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Bhagwan Jagannath Rath Yatra : भक्ति, श्रद्धा और विश्वास का एक अद्भुत संगम! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।पुरी, ओडिशा में जगन्नाथ रथ यात्रा से पहले ही जगन्नाथ धाम एक अलौकिक दृश्य का केंद्र बन गया है। चारों ओर भक्ति का महासागर हिलोरें ले रहा है। रंग-बिरंगी वेशभूषा में सजे लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन के लिए कतारबद्ध खड़े हैं। हवा में उड़ते जयकारे और मंदिरों से गूंजते भजन, पुरी की धरती को एक दिव्य आभा प्रदान कर रहे हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आस्था का जीवंत प्रमाण है। हर साल लाखों लोगों को अपनी ओर खींचने वाली यह जगन्नाथ रथ यात्रा आखिर है क्या और क्यों इसका इतना महत्व है? आइए, जानते हैं इस आध्यात्मिक यात्रा के हर पहलू को बारीकी से।
क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व? एक अनूठी परंपरा जो दिलों को जोड़ती है
जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा एक वार्षिक उत्सव है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल, सजे हुए रथों पर बिठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है। यह यात्रा पुरी के मुख्य मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जो भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। इस दौरान, भक्तगण रथों को खींचकर स्वयं को धन्य मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सारे पाप धुल जाते हैं। यह पर्व सिर्फ धर्म से नहीं, बल्कि प्रेम, भाईचारे और समानता के संदेश से भी जुड़ा है।
#WATCH | पुरी, ओडिशा: जगन्नाथ रथ यात्रा से पहले जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। pic.twitter.com/w75nDQETMi
— ANI_HindiNews (@AHindinews) June 26, 2025
कब से कब तक चलेगी यह महायात्रा? पुरी में उत्सव का माहौल
सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 26 जून को दोपहर 1 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 27 जून को सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर होगा। जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन 5 जुलाई 2025 को होगा, जो कि 9 दिनों तक चलेगी। 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ का रथ अपने मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेगा।
यह दिन ‘रथ यात्रा’ या ‘नवदीना यात्रा’ के नाम से जाना जाता है। नौ दिनों तक भगवान गुंडिचा मंदिर में विश्राम करेंगे और फिर 16 जुलाई को ‘बाहुड़ा यात्रा’ के साथ मुख्य मंदिर में वापस लौटेंगे। इन नौ दिनों के दौरान, पुरी का पूरा शहर उत्सव और उल्लास में डूब जाता है। भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भंडारे हर जगह आयोजित होते हैं। लाखों की भीड़ के बीच भी एक अद्भुत शांति और भक्ति का अनुभव होता है।
जगन्नाथ मंदिर: एक वास्तुशिल्प चमत्कार और आध्यात्मिक केंद्र
जगन्नाथ मंदिर, जो अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह 12वीं शताब्दी में निर्मित एक विशाल मंदिर परिसर है, जिसे कलिंग वास्तुकला शैली में बनाया गया है। मंदिर का मुख्य शिखर लगभग 214 फीट ऊंचा है, जो दूर से ही दिखाई देता है। इसकी दीवारें और खंभे जटिल नक्काशी और मूर्तियों से सजे हैं, जो पौराणिक कथाओं और देवताओं के दृश्यों को दर्शाते हैं। मंदिर का सबसे रहस्यमयी पहलू इसकी ध्वजा है, जो हमेशा हवा के विपरीत दिशा में फहराती है। यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है जो सदियों से लाखों लोगों की आस्था का केंद्र रहा है।
जगन्नाथ रथ यात्रा: सिर्फ एक पर्व नहीं, एक अनुभव!
जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं है; यह एक अनुभव है जो हर साल लाखों लोगों को एक साथ लाता है। यह वह समय होता है जब भगवान स्वयं अपने भक्तों से मिलने के लिए निकलते हैं। रथ खींचते समय भक्तों के चेहरों पर जो उत्साह और खुशी दिखाई देती है, वह शब्दों में बयां करना मुश्किल है। इस यात्रा में भाग लेना अपने आप में एक आशीर्वाद है। अगर आप भी भक्ति और संस्कृति के इस अद्भुत संगम का अनुभव करना चाहते हैं, तो एक बार पुरी जरूर आएं।
यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ का नवयौवन दर्शन और नेत्रोत्सव
पवित्र नगरी पुरी में भगवान जगन्नाथ के दो अत्यंत दिव्य और सांस्कृतिक रूप से जुड़े अनुष्ठानों- नवयौवन दर्शन और नेत्रोत्सव का आयोजन हुआ है। जगन्नाथ विद्वान और उपदेशक पंडित सूर्य नारायण रथशर्मा ने बताया कि ये सिर्फ धार्मिक रस्में नहीं, बल्कि ओडिशा की महाप्रभु जगन्नाथ के प्रति अद्वितीय और अटूट आस्था की अभिव्यक्ति हैं। पंडित सूर्य नारायण रथशर्मा ने बताया कि नवयौवन दर्शन और नेत्रोत्सव, श्रीक्षेत्र में मनाए जाने वाले वार्षिक उत्सवों की श्रेणी में विशेष महत्व रखते हैं। ओडिशा के अलग-अलग हिस्सों में भी इन्हें उतनी ही श्रद्धा और प्रेम के साथ मनाया जाता है, जो इस परंपरा के प्रति गहरी सांस्कृतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में उन्होंने कहा कि भगवान जगन्नाथ महाप्रभु अपूर्व करुणामय हैं। इनकी करुणा दृष्टि ऊपर पड़ने से ही कल्याण हो जाता है। उन्होंने कहा, "भारतीय संस्कृति में अनेकों उत्सवों का पालन होता है। आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को नेत्रोत्सव मनाया जाता है, जो भगवान की नेत्र दृष्टि का उत्सव है। ये उत्सव भगवान के दर्शन के रूप में मनाया जाता है, जब वो बीमारी से स्वस्थ होते हैं। भगवान जिस दिन पहले दर्शन देते हैं, इसको नवयौवन दर्शन कहा जाता है। भगवान के नेत्र का उत्सव, नित्य उत्सव कहा जाता है, जो अपूर्व करुणामय दृष्टि का प्रतीक है।"
पंडित सूर्य नारायण ने कहा, "भगवान जगन्नाथ के अद्वितीय नेत्र इस उत्सव का मुख्य आकर्षण होते हैं। इनके नेत्रों के दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख-दर्द मिट जाते हैं। भगवान की करुणा दृष्टि से ही भक्तों का कल्याण होता है।"
उन्होंने कहा, "भगवान जगन्नाथ का नृत्य उत्सव न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि ये भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा है। ये उत्सव भगवान की अपूर्व करुणा और प्रेम का अनुभव प्रदान करता है, जो भक्तों के जीवन को समृद्ध और पूर्ण बनाता है। भगवान जगन्नाथ के नेत्रों की महिमा और उनके अद्वितीय नृत्य उत्सव का ये अनुभव भक्तों के जीवन को नई दिशा और शक्ति प्रदान करता है।"
क्या आप कभी जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल हुए हैं? आपका अनुभव कैसा रहा? नीचे कमेंट करके हमें बताएं!
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