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Japan की पहली महिला PM साने तकाईची, क्या है India के लिए 'गोल्डन चांस'? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । जापान को पहली महिला प्रधानमंत्री साने तकाईची मिली हैं। उनकी जीत भारत के लिए एक 'गोल्डन चांस' लेकर आई है, खासकर उद्योग, रोजगार और रक्षा साझेदारी में। चीन विरोधी सख्त रुख और शिंजो आबे की करीबी होने के नाते, तकाईची भारत के साथ आर्थिक सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक में सहयोग को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर ले जा सकती हैं।
जापान में इतिहास रचते हुए लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी LDP की फायरब्रांड नेता साने तकाईची Sanae Takaichi देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनकर उभरी हैं।
निचले सदन में 237 वोटों से ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली 64 वर्षीय तकाईची, अब सम्राट से मुलाकात के बाद आधिकारिक तौर पर पद संभालेंगी। यह बदलाव सिर्फ जापान के लिए नहीं, बल्कि भारत के लिए भी एक नए युग की शुरुआत का संकेत है, जिसे विशेषज्ञ 'आर्थिक और सामरिक सहयोग का गोल्डन चांस' बता रहे हैं।
सवाल यह है कि एक महिला प्रधानमंत्री के आने से भारत-जापान के दशकों पुराने रिश्ते में क्या नया मोड़ आएगा? जवाब साफ़ है 3 बड़े कारण हैं जो बताते हैं कि तकाईची की लीडरशिप भारत के लिए क्यों फायदेमंद है।
कारण 1: 'आर्थिक सुरक्षा' का कवच और सप्लाई चेन में भारत की एंट्री
तकाईची अपनी पहचान एक ऐसी नेता के तौर पर बनाती हैं जो जापान की आर्थिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती हैं। उनका स्पष्ट मानना है कि जापान को अपनी महत्वपूर्ण तकनीकी और औद्योगिक क्षमताओं को चीन के बढ़ते प्रभाव से बचाना होगा। यही वह बिंदु है जहां भारत, जापान के सबसे भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभरता है।
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अहमदाबाद से टोक्यो तक का नया औद्योगिक कॉरिडोर
जापान में दशकों से चली आ रही आर्थिक सुस्ती और चीन के साथ बढ़ते तनाव ने जापानी कंपनियों को एक नया, विश्वसनीय ठिकाना खोजने पर मजबूर किया है। भारत, अपने बड़े बाज़ार और युवा वर्कफ़ोर्स के साथ, जापान की इस 'डी-रिस्किंग' जोखिम कम करने की रणनीति के लिए सबसे उपयुक्त है।
तकाईची की नीति का मुख्य जोर सप्लाई चेन को चीन से हटाकर 'भरोसेमंद मित्र देशों' की ओर ले जाना है। इस लिस्ट में भारत सबसे ऊपर है। इसका सीधा मतलब है सेमीकंडक्टर और रेयर अर्थ। तकाईची के नेतृत्व में सेमीकंडक्टर निर्माण, रेयर अर्थ मिनरल्स की आपूर्ति श्रृंखला और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस AI इंफ्रास्ट्रक्चर में द्विपक्षीय समझौते तेजी से होंगे। भारत इन क्षेत्रों में जापान की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है।
विनिर्माण Manufacturing बूम
कार, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी के पुर्जों के लिए जापानी कंपनियों का निवेश भारत में बढ़ेगा। इससे मेक इन इंडिया को बड़ी मजबूती मिलेगी और देश में 'उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन PLI' योजनाओं को बड़ा पुश मिलेगा।
डिजिटल पार्टनरशिप: 0 क्वांटम कंप्यूटिंग, AI, रोबोटिक्स और न्यूक्लियर फ्यूजन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में सहयोग के लिए डिजिटल पार्टनरशिप। यह भविष्य की टेक्नोलॉजी में भारत की स्थिति को मज़बूत करेगा।
कारण 2: 'चीन विरोधी' गठबंधन और इंडो-पैसिफिक में सामरिक साझेदारी
साने तकाईची पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की करीबी मानी जाती हैं। शिंजो आबे के कार्यकाल में भारत-जापान संबंध अपने चरम पर पहुंचे थे। तकाईची भी उसी 'कड़े रुख' वाली विदेश नीति का अनुसरण करती हैं। उनका चीन को लेकर स्पष्ट और सख्त रुख भारत के सामरिक हितों के साथ पूरी तरह मेल खाता है।
एक जैसी सोच, मज़बूत मोर्चेबंदी: भारत और जापान दोनों ही चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और क्षेत्रीय विस्तारवाद को एक जैसी नज़र से देखते हैं। ताईवान, पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता पर तकाईची का रुख बेहद सख्त है।
क्वॉड Quad की क्षमता: तकाईची इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जापान की सेल्फ-डिफेंस फोर्सेस की भूमिका को बढ़ाना चाहती हैं और क्वॉड भारत, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया की क्षमताओं को मजबूत करने की समर्थक हैं।
रक्षा प्रौद्योगिकी सह-विकास: भारत हमेशा से औपचारिक सैन्य गठबंधनों से दूर रहा है, लेकिन जापान के साथ रक्षा प्रौद्योगिकी के सह-विकास Co-development और समुद्री सुरक्षा जागरूकता में निवेश का स्वागत करेगा। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सुरक्षा और निगरानी क्षमता बढ़ेगी।
रणनीतिक मोर्चेबंदी: तकाईची का मानना है कि दोनों देशों को चीन की बढ़ती शक्ति का मिलकर मुकाबला करना चाहिए। यह भारत को पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता का सामना करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और टेक्नोलॉजी दोनों प्रदान कर सकता है।
तकाईची का यासुकुनी श्राइन जाना: जो युद्ध में मारे गए सैनिकों को सम्मानित करता है चीन और दक्षिण कोरिया को हमेशा खटकता है, लेकिन यह जापान की सेना को मजबूत करने और राष्ट्रीय गौरव को पुनर्स्थापित करने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।
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कारण 3: 'नौकरी और शिक्षा' का अभूतपूर्व उछाल
तकाईची के प्रधानमंत्री बनने से जो सबसे बड़ा और सीधा फायदा आम भारतीयों को मिलेगा, वह है रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में नए अवसर। यह लाभ दोनों देशों में दिखाई देगा।
भारत में बंपर रोज़गार के अवसर: जब जापानी कंपनियां चीन से निकलकर भारत में अपनी फैक्ट्रियां लगाएंगी, तो वह सिर्फ मशीनें नहीं लाएंगी, बल्कि हजारों-लाखों नौकरियां भी लाएंगी।
विनिर्माण और प्रौद्योगिकी: नई ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी फैक्ट्रीज़ में ब्लू-कॉलर श्रम और व्हाइट-कॉलर मैनेजमेंट/इंजीनियरिंग दोनों तरह के रोजगार पैदा होंगे।
भाषा विशेषज्ञता की मांग: जापानी कंपनियों के आने से जापानी भाषा जानने वाले युवाओं की मांग तेज़ी से बढ़ेगी। ये युवा भारत और जापान की टीमों के बीच 'कल्चरल और कम्युनिकेटिव ब्रिज' का काम करेंगे।
जापान में भारतीयों के लिए खुला द्वार
जापान में आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है। उन्हें कुशल विदेशी कर्मचारियों की भारी जरूरत है। तकाईची के कार्यकाल में भारत के साथ संबंधों के मजबूत होने से, जापान सरकार भारतीयों के लिए नौकरी के दरवाज़े और भी खोल सकती है।
कुशल श्रमिकों की मांग: आईटी, इंजीनियरिंग, एआई, रोबोटिक्स, साइबर सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में भारतीय पेशेवरों की मांग सबसे ज़्यादा है।
आसान वीजा: स्पेसिफिक स्किल्ड वर्कर SSW वीज़ा और इंजीनियर/स्पेशलिस्ट वीज़ा जैसे प्रोग्राम्स को भारतीयों के लिए और आसान बनाया जा सकता है। ये वीज़ा न सिर्फ लंबी अवधि की नौकरी, बल्कि परिवार को भी जापान ले जाने का अवसर देते हैं।
स्कॉलरशिप और रिसर्च: तकाईची की लीडरशिप में भारत-जापान शैक्षणिक और शोध सहयोग बढ़ेगा। सकुरा साइंस एक्सचेंज और LOTUS प्रोग्राम जैसी नई स्कॉलरशिप योजनाएं भारतीय छात्रों के लिए जापान में पढ़ाई और आधुनिक शोध जैसे क्वांटम कंप्यूटिंग के बेहतरीन अवसर पैदा करेंगी।
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आर्थिक सुरक्षा और डी-रिस्किंग: चीन से दूरी
जापान की नई सप्लाई चेन का भारत 'हब' बनेगा और बड़े पैमाने पर निवेश आएगा।
सामरिक: इंडो-पैसिफिक में सशक्त भूमिका और क्वाड को मजबूती।
रक्षा प्रौद्योगिकी का सह-विकास: चीन का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक गठबंधन मज़बूत होगा।
मानव संसाधन: कुशल विदेशी कर्मचारियों की आवश्यकता और तकनीकी सहयोग।
भारत में विनिर्माण रोजगार में वृद्धि: भारतीयों के लिए जापान में आसान नौकरी और शिक्षा के अवसर मिलेंगे।
भारत को इस मौके को कैसे भुनाना चाहिए? साने तकाईची का प्रधानमंत्री बनना महज एक राजनीतिक घटना नहीं है यह भारत के लिए एक रणनीतिक और आर्थिक अवसर है। तकाईची का चीन को लेकर सख्त रुख और शिंजो आबे के प्रति उनकी निष्ठा यह सुनिश्चित करती है कि भारत-जापान के संबंध न सिर्फ जारी रहेंगे, बल्कि और भी तेजी से आगे बढ़ेंगे।
भारत सरकार को चाहिए कि वह तेजी से जापानी निवेश के लिए लालफीताशाही को कम करे, जापानी कंपनियों के लिए ज़मीन और मंजूरी की प्रक्रिया को सिंगल-विंडो सिस्टम के तहत आसान बनाए। साथ ही, जापानी भाषा और तकनीकी कौशल के प्रशिक्षण को बढ़ावा दे ताकि भारतीय युवा इस 'गोल्डन चांस' को पूरी तरह भुना सकें।
यह स्पष्ट है कि तकाईची के नेतृत्व में, भारत और जापान 21वीं सदी के सबसे शक्तिशाली और विश्वसनीय एशियाई गठबंधनों में से एक बनने के लिए तैयार हैं।
Japan India Partnership | Indo Pacific Alliance | Make In India Boost | Global Supply Chain Shift