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IT और GST अधिकारी व्यापारियों के साथ कर रहे चोरों जैसा व्यवहार: SC जस्टिस मनमोहन

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन ने साफ कहा कि 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा करने के लिए हमें अपनी कानूनी व्यवस्था बदलनी होगी। उन्होंने कहा, "टैक्स और जीएसटी अधिकारी धन पैदा करने वालों को चोर समझते हैं, और यह सोच देश की प्रगति में सबसे बड़ी रुकावट है।"

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Ajit Kumar Pandey
IT और GST अधिकारी व्यापारियों के साथ चोरों जैसा व्यवहार कर रहे हैं: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन का बड़ा आरोप | यंग भारत न्यूज

IT और GST अधिकारी व्यापारियों के साथ कर रहे चोरों जैसा व्यवहार: SC जस्टिस मनमोहन | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।क्या भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बन पाएगा? सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस मनमोहन ने एक कार्यक्रम में कहा कि जब तक हम अपने कानूनों को नहीं बदलते, ये लक्ष्य अधूरा रह जाएगा। उन्होंने कहा, टैक्स और जीएसटी अधिकारी धन पैदा करने वालों को चोर मानते हैं और यह मानसिकता देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है।

कानूनी वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन ने साफ कहा है कि अगर हमें विकसित भारत बनना है तो अपनी कानूनी और नियामक प्रणालियों को पूरी तरह से बदलना होगा। उनका सीधा निशाना इनकम टैक्स और जीएसटी अधिकारियों के रवैये पर था जो धन पैदा करने वालों को "चोर" की तरह देखते हैं।

जस्टिस मनमोहन ने न्याय निर्माण 2025 नामक एक संवाद कार्यक्रम में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, "जब कोई अधिकारी देश के लिए धन पैदा करने वाले व्यक्ति से मिलता है तो वह उसे चोर की तरह देखता है। उनकी मानसिकता होती है कि अगर कोई अमीर बन रहा है तो कुछ तो गड़बड़ है।" उनका मानना है कि यह सोच हमारे विकास की राह में सबसे बड़ी रुकावट है। उन्होंने इस पूरी सोच को बदलने की अपील की।

कानून जो आम आदमी की समझ से परे

जस्टिस मनमोहन ने देश के कानूनों को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, "क्या आप सोच सकते हैं कि 500 पन्नों का इनकम टैक्स एक्ट हो, जिसमें एक ही प्रावधान पांच-पांच पन्नों तक फैला हो?" उन्होंने कहा कि इन कानूनों को समझना आम आदमी के बस की बात नहीं है, सिर्फ कोई जीनियस ही इसे समझ सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर हमें भविष्य की अर्थव्यवस्था बनना है तो कानूनों को सरल और स्पष्ट बनाना होगा।

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जस्टिस मेनमोहन ने कुछ अहम बिंदुओं पर भी ध्यान दिलाया...

पुराने कानून, डिजिटल दुनिया: आज की अर्थव्यवस्था डिजिटल हो चुकी है, लेकिन हमारे कानून अभी भी पुरानी, ईंट-और-गारे वाली दुनिया के हिसाब से बने हैं।

अदालतों पर बोझ: न्यायाधीशों को बिना उचित कानूनी मार्गदर्शन के नए मामलों, जैसे डेटा संप्रभुता और जलवायु न्याय, से जूझना पड़ रहा है।

मध्यस्थता की कमी: सरकार, जो खुद सबसे बड़ी मुकदमों की पार्टी है, विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का उपयोग नहीं करती।

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"जेम्स बॉन्ड की फिल्म जैसी मुकदमों की कहानी"

जस्टिस मनमोहन ने एक दिलचस्प उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि कई मुकदमे जेम्स बॉन्ड की फिल्म की तरह होते हैं – न तो नायक मरता है और न ही खलनायक, बस कहानी आगे बढ़ती रहती है। उन्होंने कहा कि ईमानदार अधिकारी भी निपटारे से डरते हैं क्योंकि उन्हें बाद में जांच का डर रहता है। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां एक फोन कॉल पर टैक्स विवाद सुलझ जाते हैं, क्या हम भारत में इसकी कल्पना भी कर सकते हैं?

एक अन्य अहम बात सुप्रीम कोर्ट के एक और जज जस्टिस पंकज मित्तल ने कही। उन्होंने कहा कि संसद में बिल बिना किसी चर्चा और बहस के पारित हो जाते हैं। उन्होंने इस प्रक्रिया पर चिंता जताई और कहा कि एक अच्छे कानून के लिए हर वाक्य और हर अल्पविराम पर बहस होनी चाहिए। उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली पर भी बात की और कहा कि यह अच्छी नीयत से आई थी, लेकिन अगर इसमें कुछ कमी है तो उसे बदलना भी जरूरी है।

जस्टिस मनमोहन ने अपने भाषण का सार बताते हुए कहा कि हमें कानून, व्यवस्था और शासन को पूरी तरह से फिर से गढ़ना होगा। 2047 का भारत वो होना चाहिए, जहां कानून सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण हों, जहां अदालतें डराने वाली नहीं, बल्कि सुलभ हों और जहां शासन पारदर्शी हो। यह सिर्फ सुधार का नहीं बल्कि आमूल-चूल बदलाव का समय है।

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