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गंभीरा ब्रिज के हादसे ने दिलाई मोरबी की याद, 2022 में मारे गए थे 135 लोग

अक्टूबर 2022 में हुए मोरबी हादसे में में कम से कम 135 लोग मारे गए थे। हादसे से 5 दिन पहले ही सात महीने की मरम्मत के बाद ब्रिज को खोला गया था।

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Shailendra Gautam
Morbi Bridge Collapse
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बुधवार सुबह 8 बजे आणंद और वडोदरा को जोड़ने वाला गंभीरा ब्रिज अचानक ढह गया। इस वजह से वहां से गुजर रहे 4 से अधिक वाहन इसके नीचे आ गए। इस हादसे में अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है। इस हादसे ने गुजरात के एक और हादसे की याद दिला दी। अक्टूबर 2022 में हुए मोरबी हादसे में में कम से कम 135 लोग मारे गए थे। मोरबी की घटना से पूरा गुजरात हिल गया था। हैरत में डालने वाली बात ये थी कि हादसे से 5 दिन पहले ही सात महीने की मरम्मत के बाद ब्रिज को खोला गया था। इसे खोलने से पहले फिटनेस सर्टिफिकेट भी हासिल नहीं किया गया।  

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तकरीबन 143 साल पुराना था मोरबी ब्रिज 

मोरबी ब्रिज तकरीबन 143 साल पुराना था। ये 765 फीट लंबा और 4 फीट चौड़ा था। पुल का उद्घाटन 1879 में किया गया था। केबल ब्रिज को 1922 तक मोरबी में शासन करने वाले राजा वाघजी रावजी ने बनवाया था। वाघजी ठाकोर ने पुल बनाने का फैसला इसलिए लिया था, ताकि दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ा जा सके। अक्टूबर 2022 में हुई मोरबी दुर्घटना में कम से कम 135 लोग मारे गए थे। गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी सस्पेंशन ब्रिज हादसे के मुख्य आरोपी और ओरेवा समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि 2023 में जयसुख को एक लाख रुपए के बान्ड पर जमानत मिली लेकिन उनके मोरबी में जाने पर रोक लगा दी गई थी।

क्षमता थी सौ लोगों की पर पुल पर चढ़ा दिए गए थे पांच सौ से ज्यादा लोग

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मोरबी में सैकड़ों लोगों के साथ पुल नदी में गिरा था। मोरबी हादसे के पीछे सरकारी अमले की गलतियां थीं। पहले बिना परीक्षण पुल को लोगों के लिए खोल दिया गया। फिर सौ लोगों की लिमिट के बावजूद पुल पर पांच सौ लोगों को पुल पर भेज दिया, क्योंकि कंपनी को टिकट के पैसे मिल रहे थे। जब टूट गया तब मौतों को छिपाने की कोशिशें शुरू हो गईं। गुजरात असेंबली के चुनाव सिर पर थे तो मोदी सरकार पर दबाव था एक्शन लेने का। जब दबाव बना तो एफआईआर और गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू कर दिया गया। 

फिटनेस सर्टिफिकेट के बगैर खोल दिया गया था पुल

मोरबी नागर पालिका का कहना था कि ओरेवा कंपनी ने अपनी मर्जी से पुल को खोल दिया था। फिटनेस सर्टिफिकेट लिया ही नहीं गया। नगर पालिका की कोई परमिशन भी नहीं ली थी। लेकिन सवाल है कि पालिका की परमिशन ही नहीं ली गई और पुल खोलकर पाँच सौ लोग वहां भेज दिए गए तो नगर पालिका क्या सो रही थी। किसके इशारे पर कार्रवाई नहीं की गई। कौन नेता, कौन मंत्री था जिसके दम पर बिना परमिशन यह सब हो रहा था। ऐसे बंद पुलों को चालू करने से पहले लोड टेस्टिंग कराई जाती है। लेकिन मोरबी में तो वह भी नहीं कराई गई। जो एफआईआर शुरू में दर्ज की गई थी उसमें संचालन करने वाली कंपनी और रिनोवेशन करने वाली कंपनी के नाम तक नहीं हैं। मतलब साफ है कि सरकार इन कंपनियों को बचा रही थी। 

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