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Explainer: पहले PM के प्रधान सचिव, फिर श्रीराम मंदिर निर्माण समिति अध्यक्ष : क्या है नृपेंद्र मिश्र की अनकही कहानी?| यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के एक छोटे से गांव से निकला एक नौजवान, नृपेंद्र मिश्र, देश की सबसे कठिन परीक्षा पास करके भारत के शासन तंत्र के केंद्र में दस्तक देता है। 1967 बैच के यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी नृपेंद्र मिश्र का करियर महज़ एक नौकरी नहीं, बल्कि दृढ़ प्रशासनिक कौशल, मानवीय दृष्टिकोण और एक शीर्ष नेतृत्व का अटूट विश्वास जीतने की गाथा है। उनकी कहानी हमें बताती है कि कैसे एक व्यक्ति ज्ञान और समर्पण के बल पर राष्ट्र निर्माण के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर अपनी अमिट छाप छोड़ सकता है।
नृपेंद्र मिश्र ने अपनी प्रशासनिक क्षमता, अटूट ईमानदारी और हार्वर्ड की शिक्षा से भारतीय ब्यूरोक्रेसी के शिखर को छुआ। ट्राई चेयरमैन से लेकर पीएम मोदी के सबसे भरोसेमंद प्रधान सचिव बनने तक, यह सफर दृढ़ संकल्प की कहानी है। अब, पद्म भूषण से सम्मानित यह ‘काबिल आईएएस’ श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण को सफलतापूर्वक नेतृत्व दे रहा है, जो उनके प्रशासनिक कौशल का अंतिम और सबसे बड़ा अध्याय है।
ज्ञान की मजबूत नींव: तीन मास्टर्स और हार्वर्ड की मुहर
नृपेंद्र मिश्र जानते थे कि प्रशासन की चुनौतियों का सामना करने के लिए केवल इच्छाशक्ति काफी नहीं है। उन्होंने अपनी शैक्षणिक नींव को बेहद मजबूत बनाया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान और लोक प्रशासन में तीन मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन में मास्टर्स (MPA) की प्रतिष्ठित डिग्री ली।
यह ज्ञान का विशाल भंडार ही था जिसने उन्हें 1967 में यूपी कैडर का आईएएस अधिकारी बनने और चुनौतियों से भरी सेवाओं के लिए तैयार किया। उनके पास न केवल प्रशासनिक क्षमता थी, बल्कि दुनिया को समझने का एक व्यापक दृष्टिकोण भी था, जिसका उपयोग उन्होंने बाद में किया।
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उत्तर प्रदेश: वह जगह जहां प्रशासनिक हुनर चमका
उत्तर प्रदेश, एक ऐसा राज्य जहां की राजनीति और प्रशासन दोनों ही जटिलताओं से भरे हैं, नृपेंद्र मिश्र ने यहीं अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाया।
दो मुख्यमंत्रियों के प्रधान सचिव: उन्होंने दो-दो मुख्यमंत्रियों के प्रधान सचिव के रूप में काम किया। यह इस बात का प्रमाण था कि उनकी स्वीकार्यता राजनीतिक गलियारों में भी थी और उनकी प्रशासनिक दक्षता पर किसी को संदेह नहीं था।
ग्राउंड लेवल पर पकड़: यूपी बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के चेयरमैन और ग्रेटर नोएडा के सीईओ जैसे पदों पर उनके काम ने दिखाया कि राज्य की बुनियादी प्रशासनिक मशीनरी पर उनकी मजबूत पकड़ थी।
बाबरी विध्वंस का मानवीय पक्ष: एक समय बाबरी विध्वंस के दौरान, उन्होंने कार सेवकों से नरमी से निपटने की सलाह देकर अपनी मानवीय और संतुलित कार्यशैली का परिचय भी दिया था। कठिन परिस्थितियों में भी उनका संतुलन बनाए रखने का यह हुनर उन्हें बाकी सबसे अलग करता है।
दिल्ली की उड़ान: अंतर्राष्ट्रीय मंच और ट्राई चेयरमैन की भूमिका
दिल्ली में, भारत सरकार के साथ उनका योगदान और भी व्यापक हो गया। फर्टिलाइजर सचिव के रूप में काम करने के बाद, उनकी सबसे प्रशंसनीय भूमिकाएं नियामक और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सामने आईं।
2006 से 2009 तक ट्राई (TRAI) के चेयरमैन के रूप में, उन्होंने दूरसंचार क्षेत्र के नियमन में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने देश में टेलीकॉम क्रांति के लिए जमीन तैयार की।
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का चेहरा
वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक और नेपाल सरकार में सलाहकार के रूप में नृपेंद्र मिश्र की भूमिका ने उनकी वैश्विक समझ को बढ़ाया।
विश्व व्यापार संगठन (WTO) में स्पेशल सेक्रेटरी के तौर पर देश के हितों को मजबूती से रखने की उनकी क्षमता उनकी दृढ़ता का परिचायक है। वह जानते थे कि राष्ट्रीय हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
पीएम मोदी का 'ट्रस्ट फैक्टर': जब नियम भी बदलने पड़े
नृपेंद्र मिश्र के करियर का सबसे बड़ा और निर्णायक मोड़ 2014 में आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपना प्रधान सचिव नियुक्त किया। यह नियुक्ति इसलिए भी असाधारण थी क्योंकि नृपेंद्र मिश्र का गुजरात से कोई "कनेक्शन" नहीं था।
पीएम मोदी एक ऐसे प्रशासक की तलाश में थे जो बिना किसी संदेह के उनके विज़न को ज़मीन पर उतार सके। और मिश्र में उन्हें वही दक्षता और ईमानदारी मिली।
PMO की कार्यशैली: 'काबिल रिटायर्ड आईएएस' का मंत्र
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में नृपेंद्र मिश्र की कार्यशैली ऐसी थी जिसने उन्हें पीएम मोदी का 'काबिल रिटायर्ड आईएएस' बना दिया। उनकी सफलता के मंत्र सरल थे:
सहयोगियों पर भरोसा: उन्होंने अपनी टीम को विचारों के साथ स्पष्ट होने का अधिकार दिया।
प्रेरित करने वाला नेतृत्व: वह आदेश देने के बजाय प्रेरित करने में विश्वास रखते थे।
शीघ्र निर्णय: जटिल मामलों में भी अनावश्यक देरी नहीं।
समय पर काम पूरा करना: पीएम की अपेक्षाओं को समझते हुए, काम को कुशलतापूर्वक और समयबद्ध तरीके से पूरा करना।
उनकी इसी दक्षता के कारण, 2019 में पीएम मोदी ने उन्हें फिर से प्रधान सचिव नियुक्त किया, जिसके लिए सरकार को नियमों में बदलाव तक करना पड़ा था- जो शीर्ष नेतृत्व के उन पर अटूट भरोसे को दर्शाता है।
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श्रीराम मंदिर: प्रशासनिक करियर का 'शिखर'
अगस्त 2019 में प्रधान सचिव का पद छोड़ने के बाद, नृपेंद्र मिश्र ने एक नई जिम्मेदारी लेने की इच्छा जताई। उनके मन में दो पद थे— गवर्नरशिप या श्रीराम मंदिर निर्माण समिति की अध्यक्षता। पीएम मोदी ने उनकी प्रशासनिक क्षमता और उत्तर प्रदेश की जमीनी समझ को देखते हुए उन्हें श्रीराम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया।
यह सिर्फ एक निर्माण कार्य नहीं था, बल्कि संघ परिवार की सबसे महत्वपूर्ण वैचारिक परियोजना को समय पर और त्रुटिहीन ढंग से साकार करने की चुनौती थी।
मिशन मोड पर कार्य: नृपेंद्र मिश्र ने इस चुनौती को स्वीकार किया और पूरी लगन से मंदिर निर्माण की कमान संभाली।
हर चरण पर बारीक नज़र: जनवरी 2024 में प्राण-प्रतिष्ठा से लेकर अब तक, उन्होंने निर्माण के हर चरण में अपनी प्रशासनिक दूरदर्शिता, इंजीनियरिंग की समझ और परियोजना प्रबंधन के कौशल का प्रदर्शन किया है।
श्रीराम मंदिर का भव्य और दिव्य निर्माण उनके प्रशासनिक करियर का शिखर है, जिसके लिए उन्हें पद्म भूषण जैसे उच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया है।
एक प्रेरणादायक ब्यूरोक्रेट
नृपेंद्र मिश्र की कहानी सिर्फ पद, प्रतिष्ठा और शक्ति की नहीं है, बल्कि यह कहानी है ईमानदारी, अदम्य कार्यशैली, कठिन निर्णय लेने की क्षमता, और देश की सबसे बड़ी परियोजनाओं को एक मिशन के रूप में सफल बनाने के दृढ़ संकल्प की। उनका जीवन सिविल सेवाओं में आने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणा है कि प्रशासनिक कौशल और अटूट समर्पण के बल पर देश के इतिहास में कैसे एक अमिट छाप छोड़ी जा सकती है।
नृपेंद्र मिश्रा IAS | पीएमओ प्रधान सचिव | ब्यूरोक्रेट की कहानी | पद्म भूषण सम्मान