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Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः कानून मंत्रालय ने चुनाव आयोग की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने जम्मू-कश्मीर के सांसदों के राज्यसभा कार्यकाल को अलग-अलग करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश की मांग की थी। इन सीटों का वर्तमान कार्यकाल समान है और ये तकरीबन साढ़े चार साल से अधिक समय से खाली हैं।
कानून मंत्रालय ने खारिज की आयोग की मांग
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने 22 अगस्त को चुनाव आयोग को सूचित किया था कि कानून में इस तरह के आदेश का कोई प्रावधान नहीं है। जम्मू-कश्मीर के लिए इस तरह के कदम के लिए कानून में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। यह उन सभी राज्यों पर लागू होगा जहां राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल समय के साथ-साथ चलता रहा है।
2021 के बाद से राज्यसभा में नहीं है जम्मू-कश्मीर का सांसद
गुलाम नबी आजाद और नजीर अहमद लवे का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 15 फरवरी, 2021 से इस केंद्र शासित प्रदेश का संसद के उच्च सदन में प्रतिनिधित्व नहीं है। फयाज अहमद मीर और शमशीर सिंह मन्हास का कार्यकाल भी उसी वर्ष 10 फरवरी को समाप्त हो गया था। केंद्र शासित प्रदेश की चार सीटें खाली हैं क्योंकि चुनाव आयोग ने इन रिक्तियों को भरने के लिए अभी तक द्विवार्षिक चुनाव नहीं कराए हैं। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए लगभग 10 महीने बीत जाने के बावजूद राज्यसभा सांसदों के चुनाव नहीं कराए जा सके हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव में नहीं होगा सूबे का प्रतिनिधित्व
इन रिक्तियों का अर्थ यह भी है कि 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों में राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में भी यही स्थिति देखने को मिली। तब द्रौपदी मुर्मू विजयी हुई थीं।
उमर अब्दुल्ला ने जताई थी चिंता
पिछले महीने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्यसभा सीटों को भरने में देरी पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। अब्दुल्ला ने चुनाव आयोग से देरी के कारणों को स्पष्ट करने का आग्रह करते हुए कहा कि आज, हम स्थगन की मांग नहीं कर रहे हैं। हमारे विधानसभा के दो सत्र हो चुके हैं तो राज्यसभा चुनाव क्यों नहीं हुए? उन्होंने उच्च सदन में प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने संसद में राज्य के चार प्रमुख प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति पर दुख व्यक्त करते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर का राज्यसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
संविधान के अनुच्छेद 83 के तहत राज्यसभा एक स्थायी सदन है। इसके एक-तिहाई सदस्य छह साल के कार्यकाल के बाद हर दूसरे साल सेवानिवृत्त होते हैं। चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर जम्मू-कश्मीर की सीटों का कार्यकाल इस तरह निर्धारित करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश की मांग की थी। उसका कहना था कि इससे हर दो साल में एक-तिहाई सीटें खाली हो जाएंगी। पिछले तीन दशकों में सूबे में बार-बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है, इसलिए जम्मू-कश्मीर की राज्यसभा सीटों का कार्यकाल एक साथ चलता रहा है।
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