भारत न्यूज
पिता की हत्या ने बदली दिशा : झारखंड के 'गुरुजी' शिबू सोरेन की अनसुनी कहानी | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

हेमंत सोरेन: झारखंड की राजनीति का उभरता नेतृत्व

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पिता शिबू सोरेन ने अपनी बढ़ती उम्र के साथ बेटे हेमंत सोरेन को उत्तराधिकारी बनाया जो वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। वे राज्य की राजनीति में एक प्रमुख और प्रभावशाली चेहरा बन चुके हैं। हेमंत सोरेन Barhait विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और उन्होंने झारखंड की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दिशा को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है।

हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त 1975 को झारखंड के एक आदिवासी परिवार में हुआ था। वे झारखंड के दिग्गज नेता और JMM के संस्थापक शिबू सोरेन के पुत्र हैं। उन्होंने अपने पिता के संघर्ष और राजनीतिक विचारों से प्रेरणा ली और बहुत ही कम उम्र में राजनीति में सक्रिय हो गए।

मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन ने आदिवासी अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी है। उनकी सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं जैसे ‘सहयोगी योजना’, ‘स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना’ और ‘अपना रोजगार योजना’।

हेमंत सोरेन अक्सर केंद्र सरकार की नीतियों पर मुखर आलोचना करते हैं, खासकर जब वह आदिवासी या राज्य के हितों से टकराती हैं।

उनकी राजनीतिक सोच में जनभावनाओं की गहरी समझ है, जो उन्हें जनता के करीब लाती है। आज वे झारखंड के युवाओं और आदिवासियों के लिए आशा और नेतृत्व का प्रतीक बन चुके हैं।

शिबू सोरेन के पीछे एक भरा पूरा परिवार है। इनके कुल चार बच्चे — तीन बेटे और एक बेटी। 

दुर्गा सोरेन (बड़े बेटे): 2009 में उनके निधन हो गया था। वे पूर्व जेडीयू विधायक और JMM नेता थे। उनकी तीन बेटियां हैं: जयश्री, राजश्री, और विजयश्री।

हेमंत सोरेन: वर्तमान में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हैं और Jharkhand Mukti Morcha (JMM) के अध्यक्ष हैं। वे Barhait विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और राज्य की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा हैं।

बासन्‍त सोरेन: JMM के युवा संगठन Jharkhand Yuva Morcha के अध्यक्ष हैं और वर्तमान में Dumka से विधायक हैं। फरवरी 2024 में उन्हें राज्य सरकार में मंत्री पद भी मिला था।

अंजलि सोरेन (कन्या): JMM की नेता हैं।

शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि झारखंड की पहचान बन गए थे। उन्होंने आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने, शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। उनकी सादगी, संघर्ष और अपने लोगों के प्रति समर्पण ने उन्हें आम जनता के बीच खास बना दिया। झारखंड के लोग उन्हें हमेशा 'गुरुजी' शिबू सोरेन के नाम से याद रखेंगे, जिन्होंने अपने पिता की हत्या से मिले दर्द को अपने लोगों के भविष्य के लिए एक आंदोलन में बदल दिया।

Shibu Soren Untold Story | Jharkhand Guruji Journey | Political Twist After Tragedy | Tribal Leader Legacy 

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