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India-US की सबसे बड़ी रक्षा साझेदारी पक्की : चीन-पाक के लिए ये ऐलान क्यों बना सिरदर्द?

भारत-अमेरिका ने 10-वर्षीय रक्षा ढांचा समझौते पर सहमति जताई, जिससे सैन्य सहयोग और गहरा होगा। यह ऐतिहासिक कदम इंडो-पैसिफिक में स्थिरता और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बेहद अहम है।

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Ajit Kumar Pandey
India-US की सबसे बड़ी रक्षा साझेदारी पक्की : चीन-पाक के लिए ये ऐलान क्यों बना सिरदर्द? | यंग भारत न्यूज

India-US की सबसे बड़ी रक्षा साझेदारी पक्की : चीन-पाक के लिए ये ऐलान क्यों बना सिरदर्द? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।भारत और अमेरिका ने अगले 10 वर्षों के लिए एक महत्वाकांक्षी रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने की सहमति जताई है, जिससे दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को नई ऊंचाई मिलेगी। यह ऐतिहासिक कदम क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चुनौतियां बढ़ रही हैं। इस समझौते से रक्षा सहयोग और गहरे होंगे।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके अमेरिकी समकक्ष पीट हेगसेथ के बीच हाल ही में हुई फोन वार्ता ने दोनों देशों के बीच मजबूत होते विश्वास और सहयोग की नींव रखी। 1 जुलाई 2025 को हुई इस बातचीत के एक दिन बाद पेंटागन द्वारा जारी बयान में यह घोषणा की गई कि दोनों नेता इस साल अपनी अगली मुलाकात में 10-वर्षीय अमेरिका-भारत रक्षा ढांचागत समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। यह घोषणा न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे वैश्विक परिदृश्य के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है।

यह समझौता क्यों है इतना खास?

यह नया रक्षा ढांचागत समझौता भारत और अमेरिका के बीच एक गहरी रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक है। फरवरी 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के संयुक्त बयान में निर्धारित रक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। यह समझौता कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

बढ़ा हुआ रक्षा सहयोग: यह रक्षा ढांचागत समझौता दोनों देशों के बीच उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, संयुक्त सैन्य अभ्यास, खुफिया जानकारी साझा करने और रक्षा उत्पादन में सहयोग को बढ़ावा देगा। भारत के लिए यह अपनी सैन्य क्षमताओं को आधुनिक बनाने का एक सुनहरा अवसर है।

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इंडो-पैसिफिक में स्थिरता: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर, भारत और अमेरिका के बीच यह मजबूत साझेदारी क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने और नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए एक शक्तिशाली संदेश है।

सैन्य बिक्री और औद्योगिक सहयोग: पेंटागन के बयान में भारत को लंबित प्रमुख अमेरिकी रक्षा बिक्री और दोनों देशों के बीच करीबी रक्षा औद्योगिक सहयोग की अनिवार्यता पर भी चर्चा की गई। यह न केवल अमेरिका के लिए एक बड़ा बाजार खोलेगा, बल्कि भारत को 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनने में भी मदद करेगा।

रणनीतिक साझीदार हैं भारत अमेरिका

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भारत और अमेरिका के रक्षा संबंध पिछले कुछ दशकों में तेजी से विकसित हुए हैं। कभी शीत युद्ध के अलग-अलग खेमों में खड़े रहे ये दोनों देश अब एक दूसरे के महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बन गए हैं। इस बदलाव के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें क्षेत्रीय चुनौतियां, आतंकवाद का मुकाबला और आर्थिक हित शामिल हैं।

अब हो चुके हैं कई समझौते

हाल के वर्षों में, दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे कि लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), कम्युनिकेशंस कम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA), और बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA)। ये समझौते दोनों देशों की सेनाओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी को बढ़ावा देने और वास्तविक समय की जानकारी साझा करने में सहायक रहे हैं। यह 10-वर्षीय रक्षा ढांचागत समझौता इन्हीं सफलताओं पर आधारित है और भविष्य के सहयोग के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करता है।

राजनाथ सिंह और पीट हेगसेथ से हुई रणनीतिक वार्ता

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा सचिव पीट हेगसेथ के बीच हुई यह वार्ता बताती है कि दोनों देश अपने संबंधों को कितनी गंभीरता से लेते हैं। उन्होंने न केवल लंबित रक्षा बिक्री और औद्योगिक सहयोग पर चर्चा की, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि फरवरी 2025 के संयुक्त बयान में तय किए गए रक्षा लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

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यह समझौता भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में अमेरिका की प्राथमिकता को भी दर्शाता है। अमेरिका भारत को दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी मानता है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता में अहम भूमिका निभा सकता है। यह साझेदारी केवल सैन्य सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष सहयोग और समुद्री डोमेन जागरूकता जैसे उभरते क्षेत्र भी शामिल हैं।

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