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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।ईरान पर अमेरिका और इजरायल के हमले के बाद सोमवार को तेल की कीमतें इस साल जनवरी के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं हैं। साथ ही ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दे डाली है, इसके माध्यम से ही वैश्विक कच्चे तेल की आपूर्ति का लगभग 20 प्रतिशत प्रवाह होता है। माना जा रहा है कि ईरान पर हमले की असली वजह तेल है, क्योंकि मध्य पूर्व में तेल वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक मुख्य कारक है, और ईरान इस क्षेत्र का एक प्रमुख तेल उत्पादक है। अमेरिका को इस बात की चिढ़ है कि वर्ष 2018 में प्रतिबंधों के बाद भी ईरान ने "ग्रे मार्केट" के जरिए तेल बेचना जारी रखा है। इसका अधिकांश तेल चीन, भारत, और अन्य एशियाई देशों को रियायती दरों पर बेचा जाता है। यदि यह लड़ाई लंबी चलती है तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा।
ईरान के पास 267 बिलियन बैरल तेल का भंडार
बतातें चले कि ईरान के पास 267 बिलियन बैरल से अधिक का तेल भंडार है, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है। इसके अलावा, साउथ पार्स गैस फील्ड दुनिया का सबसे बड़ा गैस क्षेत्र है, जो प्रतिदिन 1.2 करोड़ क्यूबिक मीटर गैस उत्पादन करता हैं। ईरान 90% तेल का निर्यात खरग द्वीप टर्मिनल के माध्यम करता है। हालांकि वर्ष 2018 में अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद, ईरान का तेल निर्यात 25 लाख बैरल प्रतिदिन से घटकर 5-10 लाख बैरल प्रतिदिन रह गया था। हाल के दिनों में उसके निर्यात में काफी तेजी से वृद्धि हुई, जो अमेरिका को रास नहीं आ रही है।क्योंकि अमेरिकी प्रशासन जानता है कि ईरान वैश्विक तेल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, लेकिन प्रतिबंधों ने इसके निर्यात को सीमित किया है।
प्रतिदिन 33 लाख का तेल का उत्पादन
जानकारों का कहना है कि ईरान प्रतिदिन लगभग 33 लाख बैरल तेल उत्पादन करता है, जो वैश्विक आपूर्ति का 3.5% है, और इसके तेल ठिकानों पर हमले वैश्विक ऊर्जा बाजार को अस्थिर कर सकते हैं। यह इसे ओपेक (OPEC) के शीर्ष उत्पादकों में से एक बनाता है, हालांकि सऊदी अरब (1.27 करोड़ बैरल प्रतिदिन) और रूस जैसे देशों से पीछे है। ईरान और इजरायल के बीच हाल के सैन्य टकराव ने वैश्विक स्तर पर इस चर्चा को जन्म दिया है, खासकर यह सवाल कि क्या इन हमलों की असली वजह तेल है, इसका यह जवाब है कि इन हमलों की वजह तेल भी है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इसके पीछे सशक्त हथियार लॉबी भी सक्रिय है, जो तनाव और युद्ध के हालात पैदा करके हथियार सप्लाई करने की ताक में है। वैसे, भी भारत वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा हथियार खरीदार के तौर पर उभरा है। ईरान, पाकिस्तान भी इसी कतार में हैं।
सऊदी अरब और यूएई पर बढ़ेगी निर्भरता
ईरानी सप्लाई रुकने की स्थिति में दुनिया की निर्भरता सऊदी अरब और UAE पर बढ़ जाएगी। अनुमान है कि दोनों 30 से 40 लाख बैरल अतिरिक्त क्रूड ऑयल का प्रतिदिन उत्पादन कर सकते हैं। सऊदी अरब दुनिया का एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है। साल 2024 में सऊदी अरामको का तेल उत्पादन 12.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन था। सऊदी अरब के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है, जो 267 बिलियन बैरल से अधिक है। पूर्ण युद्ध की स्थिति में ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) को बंद कर सकता है। इससे होकर दुनिया की 20% नेचुरल गैस और एक तिहाई तेल ट्रांसपोर्ट होता है। यह रूट बाधित हुआ तो कच्चे तेल में 20% तक उछाल आ सकता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ICRA के अनुसार इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई से आने वाला कच्चा तेल, जो होर्मुज से होकर गुजरता है, भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का लगभग 45-50% है।
क्या होगा यदि होर्मुज जलडमरूमध्य बंद हो गया
यह जलमार्ग वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 20-30% ढोता है। ईरान ने कई बार इस जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है, खासकर जब उस पर सैन्य या आर्थिक दबाव बढ़ता है। यदि ईरान इस जलमार्ग को बंद करता है, तो तेल की कीमतें 100-120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं, जिसका असर भारत जैसे आयात-निर्भर देशों पर गंभीर होगा। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान का तेल निर्यात पहले ही सीमित है। इजरायल के हमले, जैसे कि साउथ पार्स गैस फील्ड या शाहरन ऑयल फील्ड पर, ईरान की अर्थव्यवस्था को और कमजोर करने का प्रयास हो सकते हैं। इजरायल और अमेरिका, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए सक्रिय हैं, यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ईरान तेल निर्यात से प्राप्त राजस्व का उपयोग सैन्य या परमाणु गतिविधियों के लिए न कर सके।
इसका भारत पर पड़ेगा गहरा असर
इस संघर्ष का भारत जैसे देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि भारत अपनी 80% से अधिक ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। तेल की कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति में व्यवधान भारत के व्यापार घाटे और मुद्रास्फीति को बढ़ा सकते हैं। हालांकि केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ईरान के परमाणु स्थलों पर अमेरिकी बमबारी के कारण मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं को तेल आपूर्ति में बाधा की आशंकाओं को दूर किया है। उन्होंने कहा, "हम पिछले दो हफ्तों से मध्य पूर्व में विकसित हो रही भू-राजनीतिक स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम पिछले कुछ वर्षों में अपनी आपूर्ति में विविधता लाए हैं और अब हमारी आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य से नहीं आता है।"
आने वाले दिनों में और बढेंगी कीमतें
ईरान की आपूर्ति में किसी भी व्यवधान से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। उदाहरण के लिए, इजरायल के हमलों के बाद ब्रेंट क्रूड की कीमत 73.96 डॉलर से बढ़कर 78.93 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं। यदि होर्मुज जलडमरूमध्य बंद होता है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति का 15-20% प्रभावित हो सकता है, जिससे कीमतें 100-130 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ब्रेंट क्रूड फ्यूचर 1.92 डॉलर या 2.49 प्रतिशत बढ़कर 78.93 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 1.89 डॉलर या 2.56 प्रतिशत बढ़कर 75.73 डॉलर पर पहुंच गया। ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 5 प्रतिशत तक की तेजी आई। हालांकि, कीमतें उन स्तरों पर टिक नहीं पाईं और लगभग तुरंत ही शुरुआती बढ़त कम हो गई। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिकी भंडार में उम्मीद से अधिक गिरावट के बीच कच्चे तेल की कीमतों में लगातार तीसरे सप्ताह तेजी जारी रही।
इजरायल-ईरान युद्ध से बाजार चिंतित
इजरायल और ईरान के बीच चल रही शत्रुता ने मध्य पूर्व में आपूर्ति से जुड़ी चिंताओं को बढ़ा दिया है, जो वैश्विक तेल निर्यात के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यूएस एनर्जी इंफोर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (ईआईए) के अनुसार, पिछले सप्ताह कच्चे तेल के भंडार में 11.5 मिलियन बैरल की गिरावट आई, जो अनुमानित 2.3 मिलियन बैरल की गिरावट से काफी अधिक है। मेहता इक्विटीज लिमिटेड के उपाध्यक्ष कमोडिटीज राहुल कलंत्री ने कहा, "आज के सत्र में कच्चे तेल को 74.20-73.40 डॉलर पर समर्थन और 75.65-76.20 डॉलर पर प्रतिरोध देखने को मिल रहा है। रुपए के संदर्भ में, कच्चे तेल को 6,400-6,320 रुपए पर समर्थन मिल रहा है, जबकि प्रतिरोध 6,580-6,690 रुपए पर है।" भले ही होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने की संभावना एक खतरा है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह हमेशा से केवल एक खतरा रहा है और जलडमरूमध्य कभी बंद नहीं हुआ। जियोजित इन्वेस्टमेंट लिमिटेड के मुख्य निवेश रणनीतिकार वीके विजयकुमार ने कहा, "सच तो यह है कि होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से ईरान और ईरान के मित्र चीन को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।" Isreal | india iran | india iran relations | iran israel | Iran Israel conflict 2025 | iran israel conflict update | iran missile attack on israel | iran retaliation