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मां को मुखाग्नि देने के बाद सीधे काम पर लौटे जस्टिस, आखिरी दिन सुनाए 11 फैसले

जस्टिस ओका ने अपने आखिरी कामकाजी दिन यानि शुक्रवार को 11 फैसले दिए। बावजूद इसके कि वो अपनी मां का अंतिम संस्कार करके आज ही दिल्ली वापस लौटे थे।

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Shailendra Gautam
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट में रवायत बन गई है कि जजेस अपने आखिरी दिन कोई काम नहीं करते। वो अदालत में आते हैं और सेरेमोनियल बेंच में बैठने के बाद गर्ड आफ आनर लेकर अपने घर चले जाते हैं। अलबत्ता इस परंपरा को जस्टिस अभय एस ओका ने बदल दिया। जस्टिस ओका ने अपने आखिरी कामकाजी दिन यानि शुक्रवार को 11 फैसले दिए। बावजूद इसके कि वो अपनी मां का अंतिम संस्कार करके आज ही दिल्ली वापस लौटे थे। 24 मई को वो सेवा निवृत हो रहे हैं। 

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सीजेआई से कहा था- गार्ड आफ आनर शाम को दिया जाए


21 मई को सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट आन रिकार्ड की तरफ से आयोजित फेयरवेल फंक्शन में जस्टिस ओका ने कहा था कि वो रिटायर शब्द से हेट करते हैं। उनका मानना है कि किसी भी शख्स को कभी भी रिटायर नहीं होना चाहिए। व्यस्त रहना ही जीवन का मंत्र होना चाहिए। उनका कहना था कि उन्होंने सीजेआई बीआर गवई से दरख्वास्त की थी कि गार्ड आफ आनर का टाइम 1.30 बजे से आगे किया जाना चाहिए। आखिरी दिन होता क्या है कि जज आते हैं। वो सीजेआई के साथ सेरेमोनियल बेंच में बैठने के बाद सीधे गार्ड आफ आनर लेने चले जाते हैं। उसके बाद अपने घर। जस्टिस ओका का कहना था कि जज को आखिरी दिन फैसले देने चाहिए।

2003 में बने थे बाम्बे हाईकोर्ट के जज, 2021 में आए सुप्रीम कोर्ट

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1960 में जन्मे जस्टिस ओका बाम्बे विवि से ग्रेजुएट हैं। वो 1983 में वकालत के पेशे से जुड़े। अगस्त 2003 में वो बाम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज बने और नवंबर 2005 में परमानेंट। 2019 तक वो बाम्बे हाईकोर्ट में सेवारत रहे। उसके बाद कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। 2021 में वो सुप्रीम कोर्ट आए। फेयरवेल फंक्शन में सीजेआई गवई ने बताया कि जस्टिस ओका के साथ उनका याराना 40 साल पुराना है। उनकी मदद की वजह से ही वो सुप्रीम कोर्ट आ सके थे। सीजेआई का कहना था कि उनको पता है कि जस्टिस ओका रिटायर होने के बाद कंसलटेंसी का काम नहीं करेंगे लेकिन वो कभी खाली नहीं बैठने वाले। वो जितना उनको जानते हैं उससे ये बात समझते हैं कि जस्टिस ओका हमेशा खुद को व्यस्त रखेंगे।


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