वक्फ संशोधन एक्ट 2025 को लेकर विरोधी पक्ष को सबसे बड़ी आपत्ति ये है कि मोदी सरकार नए एक्ट में गैर मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल कराने जा रही है। पहले के सीजेआई संजीव खन्ना को भी ये बात नागवार गुजरी थी। लेकिन सरकार अभी भी मानती है कि इसमें कुछ गलत नहीं है। उसने सुप्रीम कोर्ट को इसकी वजह भी बताई।
वक्फ बोर्ड का धार्मिक गतिविधि से सरोकार नहीं
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है। लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जब तक यह साबित नहीं होता, अन्य तर्क विफल हो जाते हैं। दान हर धर्म का हिस्सा है। उनका तर्क था कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के तहत यह सुनिश्चित करना होता है कि लेखा-जोखा सही है। इसके तहत खातों का ऑडिट किया जाता है। ये काम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं। अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने से - क्या इससे वक्फ बोर्ड का कोई चरित्र बदल जाएगा? एसजी ने तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड का धार्मिक गतिविधि से लेनादेना नहीं है।
हिंदू ट्रस्टों के मामले में एसजी ने दिया ये तर्क
एसजी ने वक्फ, हिंदू ट्रस्ट और बंदोबस्ती बोर्ड के बीच के उस अंतर को बताया जो गैर-हिंदुओं को अपने सदस्यों के रूप में अनुमति नहीं देते हैं। एसजी ने कहा कि हिंदू बंदोबस्ती केवल धार्मिक गतिविधियों से संबंधित है जबकि वक्फ धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों से संबंधित है। हिंदू बंदोबस्ती गतिविधियां बहुत व्यापक हैं। हिंदू बंदोबस्ती आयुक्त मंदिर के अंदर जा सकते हैं। पुजारी का फैसला राज्य सरकार करती है। दूसरी तरफ वक्फ बोर्ड धार्मिक गतिविधियों के आसपास भी नहीं फटकता है।
वक्फ संशोधन एक्ट को लोकसभा ने 3 अप्रैल को पारित किया था, जबकि राज्यसभा ने इसे 4 अप्रैल को मंजूरी दी थी। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। इस नए कानून ने वक्फ एक्ट 1995 में संशोधन किया है। संशोधन की वैधता को कई याचिकाओं के जरिये शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थीं। इनमें कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल थे। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि संशोधन मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव है। Indian Judiciary | bill on waqf board | anti waqf bill protest | amendment in waqf boar