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DNA में बदलाव और चमत्कार का संगम : India की पहली 'जीन-संपादित' भेड़ कश्मीर में जन्मी | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।जम्मू-कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SKUAST) ने एक अविश्वसनीय वैज्ञानिक मील का पत्थर हासिल किया है। शोधकर्ताओं ने भारत की पहली जीन-संपादित भेड़ विकसित की है, जिसका नाम 'तमीम' रखा गया है। यह उपलब्धि पशुधन सुधार और चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में नए द्वार खोलती है, जिससे भविष्य में स्वस्थ और अधिक उत्पादक जानवर पैदा करने की उम्मीद जगी है।
यह कोई साधारण भेड़ नहीं है, 'तमीम' विज्ञान की शक्ति का एक जीता-जागता प्रमाण है। क्या आप जानते हैं कि यह कैसे संभव हुआ? वैज्ञानिकों ने एक विशेष जीन को भेड़ के भ्रूण में डाला और फिर एक सरोगेट भेड़ में स्थापित किया, जिसके परिणामस्वरूप इस असाधारण मेमने का जन्म हुआ। यह तकनीक न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी एक बड़ी खबर है।
कैसे 'तमीम' बनी विज्ञान का चमत्कार?
जीन संपादन एक क्रांतिकारी वैज्ञानिक तकनीक है जो किसी जीवित जीव की आनुवंशिकी में डीएनए अनुक्रम को बदलकर या उसमें परिवर्तन करके बदलाव लाती है। SKUAST के समर्पित शोधकर्ताओं की टीम ने इस जटिल प्रक्रिया को असाधारण सटीकता के साथ अंजाम दिया। उन्होंने कुछ भेड़ों के भ्रूणों में एक खास जीन डाला, फिर उन्हें प्रयोगशाला में सावधानीपूर्वक विकसित किया गया।
क्या आपने कभी सोचा है कि यह सब कितना मुश्किल रहा होगा? इस वैज्ञानिक प्रयास में बहुत धैर्य और सटीकता की आवश्यकता थी। इन जीन-संपादित भ्रूणों को तब एक सरोगेट भेड़ में स्थापित किया गया, जिसका परिणाम जुड़वां मादा मेमनों के जन्म के रूप में मिला। इन दोनों में से एक मेमना, हमारी 'तमीम', वह संपादित जीन धारण करती थी। यह प्रक्रिया इतनी बारीक होती है कि इसमें जरा सी चूक पूरे प्रयोग को विफल कर सकती है।
'तमीम' क्यों है इतनी खास?
शोधकर्ताओं का मानना है कि जीन संपादन तकनीक पशुधन के स्वास्थ्य और उत्पादकता में क्रांति ला सकती है। कल्पना कीजिए, ऐसी भेड़ें जो बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों, या जो अधिक ऊन या मांस का उत्पादन करें! 'तमीम' इस दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम है। शोधकर्ता अब जीन-संपादित भेड़ 'तमीम' और उसकी जुड़वां बहन का विस्तृत अध्ययन कर रहे हैं ताकि जीन संपादन के दीर्घकालिक प्रभावों और लाभों को पूरी तरह से समझा जा सके।
यह सिर्फ एक भेड़ नहीं, बल्कि भविष्य की नींव है। यह उपलब्धि भारत को जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी देशों की सूची में शामिल करती है। SKUAST के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि भारतीय शोधकर्ता भी वैश्विक स्तर पर बड़े वैज्ञानिक योगदान देने में सक्षम हैं।
भविष्य की संभावनाएं: क्या बदल सकता है?
जीन-संपादित पशुधन के कई फायदे हो सकते हैं
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: ऐसे जानवर विकसित किए जा सकते हैं जो सामान्य बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों, जिससे पशुधन हानि कम हो।
उत्पादकता में सुधार: दूध, मांस या ऊन का उत्पादन बढ़ाने के लिए जीन संपादित किए जा सकते हैं।
दवा उत्पादन: कुछ जीन-संपादित जानवर ऐसे प्रोटीन या दवाएं उत्पन्न कर सकते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हों।
पर्यावरणीय स्थिरता: कम पर्यावरणीय प्रभाव वाले पशुधन विकसित किए जा सकते हैं।
क्या यह सब रोमांचक नहीं लगता? यह तकनीक कृषि और चिकित्सा के लिए असीम संभावनाएं प्रदान करती है। 'तमीम' का जन्म भारत के लिए एक नए वैज्ञानिक युग की शुरुआत है। यह सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि एक सपना है जो अब हकीकत में बदल रहा है।
हालांकि जीन संपादन के फायदे अनेक हैं, लेकिन कुछ नैतिक और नियामक चुनौतियां भी हैं जिन पर ध्यान देना होगा। जीन-संपादित जीवों की सुरक्षा और उनके पर्यावरण पर संभावित प्रभावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। SKUAST के शोधकर्ता इस पहलू पर भी गहराई से काम कर रहे हैं। वे सुनिश्चित कर रहे हैं कि यह वैज्ञानिक प्रगति जिम्मेदारी और नैतिकता के साथ आगे बढ़े।
भारत में इस तरह के शोध के लिए सख्त दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है। पारदर्शिता और सार्वजनिक जागरूकता भी महत्वपूर्ण है ताकि इस तकनीक के बारे में गलत धारणाओं को दूर किया जा सके।
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