Advertisment

Supreme Court के आदेश को नहीं मान रहे थे जेलर, पड़ गए लेने के देने

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल 5 लाख का जुर्माना जेलर पर लगाया बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को आदेश देकर उसके खिलाफ जांच भी बिठा दी। माना जा रहा है कि जांच रिपोर्ट आते ही जेलर साहब नौकरी से भी बाहर जाएंगे।

author-image
Shailendra Gautam
supreme court

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट का आदेश सबसे ऊपर माना जाता है। सरकार भी इसको अनदेखा करने से डरती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के जेलर ने ये हिमाकत कर डाली। अब आलम ये है कि जेलर साहब जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं पर कोई मदद को नहीं आगे आ रहा। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल 5 लाख का जुर्माना जेलर पर लगाया बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को आदेश देकर उसके खिलाफ जांच भी बिठा दी। माना जा रहा है कि जांच रिपोर्ट आते ही जेलर साहब नौकरी से भी बाहर जाएंगे। हालांकि उन्होंने जो हिमाकत की वो काफी बढ़ी थी। शीर्ष न्यायालय द्वारा जमानत दिए गए आरोपी को जेलर ने जेल से रिहा नहीं किया था। तीन महीनों तक वो टाप कोर्ट के आर्डर को ठंडे बस्ते में डाले रहे।

Advertisment

सुप्रीम कोर्ट ने आफताब को दी थी जमानत, जेलर ने नहीं किया रिहा

आरोपी आफताब पर आईपीसी की धारा 366 और धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5 के तहत मामला दर्ज है। जेलर ने उसे इस कथित कारण से रिहा करने से मना कर दिया था कि 2021 अधिनियम की धारा 5 के खंड (1) का उल्लेख जमानत आदेश में नहीं किया गया था। आरोपी को इस वजह से फिर से शीर्ष न्यायालय का रुख करना पड़ा।

आफताब के मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट की नजर पड़ी तो जज आग बबूला हो गए। अदालत ने कहा कि यह न्याय का उपहास है कि आदेश में उपधारा का उल्लेख न होने के आधार पर आरोपी को सलाखों के पीछे रखा गया। हालांकि जजों की सख्त टिप्पणी के बाद आफताब को मंगलवार को ही जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस चूक को बेहद गंभीरता से लिया। उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने दलील दी कि डीजी जेल ने मेरठ रेंज के डीआईजी को मामले की जांच का जिम्मा दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने मामले की न्यायिक जांच का आदेश दे डाला। जेल अधिकारियों के आचरण पर अपनी खेद व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह स्वतंत्रता का मामला है और अदालत जानना चाहेगी कि जमानत के बावजूद व्यक्ति को हिरासत में क्यों रखा गया।

Advertisment

कोर्ट बोली- अब व्यक्तिगत स्तर पर होगा एक्शन

अदालत ने कहा कि यदि अभियुक्तों को रिहा न करने के पीछे कोई स्वार्थ है तो वह आवश्यक दंड सुनिश्चित करेगा। न्यायालय ने कहा कि हमें जांच रिपोर्ट देखनी चाहिए। अगर किसी को दोषी ठहराया जाता है तो हम व्यक्तिगत स्तर पर एक्शन लेंगे। अगर जेलर इसमें शामिल है तो जुर्माने का भुगतान अधिकारी को स्वयं करना होगा। न्यायालय ने कहा कि यूपी सरकार अभियुक्तों को मुआवजा दे। फिर कोर्ट ने उस अधिकारी के बारे में पूछा जो राशि का भुगतान करेगा। अदालत ने कहा कि अब कौन भुगतान करेगा यह जांच रिपोर्ट पर निर्भर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी प्रावधान के बारे में सवाल किया, जिसमें कहा गया है कि जेल अधिकारी किसी व्यक्ति को केवल इसलिए जेल में रख सकते हैं, क्योंकि जमानत आदेश में उप-धारा का उल्लेख नहीं किया गया है। सबसे बड़ी अदालत का सवाल था कि जेलर ऐसा कैसे कर सकते हैं। 

जुलाई 2024 में आफताब को हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। आफताब की दलील थी कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। उस पर आरोप है कि उसने एक लड़की से जबरन शादी की थी। शादी से पहले लड़की का धर्म परिवर्तन भी कराया गया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद आफताब सुप्रीम कोर्ट गया था, वहां से उसे अप्रैल में जमानत मिल गई थी।  : judiciary of india | Judiciary | Indian Judiciary not present in content

Advertisment

Supreme Court, Allahabad High Court, Ghaziabad Jail, Jailer, Chief Justice of High Court

Judiciary Indian Judiciary judiciary of india
Advertisment
Advertisment