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जम्मू-कश्मीर के सुदूर गांव में उम्मीद की किरण लेकर आई भारतीय सेना, लड़के को मिली अपनी आवाज

अक्षय शर्मा आठ सालों तक खामोशी में रहा। कटे होंठ और तालु के साथ पैदा हुए अक्षय शर्मा की तीन साल की उम्र में सर्जरी हुई थी, लेकिन फिर भी वह बोल नहीं पाता था। उसके माता-पिता गरीबी से जूझ रहे थे और इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ थे

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Mukesh Pandit
Akshay Sharma

Akshay Sharma got his voice back।

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कठुआ, आईएएनएस।दुग्गन के एक गरीब परिवार का अक्षय शर्मा आठ सालों तक खामोशी में रहा। कटे होंठ और तालु के साथ पैदा हुए अक्षय शर्मा की तीन साल की उम्र में सर्जरी हुई थी, लेकिन फिर भी वह बोल नहीं पाता था। उसके माता-पिता गरीबी से जूझ रहे थे और इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे की आवाज सुनने की उम्मीद लगभग छोड़ दी थी।  

स्पीच थेरेपी तकनीकों का अध्ययन किया 

जम्मू में रक्षा जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सुनील बर्त्वाल ने बताया कि सब कुछ तब बदल गया, जब उस इलाके में सेवारत एक सेना के डॉक्टर की अक्षय से मुलाकात हुई। परिवार के संघर्ष से प्रभावित होकर उन्होंने अक्षय की प्राथमिक जांच की और पाया कि उचित चिकित्सा से वह बोलना सीख सकता है। सुदूर गांव में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी, इसलिए सेना के डॉक्टर ने खुद स्पीच थेरेपी तकनीकों का अध्ययन किया और अपने खाली समय में अक्षय के साथ काम करना शुरू कर दिया।

शब्द और अंत में सरल वाक्य सिखाए

धैर्यपूर्वक उन्होंने उसे ध्वनियां, फिर शब्द और अंत में सरल वाक्य सिखाए। महीनों के अभ्यास के बाद अक्षय ने बढ़ते आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू कर दिया। जब उसने पहली बार अपने माता-पिता को पुकारा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनके लिए यह सिर्फ एक आवाज नहीं थी, बल्कि यह एक चमत्कार था। उनके दिलों में गहरे दफन एक सपना जीवंत हो उठा था। उनका घर, जो कभी मौन प्रार्थनाओं से भरा रहता था, अब अक्षय की आवाज से गूंज रहा है।

घटना ने पूरे समुदाय का दिल छू लिया 

एक सैनिक के दयालु कार्य से शुरू हुई इस घटना ने पूरे समुदाय को छू लिया है। सेना के डॉक्टर की करुणा ने दुग्गन में एक अमिट छाप छोड़ी है, यह सभी को याद दिलाती है कि सेना न सिर्फ सीमाओं की रक्षा करती है, बल्कि दिलों को भी भरती है और सबसे अप्रत्याशित क्षणों में, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वहां आशा जगाती है।  indian army | Indian Army Action | Indian Army bravery | Hope in Remote Village

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