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भारत बंटवारे का असली सच : NCERT का नया मॉड्यूल जारी, अब 6वीं से 12वीं तक छात्र जानेंगे जिम्मेदार कौन?

NCERT ने 6वीं से 12वीं के छात्रों के लिए भारत-पाकिस्तान विभाजन पर दो नए मॉड्यूल बनाए हैं, जो विभाजन के लिए जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन की भूमिका को उजागर करते हैं। ये मॉड्यूल दशकों पुरानी धारणाओं को तोड़ते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

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Ajit Kumar Pandey
भारत बंटवारे का असली सच : NCERT का नया मॉड्यूल जारी, अब 8वीं से 12वीं तक छात्र जानेंगे जिम्मेदार कौन? | यंग भारत न्यूज

भारत बंटवारे का असली सच : NCERT का नया मॉड्यूल जारी, अब 8वीं से 12वीं तक छात्र जानेंगे जिम्मेदार कौन? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी को लेकर NCERT ने 6वीं से 12वीं तक के छात्रों के लिए दो नए मॉड्यूल तैयार किए हैं। इन मॉड्यूलों में इतिहास के उन अनछुए पहलुओं पर रोशनी डाली गई है जो अब तक पाठ्यपुस्तकों में नहीं थे। यह नई जानकारी बताती है कि देश के बंटवारे के लिए सिर्फ एक नहीं बल्कि कई कारक जिम्मेदार थे। ये मॉड्यूल इस भयानक त्रासदी की जटिलताओं को छात्रों के सामने रखेंगे। भारत सरकार ने 14 अगस्त को Partition Horrors Remembrance Day घोषित किया है, इस दिन का उद्देश्य छात्रों और समाज को यह याद दिलाना है कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे (1947) ने लाखों लोगों की जिंदगियों पर कितना गहरा असर डाला।

भारत का विभाजन 20वीं सदी की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक है। लाखों लोग विस्थापित हुए, बेगुनाह मारे गए और सदियों पुराना भाईचारा तार-तार हो गया। अब तक हम किताबों में यही पढ़ते आए हैं कि इसके पीछे सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत की 'बांटो और राज करो' की नीति थी। लेकिन NCERT के ये नए मॉड्यूल एक और कहानी सुनाते हैं। ये कहानी उन इंसानी फैसलों की है जिनकी वजह से सरहदों पर खून बहा।

ये मॉड्यूल 1940 से 1947 के बीच की घटनाओं को गहराई से खंगालते हैं। इनमें उन शख्सियतों और राजनीतिक दलों की भूमिका को सामने लाया गया है जिनके फैसले भारत के इतिहास की दिशा बदल दी। NCERT का मानना है कि आज की पीढ़ी को विभाजन की पूरी कहानी पता होनी चाहिए जिसमें उसके सभी जिम्मेदार किरदारों का जिक्र हो।

कौन था विभाजन का असली गुनहगार?

विभाजन के लिए कौन जिम्मेदार था यह सवाल आज भी लोगों के मन में कौंधता है। NCERT के नए मॉड्यूल इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं। इनमें तीन प्रमुख किरदारों पर फोकस किया गया है: मोहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन।

मोहम्मद अली जिन्न : जिन्ना ने भारत के बंटवारे की मांग की।

कांग्रेस पार्टी : भारत के बंटवारे की मांग को स्वीकार किया।

लॉर्ड माउंटबेटन : भारत का बंटवारा किया।

1. मोहम्मद अली जिन्ना और द्विराष्ट्र सिद्धांत

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मोहम्मद अली जिन्ना जिन्हें 'कायदे-आजम' कहा जाता था शुरुआत में हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। लेकिन, 1930 के दशक के बाद उनके विचारों में बड़ा बदलाव आया। उन्होंने 'द्विराष्ट्र सिद्धांत' (Two-Nation Theory) को हवा दी। उनका मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं और वे एक साथ कभी नहीं रह सकते।

साल 1940 का लाहौर प्रस्ताव : मुस्लिम लीग के इस प्रस्ताव में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र की मांग की गई। यह वही मोड़ था जहां से भारत की एकता की नींव हिलने लगी।

जिन्ना का अड़ियल रवैया : जिन्ना अपनी मांग पर अड़े रहे। उन्होंने किसी भी तरह के समझौते से इनकार कर दिया, जिसमें एक मजबूत, एकीकृत भारत का विचार था। उनकी जिद ने विभाजन को लगभग तय कर दिया।

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भारत बंटवारे का असली सच : NCERT का नया मॉड्यूल जारी, अब 8वीं से 12वीं तक छात्र जानेंगे जिम्मेदार कौन? | यंग भारत न्यूज
भारत बंटवारे का असली सच : NCERT का नया मॉड्यूल जारी, अब 8वीं से 12वीं तक छात्र जानेंगे जिम्मेदार कौन? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

2. कांग्रेस पार्टी की भूमिका और चूक

आज तक कांग्रेस की भूमिका को अक्सर सिर्फ एक पीड़ित पक्ष के रूप में दिखाया जाता रहा है। लेकिन, NCERT के मॉड्यूल में बताया गया है कि कांग्रेस के कुछ फैसलों ने भी विभाजन की आग में घी डालने का काम किया।

शुरुआती गलतियां : 1937 के चुनावों के बाद कांग्रेस ने कुछ राज्यों में मुस्लिम लीग के साथ सरकार बनाने से इनकार कर दिया। इससे जिन्ना और मुस्लिम लीग में यह धारणा मजबूत हुई कि कांग्रेस सिर्फ हिंदुओं की पार्टी है।

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अल्पकालिक सोच: कांग्रेस के कुछ नेताओं ने जिन्ना के अड़ियल रवैये से थककर विभाजन को स्वीकार कर लिया। उन्होंने सोचा कि यह एक अल्पकालिक समाधान है जिससे जल्दी ही शांति आ जाएगी। नेहरू और पटेल को लगता था कि विभाजन से एक मजबूत भारत का निर्माण होगा।

3. माउंटबेटन का जल्दबाज़ी वाला फैसला

लॉर्ड लुईस माउंटबेटन को भारत का आखिरी वायसराय बनाकर भेजा गया था। उनका मिशन था भारत को सत्ता हस्तांतरित करना। लेकिन उनकी जल्दबाज़ी ने हालात को और बदतर बना दिया।

3 जून की योजना: माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन का ऐलान किया। पहले यह माना जा रहा था कि सत्ता का हस्तांतरण जून 1948 तक होगा, लेकिन माउंटबेटन ने इसे 15 अगस्त 1947 तक करने का फैसला किया।

रेडक्लिफ लाइन की हड़बड़ी: पंजाब और बंगाल की सीमाओं को निर्धारित करने का काम सर सिरिल रेडक्लिफ को दिया गया। उनके पास सिर्फ 5 हफ्ते का समय था। जल्दबाजी में बनाई गई यह सीमा रेखा लाखों लोगों की त्रासदी का कारण बनी।

नए मॉड्यूल - नए सवाल और भविष्य की दिशा

NCERT के ये मॉड्यूल सिर्फ इतिहास नहीं सिखाते, बल्कि छात्रों को सोचने पर मजबूर करते हैं। वे उन्हें बताते हैं कि इतिहास सिर्फ काले और सफेद में नहीं होता बल्कि उसमें कई ग्रे शेड्स होते हैं। इन मॉड्यूलों में विभाजन के मानवीय पहलुओं पर भी जोर दिया गया है। जैसे:

विस्थापन और हिंसा: लाखों लोग अपने घर-बार छोड़कर रातोंरात शरणार्थी बन गए। ट्रेनों में लाशें मिलीं और खून की नदियां बह गईं।

महिलाएं और बच्चे: इस त्रासदी का सबसे ज्यादा असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ा, जिन्हें अगवा किया गया और उनके साथ बर्बरता की गई।

मानवीय कहानियां: इन मॉड्यूलों में आम लोगों की कहानियों को भी शामिल किया गया है, ताकि छात्र उस दर्द को महसूस कर सकें।

यह पहल भारतीय शिक्षा में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। यह सिर्फ तथ्यों को दोहराने की बजाय, आलोचनात्मक सोच (critical thinking) को बढ़ावा देती है। यह छात्रों को सिखाती है कि इतिहास को सिर्फ एक नजरिए से नहीं, बल्कि कई अलग-अलग पहलुओं से समझना जरूरी है।

क्यों जरूरी है यह बदलाव?

यह बदलाव हमें बताता है कि इतिहास को एक हथियार के रूप में नहीं, बल्कि एक शिक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। NCERT का यह कदम विभाजन की जटिलताओं को सरल शब्दों में पेश करेगा। यह छात्रों को बताएगा कि कैसे राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और गलत फैसलों ने एक पूरे महाद्वीप को दो हिस्सों में बांट दिया।

यह हमें सिर्फ विभाजन का कारण नहीं बताता, बल्कि भविष्य में ऐसे फैसलों को टालने की प्रेरणा भी देता है। उम्मीद है कि यह नई पहल हमारे देश के युवाओं को अपने इतिहास की सच्चाई को समझने और एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने में मदद करेगी।

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