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11 साल में 340 फीसदी बढ़े नशे के मामले — क्या हिमाचल बना रहा है 'उड़ता पंजाब 2.0'? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । हिमाचल प्रदेश, जिसे देवभूमि कहा जाता है, अब नशे की गहरी खाई में धंसता जा रहा है। पिछले 11 सालों में NDPS (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस) के मामलों में 340% की चौंकाने वाली वृद्धि हुई है। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 2030 तक यह शांत प्रदेश कहीं 'उड़ता पंजाब' न बन जाए, यह डर अब हकीकत बनता दिख रहा है।
वैसे तो हिमाचल प्रदेश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। लेकिन आज इसी देवभूमि में नशे का ज़हर तेजी से फैल रहा है। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने इस गंभीर स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि अगर समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया, तो हिमाचल की स्थिति पंजाब जैसी हो सकती है, जहां ड्रग्स एक विकराल समस्या बन चुकी है। यह सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की बर्बादी की कहानी है।
आखिर क्यों बढ़ रहा है नशा?
नशे के बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण आसानी से उपलब्धता है। सीमावर्ती राज्य होने के कारण, पड़ोसी राज्यों से ड्रग्स की तस्करी बढ़ गई है। इसके अलावा, राज्य में भांग और अफीम की अवैध खेती भी एक बड़ी चुनौती है।
शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी: नौकरी न मिलने से हताश युवा आसानी से नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं।
सामाजिक दबाव और अकेलापन: आधुनिक जीवनशैली में बढ़ता तनाव और अकेलापन भी युवाओं को नशे की ओर धकेलता है।
इंटरनेट और सोशल मीडिया का दुरुपयोग: ऑनलाइन माध्यमों से नशीले पदार्थों की जानकारी और खरीद-फरोख्त आसान हो गई है।
पारिवारिक सपोर्ट की कमी: परिवारों में संवादहीनता और बच्चों पर कम ध्यान देना भी एक वजह है।
यह समझना होगा कि नशा सिर्फ एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या भी है।
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आंकड़ों की खौफनाक सच्चाई: 340% की वृद्धि
पिछले एक दशक के आंकड़े डरावने हैं। 2013 में जहां NDPS के तहत सिर्फ 836 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2023 तक यह संख्या बढ़कर 3,752 तक पहुंच गई। यह वृद्धि 340% से भी अधिक है। ये आंकड़े केवल दर्ज हुए मामलों के हैं, असलियत और भी भयावह हो सकती है। हिमाचल में नशाखोरी एक ऐसी सुनामी बन रही है जो पूरे समाज को अपनी चपेट में ले सकती है।
नशे की लत से जूझ रहे लोगों के लिए पुनर्वास केंद्र (रिहैबिलिटेशन सेंटर) बेहद जरूरी होते हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश में इनकी भारी कमी है। उपलब्ध केंद्र भी सुविधाओं और प्रशिक्षित कर्मचारियों के मामले में पिछड़ रहे हैं। जो युवा इस दलदल से बाहर निकलना चाहते हैं, उन्हें सही इलाज और देखभाल नहीं मिल पा रही है। राज्यपाल ने इस ओर भी ध्यान दिलाया है और सभी राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे इस समस्या से निपटने के लिए एकजुट होकर काम करें।
क्या हैं समाधान के रास्ते?
इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति की जरूरत है:
कड़ी कानूनी कार्रवाई: ड्रग तस्करों और पेडलर्स के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।
जागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
पुनर्वास केंद्रों में वृद्धि: नए पुनर्वास केंद्र खोले जाएं और मौजूदा केंद्रों को अपग्रेड किया जाए।
रोजगार के अवसर: युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएं ताकि वे हताशा से बचें।
पारिवारिक सहयोग: परिवारों को जागरूक किया जाए कि वे अपने बच्चों पर ध्यान दें और उनकी समस्याओं को समझें।
यह समय है जब देवभूमि हिमाचल को बचाने के लिए हर नागरिक, हर संस्थान और हर राजनीतिक दल को एक साथ आना होगा। वरना, जिस 'उड़ता पंजाब' का डर है, वह जल्द ही 'उड़ता हिमाचल' में बदल सकता है।
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