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नई दिल्ली , वाईबीएन डेस्क । "मैं शुरुआत में कोई वायदा नहीं करना चाहता। मैंने देखा है कि बहुत से लोग शुरुआत में बहुत सारी बातें करते हैं, लेकिन आखिर में वो उनमें से 50 प्रतिशत भी पूरा नहीं कर पाते।" ये कहना है भारत के नए चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई का। बीआर गवई ने 14 मई को भारत के 52वें सीजेआई के रूप में शपथ ली। वह देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित सीजेआई होंगे। जस्टिस बालकृष्णन दलित समुदाय से पहले CJI बने थे। गवई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। उन्होंने हिंदी में शपथ ली।
बार एंड बेंच के साथ बातचीत में गवई ने कहा कि उनका कार्यकाल बेशक 6 माह का है लेकिन वो अपनी प्राथमिकताओं को तय कर चुके हैं। वो पहले के सीजेआई से अलहदा काम करने के इच्छुक हैं। रिटायरमेंट के बाद वो कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। कम से कम ऐसा पद जो सीजेआई से कमतर हो। उन्हें ऐसा करना सरासर गलत लगता है।
देखेंगे कि अदालत में लंबित मामले तेजी से कैसे निपटें
न्यायपालिका के समक्ष मुकदमों का अंबार लगा है। सीजेआई का कहना है कि ये मसला उनकी टाप प्रायरटी है। वो निचले स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबित मामलों पर काम करना चाहते हैं। अदालतों के बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। हाईकोर्ट्स का बुनियादी ढांचा बहुत अच्छा है। लेकिन निचली अदालतों के लिए यह अभी भी एक बड़ी समस्या है। वो चाहेंगे कि इस समस्या को बखूबी निपटा सकें। नए सीजेआई ने कहा कि लंबित मामलों का संबंध अदालतों में मामलों की सूची बनाने के तरीके से है। वो मामलों की सूची बनाने के काम को और अधिक प्रभावी बनाने के तरीकों की पड़ताल करेंगे। ऐसा सिस्टम बनाने पर जोर होगा जो सार्थक हो।
जजों को इमानदार रहना होगा, क्योंकि न्यायपालिका आखिरी विकल्प
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ हाल ही में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर न्यायपालिका की छवि को काफी नुकसान पहुंचा है। इस मसले पर सीजेआई ने कहा कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बनाए रखना होगा। आपको हर जगह ब्लैक शीप्स मिलेंगी। हमारे पास लगभग 900 जज हैं, उनके ब्लैक शीप्स न के बराबर ही हैं। लेकिन जो भी हैं उनको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा क्योंकि लोग अंतिम उपाय के रूप में अदालत जाते हैं। उन्हें हम पर बहुत भरोसा है। जब कोई शख्स जज के रूप में नियुक्त होता है तो वह बहुत ईमानदार होगा लेकिन बाद में यह बदल सकता है। जस्टिस यशवंत वर्मा की इन हाउस कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के सवाल पर उनका कहना था कि वो कानूनी दायरे से बाहर निकलकर कोई काम नहीं करेंगे।
नेता का बेटा नेता, IAS का IAS तो जज का जज क्यों नहीं हो सकता
न्यायपालिका की भरती में पारदर्शिता के सवाल पर उनका कहना था कि इसका वनो पूरा ख्याल रखेंगे। लेकिन उनका कहना था कि अगर एक आईएएस का बेटा आईएएस अधिकारी बन सकता है, एक राजनेता का बेटा राजनीति में बना रह सकता है तो यहां क्यों नहीं? योग्यता के मामले में कोई समझौता नहीं होना चाहिए। अगर किसी को सिर्फ इसलिए पदोन्नत किया गया है क्योंकि वह किसी का सगा-संबंधी है तो यह गलत है। लेकिन अगर कोई वाकई अच्छा है तो आप उसे सिर्फ इसलिए अयोग्य नहीं ठहरा सकते क्योंकि वह किसी का रिश्तेदार है।
अच्छे जजों के चयन के सवाल पर उऩका कहना था कि जस्टिस संजीव खन्ना का धन्यवाद, जिन्होंने उम्मीदवारों के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू की। इसके जरिये अब हम ऐसे लोगों का पता लगा रहे हैं, जिनकी कॉलेजियम ने सिफारिश की है पर वो मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए हैं। उनमें कानूनों के बारे में बुनियादी जानकारी की कमी है। कुछ हाईकोर्ट्स ने भी उम्मीदवारों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। हमारे पास हाईकोर्ट्स कॉलेजियम से इनपुट हैं। हमारे पास आईबी और सरकार से भी इनपुट हैं। अगर इस तरह की जांच के बाद कोई ऐसा व्यक्ति सामने आता है जो योग्य नहीं है तो आप उसकी मदद नहीं कर सकते। जजों के चयन का ये उपयुक्त पैमाना है।
जज को दबाव में आए बगैर अपने विवेक से फैसला करना चाहिए
हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के दायरे में दखल देने का आरोप लगाया गया है। तमिलनाडु के राज्यपाल का मामला सबके सामने है। वक्फ संशोधन अधिनियम मामले में की गई टिप्पणियां भी चर्चा का विषय बनी हैं। इस मुद्दे पर गवई ने कहा कि एक जजको केवल अपने विवेक के अनुसार मामलों का फैसला करना चाहिए। चाहें दूसरे कुछ भी कहते हों। एक न्यायाधीश के फैसले को आलोचना से प्रभावित नहीं होना चाहिए। उनको अपने सामने मौजूद कागजात के आधार पर उससे जुड़े कानून के आधार पर फैसला करना चाहिए। कुल मिलाकर विवेक से फैसला करना चाहिए।
CJI BR Gavai, 52nd Chief Justice of India, CJI, First Buddhist CJI, Second Dalit CJI । Judiciary | Indian Judiciary