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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । अब पाकिस्तान से वार्ता करने से पहले कतरे कतरे खून का हिसाब होना चाहएि। पाकिस्तान परस्त आतंकियों ने भारतीयों का जमकर खून बहाया है। अब वक्त आ गया है हिसाब जरूरी है।
आपको बता दें कि भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ द्वारा दिए गए सिंधु जल संधि पर वार्ता प्रस्ताव को सख़्ती से खारिज कर दिया। भारत का स्पष्ट संदेश है — "जब तक सीमा पार से आतंकवाद थमेगा नहीं और कश्मीर पर दखल बंद नहीं होगा, तब तक किसी भी किस्म की बातचीत मुमकिन नहीं।"
यह फैसला सिर्फ एक द्विपक्षीय तनाव की निशानी नहीं, बल्कि एक बड़ा कूटनीतिक संकेत है कि भारत अब आतंकवाद को नजरअंदाज करके संबंध नहीं बनाएगा। इस नीति का असर अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी दिखाई देने लगा है।
क्या भारत की नीति वैश्विक दिशा तय कर रही है?
अमेरिका और यूरोप की समझदारी भारत के साथ
अमेरिका के पूर्व दक्षिण एशिया मामलों के सह-सचिव रॉबर्ट ओ. ब्लेक ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा, "भारत का यह रुख समझदारी भरा है। अमेरिका ने 9/11 के बाद पाकिस्तान से अपने संबंधों की शर्तें तय की थीं। अब भारत भी वही कर रहा है—वार्ता उसी से जो हिंसा छोड़ दे।"
इसी तरह ब्रिटेन के थिंक टैंक ‘Chatham House’ की ताज़ा रिपोर्ट में लिखा गया, "भारत अब रिएक्ट नहीं करता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करता है—बिना झुके, बिना चुप रहे।"
चीन और पाकिस्तान की 'दोस्ती' पर दबाव
चीन अब तक पाकिस्तान का रणनीतिक समर्थन करता आया है, खासकर CPEC जैसे प्रोजेक्ट्स में। लेकिन भारत द्वारा सिंधु जल संधि जैसे संवेदनशील विषय पर संवाद रोकना बीजिंग के लिए भी एक स्पष्ट संकेत है—कि जब तक पाकिस्तान आतंकी ढांचे को खत्म नहीं करता, भारत किसी भी तरह की सॉफ्ट डिप्लोमेसी को स्वीकार नहीं करेगा।
इसका असर चीन की वैश्विक छवि पर भी पड़ रहा है, क्योंकि अब वो एक ऐसे देश के साथ खड़ा दिख रहा है जिस पर FATF (Financial Action Task Force) कई बार सवाल उठा चुका है।
संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक की भूमिका
गौरतलब है कि 1960 की सिंधु जल संधि वर्ल्ड बैंक की निगरानी में बनी थी। लेकिन भारत का यह निर्णय अब एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है कि क्या अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सिर्फ तकनीकी मामलों तक सीमित रहेंगी, या आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर पक्ष स्पष्ट करेंगी?
एक्सपर्ट व्यू: भारत अब 'नरम ताकत' से 'कठोर कूटनीति' की ओर
डॉ. अर्पिता मुखर्जी, प्रोफेसर, सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज, JNU
"पाकिस्तान वर्षों से दोहरा रवैया अपनाता रहा है—एक तरफ वार्ता का प्रस्ताव, दूसरी तरफ आतंकवाद का समर्थन। भारत अब इस झूठे संतुलन को तोड़ चुका है। यह नीति न सिर्फ भारतीयों को सुरक्षित बनाएगी, बल्कि वैश्विक लोकतंत्रों को भी एक स्पष्ट दिशा देगी।"
लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) सैयद अली, पूर्व डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस
"सालों तक भारत सिर्फ जवाब देता रहा, अब पहल कर रहा है। भारत के इस कड़े रुख से पाकिस्तान को संदेश गया है कि 'पानी की बातचीत से पहले खून के छींटे साफ करो।' यह सिर्फ सैन्य दृष्टिकोण नहीं, बल्कि रणनीतिक मजबूती का संकेत है।"
अंजलि रैना, जल विशेषज्ञ WWF इंडिया
"सिंधु जल संधि हमेशा तकनीकी रही, लेकिन अब भारत ने इसे एक नैतिक मुद्दा बना दिया है। जब तक पाकिस्तान आतंकियों को पालता रहेगा, तब तक जल बंटवारे पर भरोसा करना भारत के लिए जोखिम होगा। यह निर्णय पर्यावरणीय कूटनीति को भी नया आकार देगा।"
भारत की कूटनीति की नई परिभाषा: 'सॉफ्ट नहीं, स्ट्रॉन्ग स्टेट'
भारत अब केवल 'सबका साथ, सबका विकास' तक सीमित नहीं, बल्कि 'सबके साथ तभी, जब राष्ट्रीय सुरक्षा बनी रहे' की नीति पर चल रहा है। यह सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं—चीन, अफगानिस्तान और अन्य पड़ोसी देश भी अब भारत की रणनीतिक सोच को गंभीरता से ले रहे हैं।
क्या यह भारत की कूटनीतिक रीसेट की शुरुआत है?
भारत का सिंधु जल पर बातचीत से इनकार, एक स्पष्ट संदेश है — आतंक और संवाद साथ नहीं चल सकते। इस नीति को अब अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और यहां तक कि एशियाई सहयोगी भी गंभीरता से देख रहे हैं।
यह बदलाव न सिर्फ विदेश नीति में बल्कि देश की वैश्विक छवि में भी दिखेगा। भारत अब सिर्फ एक सहनशील देश नहीं, बल्कि एक स्पष्ट सोच और मजबूत इरादों वाला राष्ट्र बनकर उभरा है।
आपकी राय क्या है? क्या भारत का यह कड़ा रुख सही दिशा में एक कदम है?
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