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योगी के नक्शेकदम पर चल रहे थे हेमंता सरमा, सुप्रीम कोर्ट ने पकड़ी गर्दन

असम में फर्जी मुठभेड़ों का मामला अरसे से गूंज रहा है। मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि असम पुलिस सरकार के विरोधियों को एनकाउंटर करके निपटा रही है। इनकी जांच कराने की गुहार गुवाहाटी हाईकोर्ट से की गई थी लेकिन याचिका खारिज कर दी गई।

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Shailendra Gautam
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नक्शेकदम पर चलते हुए असम सरकार भी ताबड़तोड़ एनकाउंटर करने लग पड़ी थी। असम के सीएम हेमंता सरमा पुलिस के एक्शन को दुरुस्त ठहरा रहे थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से उनके अफसरों की गर्दन फंसती दिख रही है। इतनी कि कई जेल की सींखचों के पीछे दिखाई दे सकते हैं।

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गुवाहाटी हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

दरअसल, असम में फर्जी मुठभेड़ों का मामला अरसे से गूंज रहा है। मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि असम पुलिस सरकार के विरोधियों को एनकाउंटर करके निपटा रही है। इनकी जांच कराने की गुहार गुवाहाटी हाईकोर्ट से की गई थी लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो असम सरकार की गर्दन फंसती दिखी। सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी एनकउंटरों की जांच कराने वाली याचिका को सही मानकर जांच का आदेश दे दिया। 


सुप्रीम कोर्ट बोला- आरोप गंभीर मानवाधिकार आयोग करे जांच

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असम मानवाधिकार आयोग को असम पुलिस की मुठभेड़ों में हत्या के मामलों की जांच करने का निर्देश दिया। ये आदेश आरिफ यासीन जवादर बनाम असम राज्य के मामले में दिया गया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने एडवोकेट आरिफ यासीन जवादर की याचिका पर आदेश सुनाया। जवादर ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के इनकार के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने स्वीकार किया कि फर्जी मुठभेड़ों का आरोप गंभीर है। इनकी स्वतंत्र जांच कराने से सच्चाई सामने आ सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आरोप कि इनमें से कुछ घटनाओं में फर्जी मुठभेड़ शामिल हो सकती है, ये वास्तव में गंभीर है और यदि यह साबित हो जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का गंभीर उल्लंघन होगा। यह भी संभव है कि निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के बाद इनमें से कुछ मामले उचित साबित हो सकते हैं। लिहाजा हम चाहते हैं कि असम मानवाधिकार आयोग आरिफ यासीन जवादर की शिकायत की गंभीरता से पड़ताल करे। 

रिटायर पुलिस अफसरों की सेवा ले मानवाधिकार आयोग

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जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर की बेंच ने कहा कि आयोग एक पब्लिक नोटिस जारी करे, जिससे लोग उसके पास आने शुरू हो जाएंगे। शुरुआती विवेचना के बाद अगर आयोग को लगता है कि जांच आगे करने की जरूरत है तो वो स्वतंत्र है आगे की कार्रवाई करने के लिए। बेंच का कहना था कि एनकाउंटर में जो लोग मरे हैं उनके परिजनों को न्याय मिलना ही चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जांच के लिए आयोग ऐसे पुलिस अफसरों की सेवा ले सकता है जो फिलहाल रिटायर हैं। लेकिन उसे ध्यान रखना होगा कि इन अफसरों के दामन पर किसी तरह का दाग न हो। 


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