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देश के Police विभाग में 90 फीसदी महिलाएं जूनियर पदों पर, वरिष्ठ पदों पर प्रतिनिधित्व बेहद कम

देश की न्याय प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की चर्चाएं भले ही लगातार हो रही हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश करती है। ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025’ के अनुसार पुलिस विभाग में 90 प्रतिशत महिलाएं कांस्टेबल जैसे जूनियर पदों पर कार्यरत हैं,

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Ranjana Sharma
Police
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क: देश की न्याय प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की चर्चाएं भले ही लगातार हो रही हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश करती है। टाटा ट्रस्ट और कई नागरिक संगठनों द्वारा तैयार ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025’ के अनुसार पुलिस विभाग में 90 प्रतिशत महिलाएं कांस्टेबल जैसे जूनियर पदों पर कार्यरत हैं, जबकि वरिष्ठ पदों जैसे पुलिस अधीक्षक या महानिदेशक पर महज 1,000 से भी कम महिलाएं कार्यरत हैं।

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वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की भारी कमी

रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुल 2.4 लाख महिला पुलिसकर्मी हैं, जिनमें से करीब 2.17 लाख महिलाएं कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। वहीं केवल 960 महिलाएं भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की अधिकारी हैं और 24,322 महिलाएं उप-अधीक्षक, निरीक्षक या उप-निरीक्षक जैसे गैर-आईपीएस पदों पर कार्यरत हैं। आईपीएस कैडर की स्वीकृत संख्या 5,047 है, लेकिन उसमें भी महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत सीमित है। पुलिस उपाधीक्षक के पद पर सबसे अधिक महिलाएं मध्य प्रदेश में हैं, जहां इनकी संख्या 133 है।

राज्यों की स्थिति और प्रदर्शन

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रिपोर्ट में देश के 18 बड़े और मध्यम राज्यों की न्याय प्रणाली का मूल्यांकन किया गया है। इस वर्ष भी कर्नाटक ने न्याय व्यवस्था के मामले में शीर्ष स्थान बरकरार रखा है। उसके बाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु का स्थान रहा यानि इस बार भी दक्षिण भारतीय राज्य शीर्ष पांच में छाए रहे हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि कानून प्रवर्तन में लैंगिक विविधता को लेकर बढ़ती जागरूकता के बावजूद कोई भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश महिलाओं के प्रतिनिधित्व के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है।

सुधार के संकेत, पर चुनौतियां बरकरार

  • 78 प्रतिशत पुलिस थानों में अब महिला हेल्प डेस्क उपलब्ध हैं।
  • 86 प्रतिशत जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा है।
  • कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च 2019 से 2023 के बीच दोगुना होकर 6.46 रुपये तक पहुंच गया है।
  • जिला न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी भी 38 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
  • कमजोर कड़ियाँ और ढांचागत चुनौतियां
  • हालांकि कई मोर्चों पर सुधार के बावजूद रिपोर्ट गंभीर खामियों की ओर भी इशारा करती है।
  • पीएलवी (अर्द्धन्यायिक स्वयंसेवक) की संख्या में पिछले 5 वर्षों में 38% की गिरावट आई है।
  • देश भर में प्रति लाख आबादी पर मात्र 3 पीएलवी मौजूद हैं।
  • सिर्फ 25 मनोवैज्ञानिक/मनोचिकित्सक पूरे देश की जेलों के लिए उपलब्ध हैं।
  • जेलों की हालत चिंताजनक है—राष्ट्रीय स्तर पर औसतन 131% क्षमता से अधिक कैदी जेलों में हैं।
  • उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे खराब है—यहाँ हर तीन में से एक जेल 250% से अधिक की क्षमता से भरी हुई है।
  • जजों की कमी भी गंभीर है—भारत में प्रति दस लाख आबादी पर केवल 15 जज, जबकि विधि आयोग की सिफारिश 50 जज प्रति दस लाख थी।
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