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“पहला ISRO स्पेस स्टेशन 2040 तक : G20 सैटेलाइट और अंतरिक्ष कूटनीति का जलवा” | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने हाल ही में अपने नवीनतम उपलब्धि, G20 उपग्रह की घोषणा की है। यह उपग्रह, जो विशेष रूप से G20 देशों के लिए बनाया गया है। भारत की तकनीकी क्षमता को प्रदर्शित करता है। पिछले दशक में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अंतरिक्ष उद्योग में अभूतपूर्व प्रगति की है।
इस प्रगति का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को जाता है। उन्होंने G20 देशों के लिए इस तरह के एक महत्वपूर्ण उपग्रह के निर्माण और प्रक्षेपण के लिए इसरो की टीम को प्रेरित किया है। यह उपग्रह G20 देशों के बीच भू-स्थानिक डेटा, जलवायु निगरानी और आपदा प्रबंधन में सहयोग को बढ़ावा देगा।
इसके अलावा, इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 10 साल पहले इस क्षेत्र में सिर्फ एक स्टार्टअप था, जबकि आज यह संख्या 300 से भी अधिक हो गई है। यह वृद्धि भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की बढ़ती भागीदारी को दर्शाती है। G20 उपग्रह भारत के बढ़ते अंतरिक्ष कूटनीति का एक और उदाहरण है, जो वैश्विक मंच पर देश की स्थिति को मजबूत कर रहा है।
यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए गौरव का क्षण है, बल्कि G20 देशों के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उपग्रह इन देशों को एक-दूसरे के साथ बेहतर ढंग से जुड़ने में मदद करेगा और कई क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देगा।
मोदी के 10 साल में कैसे बदली भारत की अंतरिक्ष नीति?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक और बड़ा कमाल कर दिखाया है। अब उसने G20 देशों के लिए एक खास सैटेलाइट तैयार किया है, जिसे पीएम मोदी की पहल पर बनाया गया है। यह सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत का प्रतीक है।
यह सैटेलाइट G20 समूह के देशों के लिए डेटा शेयरिंग और सहयोग को आसान बनाएगा।
#WATCH दिल्ली | ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा, "...प्रधानमंत्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, दक्षिण एशियाई उपग्रह का निर्माण किया गया, उसे प्रक्षेपित किया गया और दक्षिण एशियाई देशों को दान कर दिया गया। उनके नेतृत्व में, हमने G20 देशों के लिए G20 उपग्रह भी तैयार किया… pic.twitter.com/QzwT0389mc
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 21, 2025
एक दशक में भारत की अंतरिक्ष शक्ति का उदय
10 साल पहले, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की तस्वीर बिल्कुल अलग थी। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन के अनुसार, तब इस क्षेत्र में सिर्फ एक स्टार्टअप था। लेकिन आज, यह संख्या 300 से भी ज़्यादा हो गई है। यह बताता है कि सरकार की नीतियों ने कैसे निजी कंपनियों के लिए दरवाजे खोले हैं और उन्हें इनोवेशन के लिए प्रोत्साहित किया है।
मोदी सरकार के नेतृत्व में इसरो ने कई ऐतिहासिक मिशन पूरे किए हैं।
चंद्रयान-3: चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग, जिससे भारत दुनिया का चौथा देश बना।
मंगलयान: मंगल ग्रह पर पहले ही प्रयास में पहुंचने वाला पहला देश।
दक्षिण एशियाई सैटेलाइट: पड़ोसी देशों को मुफ्त में तोहफा, जिससे क्षेत्रीय सहयोग बढ़ा।
गगनयान: अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की तैयारी।
G20 सैटेलाइट से क्या मिलेगा फायदा?
यह नया सैटेलाइट G20 सदस्य देशों के लिए वरदान साबित हो सकता है। इससे जलवायु परिवर्तन की निगरानी, आपदा प्रबंधन और बेहतर शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में डेटा साझा करना आसान होगा। यह भारत की अंतरिक्ष कूटनीति (Space Diplomacy) का एक नया अध्याय है।
पहले सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की ही अंतरिक्ष में तूती बोलती थी, लेकिन अब भारत भी इस दौड़ में बराबरी पर खड़ा है।
क्या है आगे का प्लान?
इसरो का लक्ष्य अब सिर्फ सैटेलाइट लॉन्च करना नहीं, बल्कि अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (Space Economy) में भारत को एक बड़ा खिलाड़ी बनाना है। सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत, निजी कंपनियां अब सैटेलाइट और रॉकेट बनाने में भी मदद कर रही हैं। इससे भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम और भी तेज़ गति से आगे बढ़ेगा।
जिस तरह से इसरो और निजी स्टार्टअप्स मिलकर काम कर रहे हैं, उससे लगता है कि आने वाले कुछ सालों में अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की सफलता की कहानी और भी बड़ी होने वाली है।
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