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अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस : सामाजिक समर्थन से बेरंग जिंदगी में भरें खुशियों के रंग

अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस विधवाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने और उनके जीवन को सशक्त बनाने का अवसर है। शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, और सामाजिक समर्थन से उनकी जिंदगी में रंग भरा जा सकता है।

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Mukesh Pandit
Widow day 20125
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आज़ादी के सात दशकोंबाद भी देश में कुछ जातियां, समुदाय और वर्ग ऐसे हैं, जो आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-बसर कर रहे हैं। जिन्हें आज भी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, जो समाज की मुख्यधारा से कटे हुए हैं। लेकिन विधवाओं का वर्ग ऐसा है, जो सभी धर्मों, जातियों और समुदायों में मौजूद हैं। अफ़सोस की बात यह है कि इस वर्ग को स्वयं समाज द्वारा सभी प्रकार की सुविधाओं से वंचित कर बहिष्कृत जीवन जीने पर मजबूर कर दिया जाता है। 

इस वर्ग के कल्याण के उद्देश्य से हर साल 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है। यह दिवस विधवाओं के जीवन की चुनौतियों के बारे में उनकी जागरूकता बढ़ाने, उनके अधिकारों और कल्याण के प्रति समर्पित है। इसके माध्यम से उनकी सामाजिक, आर्थिक और कानूनी कठिनाइयों को उजागर करना एवं इन मुद्दों को हल करने के लिए कार्रवाई को बढ़ावा देना है।

देश में 4 करोड़ से अधिक विधवाएं

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 4 करोड़ से अधिक विधवाएं हैं। भारत में इसका दर राज्यों के हिसाब से अलग-अलग है। भारत में कुल विधवा दर लगभग 8.3 प्रतिशत है। भारत में अधिकतर विधवाएं वृद्ध हैं। लगभग 58 प्रतिशत विधवाओं की आयु 60 वर्ष और उससे अधिक हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों के कारण भारत में विधवाओं के बीच पुनर्विवाह की दर आम तौर पर कम है।

2011 की जनगणना के अनुसार, 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की केवल 15 प्रतिशत विधवाओं का पुनर्विवाह हुआ है। देश में कई विधवाएं आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रही हैं और गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने को विवश हैं। 2011-12 में किए गए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 46 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 32 प्रतिशत विधवाएं गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रही हैं। 

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प्रत्येक वर्ष 23 जून को मनाया दिवस

अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस प्रत्येक वर्ष 23 जून को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 दिसंबर 2010 को इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता दी, ताकि विधवाओं की स्थिति और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया जा सके। यह तिथि लूम्बा फाउंडेशन के संस्थापक राजिंदर लूम्बा की माता श्रीमती पुष्पा वती लूम्बा के विधवा होने की तारीख (23 जून 1954) से प्रेरित है।

विधवाओं की चुनौतियां

विश्वभर में लगभग 25.8 करोड़ विधवाएं हैं, जिनमें से कई गरीबी, सामाजिक भेदभाव, और हिंसा का सामना करती हैं। भारत जैसे देशों में, विधवाओं को अक्सर सामाजिक बहिष्कार, संपत्ति के अधिकारों से वंचित करना, और अपमानजनक परंपराओं (जैसे विधवा को अशुभ मानना) का सामना करना पड़ता है। कई विधवाएं अपने पति की मृत्यु के बाद आर्थिक तंगी, शिक्षा की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी से जूझती हैं। कोविड-19 महामारी ने इन समस्याओं को और गंभीर किया, क्योंकि कई महिलाएं अचानक विधवा हो गईं और उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला।

बेरंग जिंदगी में रंग कैसे भरें:

शिक्षा और कौशल विकास: विधवाओं को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना उनके जीवन को सशक्त बना सकता है। उदाहरण के लिए, गाम्बिया की फातौमाता समटेह ने लूम्बा फाउंडेशन के विधवा आजीविका परियोजना के माध्यम से व्यवसाय शुरू किया और अपने परिवार का भरण-पोषण किया। सिलाई, बुनाई, या डिजिटल कौशल जैसे प्रशिक्षण विधवाओं को आत्मनिर्भर बनाते हैं।

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आर्थिक सशक्तिकरण: विधवाओं को सूक्ष्म-वित्त (माइक्रोफाइनेंस), ऋण, और छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए सहायता प्रदान की जानी चाहिए। इससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकती हैं और अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दे सकती हैं।

कानूनी अधिकारों की जागरूकता: 

विधवाओं को संपत्ति, विरासत, और कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना उनके जीवन को सुरक्षित और सम्मानजनक बनाता है। कई देशों में विधवाओं को कानूनी सहायता की कमी होती है, जिसे संबोधित करना आवश्यक है।

सामाजिक समर्थन: विधवाओं को सामाजिक बहिष्कार से बचाने के लिए समुदाय की भागीदारी जरूरी है। सामाजिक संगठनों और एनजीओ के माध्यम से उनके लिए सहायता समूह बनाए जा सकते हैं, जैसे कि यूके की WAY Widowed and Young, जो विधवाओं को भावनात्मक समर्थन प्रदान करता है।
स्वास्थ्य और कल्याण: विधवाओं को स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य सहायता, तक पहुंच प्रदान की जानी चाहिए। योग, ध्यान, और सामुदायिक गतिविधियां उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती हैं।

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सांस्कृतिक बदलाव: विधवाओं को अशुभ मानने जैसी रूढ़ियों को तोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। रंगीन कपड़े पहनने, सामाजिक आयोजनों में भाग लेने, और पुनर्विवाह के लिए प्रोत्साहन देना उनके जीवन में रंग भर सकता है।

सामाजिक और सरकारी पहल: सरकारों को विधवाओं के लिए पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, और आवास योजनाओं को लागू करना चाहिए। लूम्बा फाउंडेशन जैसे संगठन विधवाओं के बच्चों की शिक्षा और आजीविका के लिए काम कर रहे हैं, जिसे बढ़ावा देना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस विधवाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने और उनके जीवन में रंग भरने का अवसर है। शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, कानूनी जागरूकता, और सामाजिक समर्थन के माध्यम से उनकी बेरंग जिंदगी को खुशहाल और सशक्त बनाया जा सकता है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि विधवाएं समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और उन्हें समान सम्मान और अवसर मिलने चाहिए।

क्या हैं विधवा संरक्षण विधायक:

"विधवा संरक्षण विधायक" संक्षेप में "विधवा संरक्षण बिल" हो सकता है। यह एक कानून होता है जो विधवाओं की संरक्षा और अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बनाया जाता है। इस विधायक में विधवाओं के लिए संरक्षा के उपाय, विधवा पेंशन, संबंधित कानूनी प्रावधान, उचित संवेदनशीलता और अन्य मुद्दों का प्रावधान होता है। इसका मकसद विधवा महिलाओं की समस्याओं को हल करना और उन्हें सामाजिक न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है।

 Widows' Rights, Social Justice, Grief Counseling, Economic Empowerment, Awareness Campaign, Humanitarian Cause

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