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ईरान-इजरायल के बीच फंसी डिप्लोमैसी की डोर! तेल - ट्रेड और तटस्थता - तीनों को एक साथ साधेगा भारत?

भारत की विदेश नीति में इजरायल (सामरिक) और ईरान (ऊर्जा) संतुलन की चुनौती है। यह लेख पड़ताल करता है कि भारत दोनों देशों से कैसे रिश्ते साधता है, और क्या होगा अगर उसे एक को चुनना पड़े। इसमें रक्षा, ऊर्जा, और कूटनीति पर विस्तार से चर्चा की गई है।

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Ajit Kumar Pandey
ईरान-इजरायल के बीच फंसी डिप्लोमैसी की डोर! तेल — ट्रेड और तटस्थता — तीनों को एक साथ साधेगा भारत? | यंग भारत न्यूज

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारत की विदेश नीति हमेशा से ही कूटनीतिक संतुलन की कला रही है, लेकिन जब बात इजरायल और ईरान जैसे दो ध्रुवों की आती है, तो यह संतुलन एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं लगता। एक ओर जहां इजरायल भारत के लिए सामरिक और रक्षा साझेदारी का महत्वपूर्ण केंद्र है, तो वहीं दूसरी ओर ईरान हमारी ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ है। ऐसे में, यदि कभी ऐसा वक्त आया जब नई दिल्ली को इनमें से किसी एक को चुनना पड़े, तो यह फैसला न केवल क्षेत्रीय भू-राजनीति बल्कि भारत के अपने भविष्य पर भी गहरा असर डालेगा। आइए, इस जटिल पहेली को सुलझाने की कोशिश करते हैं कि कैसे भारत इन दोनों के साथ अपने रिश्तों को साधता है और क्या होगा अगर उसे इनमें से एक को चुनना पड़े?

इजरायल: भारत का सामरिक मित्र और तकनीक का खजाना

इजरायल, जिसे अक्सर पश्चिम एशिया का एक छोटा लेकिन शक्तिशाली देश कहा जाता है, भारत के लिए सिर्फ एक मित्र नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सामरिक भागीदार बन चुका है। दशकों से चले आ रहे संबंधों में, खासकर पिछले कुछ वर्षों में, अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखने को मिली है। दोनों देशों के बीच रक्षा, कृषि, जल प्रबंधन और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में गहरी साझेदारी है।

रक्षा संबंध: भारत, इजरायल से हथियारों और रक्षा प्रौद्योगिकियों का एक बड़ा आयातक है। पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, बराक-8 मिसाइल सिस्टम, फाल्कन अवाक्स (AWACS) और ड्रोन जैसी प्रणालियों से भारतीय सेना की ताकत बढ़ा रही हैं। इजरायली तकनीक, विशेष रूप से उसकी सटीकता और युद्ध-सिद्ध प्रदर्शन के लिए जानी जाती हैं। इससे भारतीय सुरक्षा को नई धार मिली है।

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यह साझेदारी केवल खरीद-फरोख्त तक सीमित नहीं है, बल्कि संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी जोर दिया जा रहा है। इसका एक बड़ा उदाहरण भारत में 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत इजरायली रक्षा प्रणालियों का उत्पादन हो रहा है। यह भारत की आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को भी पूरा करता है।

कृषि और जल प्रबंधन: इजरायल की ड्रिप सिंचाई और शुष्क भूमि कृषि तकनीकें भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए वरदान साबित हुई हैं। जल संरक्षण की उसकी विशेषज्ञता से भारत के किसानों को काफी लाभ हुआ है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी एक बड़ी समस्या है। दोनों देशों के बीच कई कृषि उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं, जहां भारतीय किसानों को नवीनतम तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

तकनीक: इजरायल को अक्सर 'स्टार्टअप नेशन' कहा जाता है। भारत और इजरायल के बीच तकनीक और नवाचार के क्षेत्र में भी गहरा सहयोग है। साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। भारतीय आईटी कंपनियां इजरायल के साथ मिलकर नए समाधान विकसित कर रही हैं, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ मिल रहा है।

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सामरिक महत्व: चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से बढ़ती चुनौतियों के बीच, इजरायल भारत के लिए सबसे अधिक विश्वसनीय भागीदार के रूप में उभरा है। इसकी खुफिया जानकारी साझा करने की क्षमता और आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख भारत की सुरक्षा चिंताओं से मेल खाता है। पाकिस्तान की भारत के विरूद्ध आतंकी गतिविधियों और प्रशांत-हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इजरायल के साथ संबंध भारत की "एक्ट वेस्ट" नीति के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

ईरान-इजरायल के बीच फंसी डिप्लोमैसी की डोर! तेल — ट्रेड और तटस्थता — तीनों को एक साथ साधेगा भारत? | यंग भारत न्यूज
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ईरान: भारत की ऊर्जा Lifeline और क्षेत्रीय संपर्क का द्वार

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दूसरी ओर, ईरान मध्य पूर्व का एक और महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, जिसके साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं। भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए ईरान का महत्व अद्वितीय है, और यह मध्य एशिया व अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए एक रणनीतिक गलियारा भी प्रदान करता है।

ऊर्जा सुरक्षा: ऐतिहासिक रूप से ईरान भारत के लिए कच्चे तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। हालांकि अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण हाल के वर्षों में यह आयात काफी कम हुआ है, लेकिन भारत हमेशा से ईरान को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए एक विश्वसनीय स्रोत मानता रहा है। ईरान के पास दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस भंडार में से एक हैं, और भारत को अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए इन संसाधनों की आवश्यकता है। ऊर्जा विविधीकरण की दृष्टि से भी ईरान भारत के लिए महत्वपूर्ण है।

चाबहार बंदरगाह: ईरान में चाबहार बंदरगाह भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व रखता है। यह भारत को पाकिस्तान के रास्ते को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक सीधे पहुंच प्रदान करता है। यह बंदरगाह भारत के लिए व्यापार और कनेक्टिविटी का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के संदर्भ में, जो भारत को रूस और यूरोप से जोड़ता है। चाबहार बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और व्यापारिक गतिविधियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मार्ग प्रदान करता है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: भारत और ईरान के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं। दोनों देशों ने अतीत में व्यापार, दर्शन और कला के क्षेत्र में एक-दूसरे को प्रभावित किया है। यह गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में मदद करता है।

क्षेत्रीय स्थिरता: ईरान क्षेत्रीय स्थिरता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए ईरान का सहयोग महत्वपूर्ण है। भारत, अफगानिस्तान में शांति और पुनर्निर्माण प्रयासों में ईरान के साथ सहयोग करना चाहता है, क्योंकि यह भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय हितों के लिए महत्वपूर्ण है।

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भारत की दुविधा: किसे चुनेगा अपना साथी?

यह कल्पना करना भी कठिन है कि भारत को इजरायल या ईरान में से किसी एक को चुनने के लिए मजबूर किया जाए। भारत की विदेश नीति हमेशा गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित रही है। नई दिल्ली का प्रयास रहा है कि वह किसी एक ब्लॉक का हिस्सा न बने और सभी देशों के साथ अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर संबंध बनाए रखे।

इजरायल और ईरान के बीच गहरा वैमनस्य जगजाहिर है और काफी पुराना भी। दोनों एक-दूसरे को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं। इस स्थिति में, भारत के लिए दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना एक मुश्किल संतुलन है। अमेरिका के ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारत की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को भी ध्यान में रखना होता है, जो इजरायल का एक प्रमुख सहयोगी है।

पूर्व सैन्य अधिकारी का दृष्टिकोण

इस मुद्दे पर एक पूर्व सैन्य अधिकारी कर्नल अशोक कुमार पाण्डेय से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि, "भारत के लिए यह एक 'असंभव विकल्प' होगा। हमारे सामरिक हित इजरायल के साथ गहरे जुड़े हैं, जबकि हमारी ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी ईरान पर निर्भर करती है। किसी एक को चुनना देश के व्यापक हितों के लिए घातक साबित हो सकता है।

भारत को अपनी कुशल कूटनीति के जरिए इस नाजुक संतुलन को बनाए रखना होगा। हमें दोनों देशों को यह समझाना होगा कि हमारे संबंध उनके खिलाफ नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय हितों के लिए हैं। भारत की प्राथमिकता हमेशा अपने आर्थिक विकास और सुरक्षा को बनाए रखना है, और दोनों देशों के साथ मजबूत संबंध इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हैं।"

भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि उसके इजरायल के साथ मजबूत संबंध ईरान के साथ उसके संबंधों को प्रभावित न करें, और इसके विपरीत भी। यह एक नाजुक किया है जिसमें भारत को अक्सर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सावधानी बरतनी पड़ती है। भारत संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करता है। इसी तरह भारत, ईरान के साथ अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को अमेरिका के दबाव के बावजूद बनाए रखने की कोशिश करता है, हालांकि आयात में कमी आई है।

आगे का रास्ता: कूटनीति ही एकमात्र सहारा

भविष्य में, भारत को अपनी कूटनीतिक कौशल का और अधिक उपयोग करना होगा ताकि वह इजरायल और ईरान दोनों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर सके।

बातचीत और विश्वास निर्माण: भारत को दोनों देशों के साथ निरंतर बातचीत जारी रखनी चाहिए और उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहिए कि भारत की नीतियां किसी एक के खिलाफ नहीं हैं।

बहु-आयामी संबंध: भारत को केवल रक्षा या ऊर्जा तक सीमित न रहकर, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन जैसे अन्य क्षेत्रों में भी संबंधों को विस्तारित करना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भूमिका: भारत को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक जिम्मेदार और संतुलित भूमिका निभानी चाहिए, जिससे उसे दोनों पक्षों का विश्वास जीतने में मदद मिले।

आत्मनिर्भरता: अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं और रक्षा उपकरणों के लिए किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिए भारत को आत्मनिर्भरता पर और अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे उसे भविष्य में किसी भी तरह के दबाव से निपटने में मदद मिलेगी।

यह स्पष्ट है कि भारत के लिए इजरायल और ईरान दोनों ही अपरिहार्य हैं। एक सामरिक सुरक्षा प्रदान करता है तो दूसरा ऊर्जा और कनेक्टिविटी। भारत की कुशलता इसी में है कि वह इस जटिल समीकरण को सुलझाते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखे। आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात पर अपनी चालें कैसे चलता है।

क्या आपको लगता है कि भारत को कभी इस तरह का कठिन चुनाव करना पड़ सकता है? आपकी राय में, भारत को इस नाजुक संतुलन को कैसे बनाए रखना चाहिए? नीचे कमेंट्स में अपनी बहुमूल्य राय ज़रूर दें!

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