नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । 2005 से 2008 तक क्या भारत ने पाकिस्तान को सियाचिन तक सौंपने की तैयारी कर ली थी? क्या कश्मीर, सरक्रीक और सियाचिन जैसे मुद्दों पर कांग्रेस ने ‘गुप्त समझौते’ किए थे? विदेश मंत्री स्तर की पांच बैठकों में क्या देशहित ताक पर रखे गए? बीजेपी इस मुद्दे पर कांग्रेस को लगातार घेर रही है, तो सच क्या है? आइए तथ्यों की रोशनी में जांचते हैं उस दौर के कूटनीतिक दस्तावेज़ और सियासी दावे।
2005 से 2008 के बीच भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच कई अहम बैठकें हुईं। दावा है कि इन बैठकों में कश्मीर, सरक्रीक और सियाचिन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जमीनों के अदला-बदली तक की पेशकश की गई थी। बीजेपी कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि उसने पाकिस्तान के सामने भारत को बार-बार झुकाया। इस रिपोर्ट में हम पड़ताल करेंगे कि उन वर्षों में क्या सचमुच भारत ने कोई ऐसा प्रस्ताव पाकिस्तान को दिया था, जिससे देश की सुरक्षा और सम्मान पर असर पड़ा हो।
5 अहम बैठकें, 3 संवेदनशील मुद्दे – क्या था मक्सद?
2005 से 2008 के बीच भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच पांच औपचारिक वार्ताएं हुईं। इन बैठकों का मकसद था — भारत-पाक रिश्तों में स्थायित्व लाना और विवादित क्षेत्रों को लेकर समझौता करना। खासतौर पर कश्मीर, सरक्रीक और सियाचिन जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के अधिकारी ‘विजन डॉक्युमेंट’ तैयार कर रहे थे।
लेकिन सवाल उठता है — क्या इन बैठकों में भारत की ओर से ऐसी कोई रियायत दी गई, जो देशहित के खिलाफ थी?
सियाचिन की 'डील' पर क्यों खड़ा हुआ विवाद?
सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तान लंबे समय से दावा करता रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स और रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों के मुताबिक, 2006-07 के बीच पाकिस्तान को यह संकेत दिया गया था कि यदि वो भरोसेमंद वेरिफिकेशन मेकेनिज्म को स्वीकार करता है, तो भारत कुछ इलाकों से पीछे हट सकता है। हालांकि, भारतीय सेना और विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया और बात आगे नहीं बढ़ सकी।
सरक्रीक और कश्मीर – कितनी थी तैयार सहमति?
सरक्रीक, जो गुजरात के कच्छ क्षेत्र में स्थित एक विवादित सीमावर्ती इलाका है, उस पर भारत-पाक के सर्वेक्षण हुए थे। वहीं, कश्मीर मुद्दे पर भी ‘सॉफ्ट बॉर्डर’ और ‘जन संपर्क’ बढ़ाने की बातें हो रही थीं। मनमोहन सरकार इसे ‘विश्वास बहाली’ के प्रयास बता रही थी, पर बीजेपी का दावा है कि इससे भारत की स्थिति कमजोर हुई।
बीजेपी के आरोप, कांग्रेस की सफाई
भाजपा नेता डॉक्टर निशिकांत दुबे का कहना है कि कांग्रेस ने विदेश नीति को ‘समझौते की राजनीति’ बना दिया था। वे आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस की सरकार ने पाकिस्तान के साथ ‘गुप्त समझौतों’ की नीति अपनाकर भारतीय हितों की अनदेखी की। वहीं कांग्रेस इन आरोपों को सिरे से खारिज करती है और कहती है कि हर निर्णय संविधान, संसद और सेना की सलाह से ही लिया गया था।
समझौता या सिर्फ बातचीत?
इन सभी घटनाक्रमों का विश्लेषण करें तो यह सामने आता है कि 2005-08 के बीच भारत ने पाकिस्तान से कुछ मुद्दों पर बातचीत अवश्य की, लेकिन ऐसा कोई अंतिम समझौता नहीं हुआ, जिससे भारत की संप्रभुता पर सीधा खतरा उत्पन्न होता हो। हां, यह जरूर है कि कई संवेदनशील मुद्दों पर ‘रियायत की भावना’ दिखी थी, जिसे अब राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है।
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